साउथ में नरेंद्र मोदी फेल क्यों? इन सवा सौ सीटों पर 41 प्रतिशत लोग देखना चाहते हैं राहुल गांधी को पीएम!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 10, 2019 04:57 PM2019-04-10T16:57:03+5:302019-04-10T17:02:31+5:30

Lok Sabha Election 2019: बीते दिनों तमिलनाडु के एक अखबार डेली थांती में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष की लोकप्रियता को लेकर एक सर्वे रिपोर्ट छपी थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक पुलवामा आतंकी हमले के महीने भर बाद राहुल की लोकप्रियता बढ़कर में 41 फीसदी और पीएम मोदी की लोकप्रियता 26 फीसदी बताई गई थी।

Lok Sabha Election 2019: Why Narendra Modi fails in South and people want to see Rahul as PM | साउथ में नरेंद्र मोदी फेल क्यों? इन सवा सौ सीटों पर 41 प्रतिशत लोग देखना चाहते हैं राहुल गांधी को पीएम!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी। (फाइल फोटो)

Highlights2014 की प्रचंड मोदी लहर में बीजेपी ने दक्षिण भारत में 67 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पांचों राज्यों में बीजेपी महज 20 सीटें ही जीत पाई थी।कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। तमिलनाडु में 39, आंध्र प्रदेश में 25, तेलंगाना में 17 और केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं।

Lok Sabha Election 2019: उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों, पूरब और पश्चिम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लहर का लोहा मनवाने में सफल रहे हैं लेकिन जब बात दक्षिण की आती है तो वह यहां वह फेल नजर आते हैं। दक्षिण भारत की करीब सवा सौ लोकसभा सीटों के लोगों पर नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चल पा रहा है। ये लोग राहुल गांधी को पीएम बनते देखना चाहते हैं। 

दरअसल, बीते दिनों तमिलनाडु के एक अखबार डेली थांती में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष की लोकप्रियता को लेकर एक सर्वे रिपोर्ट छपी थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक पुलवामा आतंकी हमले के महीने भर बाद राहुल की लोकप्रियता बढ़कर में 41 फीसदी और पीएम मोदी की लोकप्रियता 26 फीसदी बताई गई थी। 

अगले प्रधानमंत्री के तौर पर राहुल या मोदी के सवाल पर इंडिया टुडे में एक सर्वे छपा था। केरल में 22 फीसदी लोगों ने मोदी जबकि 64 फीसदी लोगों ने राहुल को पीएम के तौर पर देखने की इच्छा जताई थी।

प्रचंड लहर भी नहीं दिला पाई सफलता!

2014 की प्रचंड मोदी लहर में बीजेपी ने दक्षिण भारत में 67 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पांचों राज्यों में बीजेपी महज 20 सीटें ही जीत पाई थी। जिसमें से 17 सीटें केवल उत्तरी कर्नाटक के समुद्र से सटे इलाकों से थीं।  

दक्षिण भारत में कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल राज्य आते हैं। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। तमिलनाडु में 39, आंध्र प्रदेश में 25, तेलंगाना में 17 और केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं। सभी सीटें मिलाकर 129 होती हैं। अगर इन सीटों पर कांग्रेस का हाथ बैठता है और उत्तर भारत के क्षेत्रीय दल भी वोट शेयर अपने पाले में खिसका पाते हैं तो 2014 से भी बड़ी जीत का सपना देख रही बीजेपी की उम्मीदें टूट सकती हैं। 

दक्षिण में क्यों हैं मोदी फेल?

दरअसल, जानकार बताते हैं कि दक्षिण राजनीति उत्तर भारत जैसी नहीं है कि लोग भले ही बीजेपी के किसी नेता से नाराज हों और वोट मोदी के नाम पर दे दें। इस तरह की चीजें साउथ में देखने को नहीं मिलती हैं। दक्षिण भारत की राजनीति में जाति-धर्म और उम्मीदवार को देखकर वोट दिया जाता है। 

जैसे कि कर्नाटक में जो दल लिंगायत समुदाय को साधने में सफल हो जाता है सरकार उसकी बनती है। जानकार यहां तक कहते हैं कि दक्षिण भारतीयों के खून में कांग्रेस का लहू बहता है, जिसमें वे अब भी इंदिरा गांधी को याद रखते हैं। 

कर्नाटक में 2008 में बीजेपी ने इसलिए सरकार बनाई  थी क्योंकि उसने बीएस येदियुरप्पा के जरिये सूबे की सत्ता में एंट्री की थी। येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से ही आते हैं।

इमरजेंसी के बाद भी जीत गई थीं इंदिरा 

दक्षिण भारत में कांग्रेस के दबदबे का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव जीत लिया था। 1980 में उन्होंने मेड़क से चुनाव जीता और दक्षिण में कांग्रेस की ऐसी छवि बनाई कि 1999 में जब उनकी बहू सोनिया गांधी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा तो वह कर्नाटक के बेल्लारी से जीत गईं।

राहुल गांधी ने भी शायद दादी इंदिरा और मां सोनिया की तरह दक्षिण में अपने लिए एक सुरक्षित ठिकाना बनाने की सोची और वायनाड से भी चुनाव लड़ने के पीछे यह वजह हो सकती है।

'मिलने का समय नहीं देते पीएम'

नेताओं को मिलने के लिए समय न देना भी मोदी के लिए दक्षिण में कहीं न कहीं नकारात्मक माहौल बनाने का कारण है। दक्षिण के तकरीबन सभी मुख्यमंत्री यह शिकायत करते हैं कि पीएम मोदी का उनके राज्यों के साथ भेदभाव वाला रिश्ता है। वह उन्हें मिलने के लिए समय नहीं देते हैं। 

बीजेपी का 'राष्ट्रवाद' तो कांग्रेस का 'क्षेत्रीय अस्मिता' पर जोर

बीजेपी को भी जैसे पता है कि दक्षिण में उसे उत्तर जैसी सफलता नहीं मिलेगी, इसलिए उसके घोषणापत्र में वहां की क्षेत्रीय अस्मिता को सहेजने और संवारने जैसे मुद्दे नहीं दिखाई देते हैं। बीजेपी के घोषणापत्र के मूल में राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद है तो कांग्रेस दक्षिण भारत की क्षेत्रीय अस्मिता को मजबूत करने की बात पर जोर देती रहती है।  

केरल में सबरीमाला मंदिर मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी का मंदिर कमेटी के साथ खड़े होकर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले वोटरों को अपने पाले में खींचना भी अब आसान नहीं होगा। क्योंकि राहुल गांधी के वायनाड से लड़ने के पीछे की रणनीतियों में सबरीमाला का असर भी कहीं न कहीं शामिल हैं। 

दक्षिण में अगर 2019 में कमल खिलता है तो यह देखना वाकई दिलचस्प होगा। 

Web Title: Lok Sabha Election 2019: Why Narendra Modi fails in South and people want to see Rahul as PM