लोकसभा चुनाव 2019 Update: यूपी के 5 सांसद छोड़ सकते हैं बीजेपी, मोदी-शाह की जोड़ी को करारा झटका
By हरीश गुप्ता | Published: December 10, 2018 10:26 AM2018-12-10T10:26:28+5:302018-12-10T11:49:02+5:30
फिल्म अभिनेता से नेता बने शत्रुध्न सिन्हा और कीर्ति आजाद पहले से असंतुष्ट हैं और अब हरियाणा के धर्मवीर भी इस सूची में जुड़ गए हैं. उत्तर प्रदेश से जुड़े कम से कम 5 सांसदों ने केंद्रीय नेतृत्व को बता दिया है अगर उनके समुदाय के लोगों का उत्पीड़न जारी रहा, तो वे पार्टी छोड़ देंगे.
उत्तर प्रदेश से सांसद सावित्री बाई फुले के भाजपा छोड़ने के बाद भाजपा के कई अन्य सांसद बगावत करने पर विचार कर रहे हैं. भाजपा के सशक्त और वफादार सांसद की ओर से पहली बार पहल किए जाने के बाद ये सांसद भी पार्टी के खिलाफ असहमति जताना चाहते हैं. यह स्पष्ट है कि इनमें से अधिकतर सांसद दलित जाति से ताल्लुक रखते हैं और वे खुद को पूरी तरह अनाथ महसूस करते हैं.
उनकी शिकायतें न तो केंद्र और न ही भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री सुनते हैं. उनको लगता है कि भाजपा शासित राज्यों और केंद्र के फैसलों से दलित सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, दिल्ली में मतभेद बढ़ रहा है.
मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के एक असंतुष्ट सांसद ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर 'लोकमत समाचार' को बताया कि पार्टी में असंतोष व्यापक पैमाने पर बढ़ रहा है. विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद कई सांसद चर्चा शुरू कर देंगे और वे पार्टी नेतृत्व की बात नहीं मानेंगे. ऐसे असंतुष्ट सांसदों ने हाल ही में विभिन्न समूहों और अपने समर्थकों से मुलाकातें करनी शुरू कर दी हैं.
फिल्म अभिनेता से नेता बने शत्रुध्न सिन्हा और कीर्ति आजाद पहले से असंतुष्ट हैं और अब हरियाणा के धर्मवीर भी इस सूची में जुड़ गए हैं. उत्तर प्रदेश से जुड़े कम से कम 5 सांसदों ने केंद्रीय नेतृत्व को बता दिया है अगर उनके समुदाय के लोगों का उत्पीड़न जारी रहा, तो वे पार्टी छोड़ देंगे.
दिल्ली के दलित सांसद ने भी हाल ही में पार्टी फोरम में अपनी चिंता जताते हुए कहा था कि उनके पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. हालांकि बैठक में किसी ने भी उन्हें शांत करने की कोशिश नहीं की. हरियाणा से जुड़े एक केंद्रीय मंत्री अपनी पार्टी से विरोध जता चुके हैं जबकि हरियाणा के दूसरे मंत्री हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी सेवाएं नहीं लेने पर आक्रोश जता चुके हैं. उन्हें बहिष्कृत और राजनीतिक रूप से कमजोर माना जा रहा है.
तीन राज्यों को खोने पर बढ़ सकते हैं असंतुष्ट: इनमें से कुछ नेताओं को पता है कि अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में उनको टिकट नहीं मिलेगा. इसका कारण यह है कि पार्टी नेतृत्व ने पहले ही संकेत दे दिया है कि मौजूदा 50 सांसदों को टिकट नहीं दिया जाएगा.
हालांकि टिकट के लिए 75 वर्ष का फॉर्मूला सख्ती से लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन पार्टी कम से कम 15 बुजुर्गों को विश्राम देगी. इन सूत्रों का कहना है कि 11 दिसंबर को आने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम में यदि भाजपा सभी तीन प्रमुख हिंदी भाषी राज्यों को खो देता है तो असंतुष्टों की संख्या बढ़ सकती है.