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मुंगेर लोकसभा सीट पर इस बार पूरे देश की नजर, बाहुबली अनंत सिंह मैदान में उतरने को तैयार, इन्हें देंगे चुनौती

By एस पी सिन्हा | Updated: March 2, 2019 05:18 IST

जातीय समीकरण की बात करें तो दोनों एक ही जाति से आते हैं. मुंगेर लोकसभा सीट से 2014 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से वीणा देवी सांसद बनी थी. उन्होंने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) प्रत्याशी ललन सिंह को चुनाव हराया था.

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बिहार के मुंगेर लोकसभा सीट पर इस बार पूरे देश की नजर रहेगी. संभावना जताई जा रही है कि एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी ललन सिंह चुनाव मैदान में होंगे वहीं, दूसरी तरफ इलाके के बाहुबली अनंत सिंह ने भी यहां से अपनी ताल ठोक दी है. अनंत सिंह ने दावा किया है कि यदि कोई पार्टी उन्हें उम्मीदवारी नहीं देती है तो वे बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरेंगे. 

जातीय समीकरण की बात करें तो दोनों एक ही जाति से आते हैं. मुंगेर लोकसभा सीट से 2014 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से वीणा देवी सांसद बनी थी. उन्होंने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) प्रत्याशी ललन सिंह को चुनाव हराया था. अब जदयू और लोजपा दोनों ही एनडीए गठबंधन में आ चुकी है. ऐसे में मुंगेर सीट पर इन दोनों पार्टियों की तरफ से दावेदारी पेश की जा रही है. 

फिलहाल ललन सिंह का दावा मजबूत दिख रहा है. वर्तमान सांसद वीणा देवी ने भी मुंगेर सीट से फिर से चुनाव लडने का दावा किया है. उन्होंने पार्टी और गठबंधन से बागी तेवर दिखाते हुए कहा था कि चाहे गठबंधन रहे या नहीं, वह मुंगेर से ही अगला चुनाव लडेंगी.

यहां बता दें कि 1952, 1957, 1962 और 1971 में मुंगेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी. इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने इस सीट को जीता था. श्री कृष्ण सिंह यहां से सांसद बने थे. लेकिन 1980 और 1984 के चुनावों में यहां फिर से कांग्रेस पार्टी ने ही जीत दर्ज की थी. 1989 के चुनाव में यहां जनता दल जीती थी. 

1991 में यहां भाकपा(सीपीआई) का खाता खुला और ब्रह्मानंद मंडल सांसद बने. 1996 के लोकसभा चुनाव में भी वह दोबारा चुनाव जीते. इस बार वह समता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड रहे थे. 1998 के चुनाव में इस सीट पर राजद ने कब्जा जमाया, लेकिन अगले ही वर्ष हुए आम चुनाव में फिर ब्रह्मानंद मंडल ने जीत दर्ज की. 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर राजद ने जीत दर्ज की थी. 2009 में फिर जदयू ने यहां वापसी की और राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह यहां से सांसद बने. 

कभी सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लोग बडे साहब के रुप में जानता था तो बाहुबली अनंत सिंह को छोटे सरकार के रुप में लोग जानते थे. मगर मुसीबत में अनंत सिंह ने जदयू से दूरी क्या बनाई जदयू खेमे में कई स्वजातिय राजनेता अपना-अपना ताल ठोंकने लगे हैं और नीतीश कुमार के करीबी बनने के लिए अपनी मुंछ ऐंठने लगे हैं. हलांकि जदयू में मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह पहले सी कदावर और गंभीर नेताओं में शुमार हैं. 

इनके अलावे विधान पार्षद नीरज कुमार भी अनंत के खिलाफ पहले से ही वाकयुद्ध करने से परहेज नहीं रख रहे हैं. अभी हाल ही में अनंत सिंह के करीबी लल्लू मुखिया की गिरफ्तारी भी जदयू प्रमुख को संदेह के कटघरे में खडी कर रही है. वैसे सही मायने में देखी जाए तो नीतीश कुमार को इन सभी बातों से कोई खास ताल्लुकात नहीं है. लेकिन किसी न किसी रुप में नीतीश कुमार पर इसकी गाज गिरनी तो तय है. सरकार के साथ ही अनंत सिंह खुद को छोटे सरकार मानने में कोई गुरेज नहीं रखते थे, वह खुले मंच से बोला करते थे कि मैं नीतीश कुमार बडे सरकार हैं तो मैं छोटे सरकार हूं.

मुंगेर सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर चुके अनंत सिंह की घेराबंदी में बिहार सरकार के सिंचाई मंत्री ललन सिंह जी-जान से जुट गए हैं. अनंत सिंह के दुश्मन विवेक पहलवान को साथ करने के बाद अब अनंत सिंह दुसरे राजनीतिक प्रतिद्वंदी मोकामा वाले ललन सिंह (सूरजभान सिंह का चचेरा भाई) को अपने पाले में ला चुके हैं. यानी अनंत सिंह के खिलाफ उनके स्वजातीय नेताओं और बाहुबलियों की गोलबंदी तेज हो गई है. 

अब मोकामा के शंकरवार टोला वाले नलिनी रंजन शर्मा उर्फ ललन सिंह भी जदयू में शामिल होने जा रहे हैं. ललन सिंह इलाके के पुराने दबंग नेता हैं. ललन रिश्ते में सूरजभान सिंह के भाई भी लगते हैं. लेकिन अभी दोनों के बीच छतीस का रिश्ता है. चार बार विधानसभा चुनाव लडने के वावजूद एकबार भी अनंत सिंह को हारने में अबतक नाकाम रहे ललन सिंह इसबार जदयू के साथ होकर अनंत सिंह को हराना चाहते हैं. ललन सिंह पहले लोजपा में थे. 

अभी जन अधिकार पार्टी में हैं. उनकी जदयू से बढती नजदीकी का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके शिक्षक पिता रामबालक सिंह के निधन पर शोक जताने खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोकामा पहुच गए थे. जहानाबाद सांसद अरुण कुमार, जदयू के ललन सिंह, विधान पार्षद नीरज कुमार भी नीतीश कुमार के साथ पहुंचे थे. 

दरअसल, ललन सिंह हमेशा से ही अनंत सिंह और उनके परिवार के विरोध की राजनीति करते रहे हैं. उन्होंने कई बार विधानसभा चुनाव भी लडा, लेकिन मामूली वोटों के अंतर से अनंत सिंह से पराजित होते रहे. अब अनंत सिंह के खिलाफ मंत्री ललन सिंह के खड़ा हो जाने से उनका हौसला काफी बढ गया है. 

ललन सिंह का कहना है कि उनकी लगातार हार की वजह उनके समाज के लोगों का गुमराह होना सबसे बडी वजह रही है. अब जब उनका समाज एकजुट होगा और अनंत सिंह जैसे अपराधियों के आतंक से मोकामा को मुक्ति मिलेगी. ऐसे में अब अनंत सिंह के गढ़ में उनकी बिरादरी के ही सारे बाहुबली और नेता अनंत सिंह की घेराबंदी करने में जुटे हैं.

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