Lok Sabha Elections 2024: बिहार की राजनीति में विकास नहीं जातिवाद हावी!, हर दल फेंक रहे पासा, जातिगत सर्वे ने पूरी तस्वीर बदली

By एस पी सिन्हा | Published: April 8, 2024 04:01 PM2024-04-08T16:01:07+5:302024-04-08T16:02:37+5:30

Lok Sabha Elections 2024: जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार 81.99 यानी 82 प्रतिशत बिहार में हिंदू हैं। सबसे अधिक अति पिछड़ा वर्ग की संख्या 36.01 प्रतिशत है।

Lok Sabha Elections 2024 bihar Casteism dominates not development Every party dice caste survey changed whole picture | Lok Sabha Elections 2024: बिहार की राजनीति में विकास नहीं जातिवाद हावी!, हर दल फेंक रहे पासा, जातिगत सर्वे ने पूरी तस्वीर बदली

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Highlightsदूसरे नंबर पर पिछड़ा वर्ग 27.12 प्रतिशत है।अनुसूचित जाति 19.65 यानी 20 प्रतिशत के करीब है।सामान्य 15.1 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत है।

Lok Sabha Elections 2024: बिहार में लोकसभा चुनाव ने रफ्तार पकड़ ली है। धुआंधार चुनाव प्रचार के दौरान आरोप-प्रत्यारोप के साथ-साथ जातीय समीकरण पर जोर दिया जाने लगा है। दरअसल, बिहार की राजनीति में विकास के मुद्दों से जातिवाद ज्यादा हावी रहता है और जातीय फैक्टर ही चुनाव जीतने का सबसे बड़ा हथियार बनता रहा है। बिहार में शायद ही कोई ऐसा चुनाव हुआ हो जिसमें जाति का कार्ड राजनीतिक दलों ने न खेला हो। अब जब एक बार फिर से राजनीतिक दलों ने जातियों को साधने की कवायद तेज कर दी है। इस बार तो जातिगत सर्वे ने चुनाव की पूरी तस्वीर ही बदल दी है।

जातिगत सर्वे की रिपोर्ट का ही ये नतीजा है कि राजद को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है। जातिगत गणना के आंकड़े के बाद बिहार की राजनीति काफी बदली है और समीकरण भी। इसकी तस्वीर अब राजनीतिक दलों की दिखने लगी है और जो जातियां उनके साथ मजबूती से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें भी साधने की कोशिश में लगे हुए हैं।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अब तक करीब दर्जन भर सीटों पर अपने उम्मीदवारों को सिंबल दे दिया है। इनमें से कुछ लोगों को आधिकारिक तौर पर सिंबल दिए गए हैं, जबकि कुछ के नाम अब तक घोषित नहीं हैं। राजद की सूची में इस बार दलित-महादलित नेताओं को ज्यादा टिकट बांटे गए हैं।

ऐसे में कहा जा रहा है कि लालू यादव इस बार अपने परंपरागत वोट बैंक 'एमवाय' से हटकर तेजस्वी यादव के 'बाप' पर फोकस कर रहे हैं। उधर, एनडीए की ओर से भाजपा ने जहां सवर्णों पर ज्यादा जोर दिया है तो दूसरी तरफ जदयू ने पिछड़ा और अति-पिछड़ा समाज को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

भाजपा ने 60 फीसदी सवर्णों को टिकट बांटे हैं। इनमें भी राजपूत समाज हावी रहा है। 17 उम्मीदवारों में से 5 राजपूत, दो भूमिहार, दो ब्राह्मण और एक कायस्थ समाज के नेता को टिकट दिया गया है। जबकि जदयू ने अपनी 16 सीटों में से 11 पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के नेताओं को टिकट दिया है।

पार्टी ने सवर्ण जाति से भी 3 नेताओं को भी टिकट दिया है। इसके अलावा एक अल्पसंख्यक और एक अनुसूचित जाति के नेता को टिकट दिया है। वहीं, एनडीए की सहयोगी जीतन राम मांझी और चिराग पासवान भी दलित वोटबैंक का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। ये दोनों दलित और महादलित समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। 

उल्लेखनीय है कि जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार 81.99 यानी 82 प्रतिशत बिहार में हिंदू हैं, जबकि 17.70 यानी लगभग 18 प्रतिशत की आबादी है। इनमें सबसे अधिक अति पिछड़ा वर्ग की संख्या 36.01 प्रतिशत है, जबकि दूसरे नंबर पर पिछड़ा वर्ग 27.12 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति 19.65 यानी 20 प्रतिशत के करीब है।

सामान्य 15.1 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत है। अकेले यादव जाति की संख्या 14.26 प्रतिशत है यानी यादव और मुस्लिम दोनों को जोड़ दिया जाए तो बिहार की 32 प्रतिशत जनसंख्या है। बिहार की 22 अनुसूचित जातियों में से 21 को महादलित की श्रेणी में शामिल किया गया है। प्रदेश में सबसे ज्यादा जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग की है। दोनों का आंकड़ा मिला दें तो संख्या 63 प्रतिशत पहुंच जाती है।

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