लोकसभा चुनाव 2019: जम्मू कश्मीर में चेहरा ढक प्रचार करने वालों को जान की परवाह होती है!
By सुरेश डुग्गर | Published: April 2, 2019 05:41 PM2019-04-02T17:41:45+5:302019-04-02T17:41:45+5:30
आतंकी फिर उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को क्षति पहुंचाने की मुहिम छेड़ते रहे हैं जो चुनावी सभाओं में शामिल होते रहे हैं तथा प्रचार में लगे होते हैं जिनकी तस्वीर या तो अखबारों में छपी हुई उन्हें मिलतीं या फिर वे उनके चेहरों को टीवी सेटों पर देखते हैं।
कश्मीर में हो रहे चुनावों में प्रचार और चुनावी सभाओं के दौरान एकत्र भीड़ पर अगर ध्यान दिया जाए तो दो बातें साफ नजर आती हैं। पहली अधिकतर कार्यकर्ता अपनी पहचान छुपाने की खातिर अपने चेहरों को ढक रहे हैं तो दूसरा कश्मीर में बचे खुचे प्रवासी श्रमिक आज खूब कमाई इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें ‘राजनीतिक कार्यकर्ताओं’ के रूप में चुनावी सभाओं में शामिल होने के अच्छे खासे पैसे मिल रहे हैं।
जान किसे प्यारी नहीं होती। यही कारण है कि कश्मीर में चुनाव प्रचार और चुनावी सभाओं में भाग लेने वाले अपनी पहचान जाहिर करने के इच्छुक नहीं होते। अगर आपने कभी गौर से कश्मीर के चुनाव प्रचार और चुनावी सभाओं की तस्वीरों को अखबारों या फिर टीवी सेटों पर देखा होगा तो आपको कई चेहरे पहचान में इसलिए नहीं आए होंगें क्योंकि उन्होंने अपने चेहरों को ढका हुआ था।
चेहरा ढकने वालों ने भी इसे प्रचार का रूप दे दिया हुआ है। वे अपने चेहरों को पार्टी के झंडे और बैनरों से ढक कर एक पंथ दो काज वाला काम कर रहे हैं। पार्टी का झंडा या फिर बैनर अपने चेहरे के आसपास लपेटने से प्रचार तो होता ही है साथ ही प्रचार करने वाले कश्मीरी की पहचान भी छुप जाती है। ऐसा पहले नहीं था। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में ऐसे चेहरे बहुत ही कम दिखते थे जिन्होंने अपने चेहरों को ढका हुआ था। हालांकि वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों व 2004 तथा 2014 के लोकसभा चुनावों में भी इसका प्रचलन बढ़ा था। लेकिन इस बार के चुनाव में प्रचार और चुनावी सभाओं में भाग लेने वाला हर चौथा आदमी आपको चेहरे को लपेटे हुए दिख रहा है।
असल में उनका मकसद अपनी पहचान को छुपाना है। ताकि वे आतंकवादी कहर से बच सकें। गौरतलब है कि आतंकी फिर उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को क्षति पहुंचाने की मुहिम छेड़ते रहे हैं जो चुनावी सभाओं में शामिल होते रहे हैं तथा प्रचार में लगे होते हैं जिनकी तस्वीर या तो अखबारों में छपी हुई उन्हें मिलतीं या फिर वे उनके चेहरों को टीवी सेटों पर देखते हैं।
एक यह भी कारण है कि चुनावी सभाओं के दौरान भाग लेने वालों को फोटोग्राफरों को कई बार मना करते हुए देखा जा रहा है। वे तो हाथ भी जोड़ते हैं कि उनकी तस्वीरों को न छापा जाए ताकि आतंकी कहर से वे बच जाएं। यह बात अलग है कि उनके निवेदन को राज्य के बाहर से आने वाले टीवी चैनलों के कैमरामैन या फिर अखबारों के फोटोग्राफर अनदेखा कर रहे हैं लेकिन राज्य के भीतर पिछले कई सालांे से कार्यरत कैमरामैन और फोटोग्राफर इस सच्चाई को जानते हुए कि आतंकवादी उन्हें क्षति पहुंचा सकते हैं उनकी तस्वीर को खींचने से पहले ही कहते हैं कि वे अपने चेहरों को ढक लें।