बिहार की सियासी चहल-पहल से लालू दूर, लेकिन सभी की नजरें उन्हीं पर टिकीं, क्या फिर बनेंगे किंगमेकर?

By एस पी सिन्हा | Published: March 29, 2019 06:00 AM2019-03-29T06:00:28+5:302019-03-29T06:00:28+5:30

महागठबंधन में मुख्य दल के तौर पर राजद शामिल है. इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना और एनडीए को पटखनी देना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. कहा जा रहा है कि लालू जेल से हीं से कई बार नेताओं को हड़काते भी हैं तो कई को एकजुट होकर एनडीए को मात देने की सीख भी देते हैं. 

lok sabha election: lalu prasad yadav may be game changer | बिहार की सियासी चहल-पहल से लालू दूर, लेकिन सभी की नजरें उन्हीं पर टिकीं, क्या फिर बनेंगे किंगमेकर?

बिहार की सियासी चहल-पहल से लालू दूर, लेकिन सभी की नजरें उन्हीं पर टिकीं, क्या फिर बनेंगे किंगमेकर?

बिहार में लोकसभा चुनाव की गहमागहमी तो पूरे पीक पर है, लेकिन महागठबंधन की महागांठ खुलता नजर आने लगा है. ऐसे में लालू की कमी सभी को खलने लगी है. वैसे रांची के रिम्स में भर्ती लालू प्रसाद यादव भले ही प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से दूर हैं. लेकिन, इस शख्सियत की अहमियत 2019 लोकसभा चुनाव में और भी ज्यादा बढ़ गई है. 

महागठबंधन में मुख्य दल के तौर पर राजद शामिल है. इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना और एनडीए को पटखनी देना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. कहा जा रहा है कि लालू जेल से हीं से कई बार नेताओं को हड़काते भी हैं तो कई को एकजुट होकर एनडीए को मात देने की सीख भी देते हैं. 

वहीं, लालू यादव की जमानत का महागठबंधन में शामिल दल भी इंतजार कर रहे हैं क्योंकि लालू के बगैर चुनावी रंग पकड़ नही पा रहा है. हालांकि कई मामलों में उन्हें जमानत मिलनी है और अगर उन्हें जमानत नहीं भी मिलती है तो भी वह राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं. भाजपा की धर्म की राजनीति को वे जाति की राजनीति से काट सकते हैं. ऐसे में अब यह कहा जाने लगा है कि तो क्या इस बार भी लालू जेल से किंगमेकर की भूमिका निभाएंगे? वहीं, राजद पहली बार लालू प्रसाद यादव के बगैर चुनावी समर में उतर रहा है. 

राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि लालू प्रसाद यादव को अलग रखकर बिहार की सियासत को समझा ही नहीं जा सकता है. सजायाफ्ता होने के बावजूद वे प्रदेश की राजनीति में स्वंय एक केंद्र हैं. जेल में रहते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पकड़ में कोई कमी नहीं आई है. देश की दोनों बड़ी पार्टियां आज भी लालू को दरकिनार करने की सोच भी नहीं पा रही है. भाजपा नेताओं की रणनीति में लालू पर खास नजर रखी जाती है. 

वहीं, कांग्रेस बिना राजद प्रमुख के सहयोग से बिहार में आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है. शायद यही कारण है कि वह कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी है. 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त देश में तथाकथित मोदी लहर चल रही थी और लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 31 सीटें जीती थीं. एनडीए में लोजपा और रालोसपा शामिल थे और राजद ने कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, वहीं नीतीश कुमार की पार्टी ने अकेले ही चुनाव लड़ा था.

इस चुनाव के बाद एनडीए को मिली जीत को देखकर विपक्ष एकजुट हुआ था और उसके एक साल बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के लिए लालू ने महागठबंधन की वकालत की और लालू-नीतीश की जोड़ी ने लोकसभा चुनाव की जीत से उत्साहित एनडीए को बिहार में चारों खाने चित कर दिया था. 

लालू ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया और अपने पुत्रों तेजप्रताप और तेजस्वी को नीतीश की सरकार में अहम पद दिला दिया और दोनों को दिशानिर्देश भी देते रहे. इसके साथ ही लालू किंगमेकर बन गए और अपने बयानों के तीर से केंद्र की एनडीए सरकार को बेधते रहे. लेकिन अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटी मारी और भाजपा से जाकर हाथ मिला लिया. रात भर में ही बिहार में राजनीतिक भूचाल आया और बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने वाली राजद को विपक्ष में बैठना पडा और एनडीए की सरकार बन गई.  

यहां उल्लेखनीय है कि राजद की नींव 5 जुलाई 1997 को पड़ी थी. उस समय से लेकर अभी तक लालू प्रसाद यादव ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. पहली बार 30 जुलाई 1997 को राजद प्रमुख जेल गए थे. इससे पहले ही 25 जुलाई को उन्होंने अपनी जगह राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था. उस समय भी लगने लगा था कि अब लालू कमजोर पड जाएंगे. लेकिन, उसी मजबूती के साथ राजद प्रमुख ने वापसी की थी. 

फिलहाल लालू प्रसाद यादव जेल में हैं. इससे पहले भी कई बार अंदर पहुंचे और बाहर निकले. लेकिन, इससे उनके जनाधार पर कोई फर्क नहीं पडा. हर बार वह मजबूती के साथ खडे हुए. तभी तो लालू प्रसाद यादव को उनके सियासी साथी 'लडाका' राजनेता की संज्ञा देते हैं.

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