गाजीपुर लोकसभा : 1989 चुनाव के बाद कोई भी उम्मीदवार दूसरी बार नहीं जीता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 8, 2019 08:32 PM2019-05-08T20:32:56+5:302019-05-08T20:32:56+5:30

रेल राज्य मंत्री एवं इस सीट से मौजूदा सांसद मनोज सिन्हा पहली बार 1996 में भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचे, लेकिन 1998 में हुए अगले चुनाव में वह हार गए। 1999 में वह गाजीपुर से फिर चुनाव जीते लेकिन 2004 में उन्हें फिर पराजय मिली। पिछली बार (2014) वह इस सीट से तीसरी बार सांसद बने और एक बार (2019) फिर चुनावी मैदान में है।

lok sabha election 2019 Sinha hopes to transcend the caste equations in the area via these welfare programmes. | गाजीपुर लोकसभा : 1989 चुनाव के बाद कोई भी उम्मीदवार दूसरी बार नहीं जीता

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में 7वें चरण के तहत 19 मई को मतदान है।

Highlightsमनोज सिन्हा अपने विकास कार्यों के दम पर जीत का विश्वास जता रहे हैं, लेकिन गठबंधन की चुनौती को हल्के में नहीं लिया जा सकता।गत 30 वर्षों में जो लोग यहां से सांसद निर्वाचित हुए, उनमें ज्यादातर को अगले चुनाव में जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा।

पूर्वांचल की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट गाजीपुर पर पिछले तीन दशक के चुनाव में कोई भी सांसद लगातार दूसरी बार जीत नहीं पाया और अब केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के सामने इस परिपाटी को तोड़ने की बड़ी चुनौती है। इस सीट पर आखिरी बार कांग्रेस नेता जैनुल बशर लगातार दो बार 1980 और 1984 के चुनाव में जीते।

फिर 1989 के चुनाव के बाद से कोई भी उम्मीदवार किसी न किसी कारण के चलते अपनी जीत का सिलसिला कायम नहीं रख पाया। इन तीन दशकों में गाजीपुर के वर्तमान सांसदों की दूसरी बार हार हो गई या फिर उन्हें टिकट ही नहीं मिला।

रेल राज्य मंत्री एवं इस सीट से मौजूदा सांसद मनोज सिन्हा पहली बार 1996 में भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचे, लेकिन 1998 में हुए अगले चुनाव में वह हार गए। 1999 में वह गाजीपुर से फिर चुनाव जीते लेकिन 2004 में उन्हें फिर पराजय मिली। पिछली बार (2014) वह इस सीट से तीसरी बार सांसद बने और एक बार (2019) फिर चुनावी मैदान में है।

अब देखना होगा कि क्या पिछले तीन दशक से चली आ रही चुनावी परिपाटी को वह तोड़ पाते हैं या नहीं? स्थानीय पत्रकार आलोक त्रिपाठी का कहना है, '' 1989 के बाद से कोई भी वर्तमान सांसद लगातार दूसरी बार नहीं जीत पाया। मनोज सिन्हा अपने विकास कार्यों के दम पर जीत का विश्वास जता रहे हैं, लेकिन गठबंधन की चुनौती को हल्के में नहीं लिया जा सकता।''

गाजीपुर की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एसके राय कहते हैं, ''गत 30 वर्षों में जो लोग यहां से सांसद निर्वाचित हुए, उनमें ज्यादातर को अगले चुनाव में जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा। कुछ की सीट बदल गई और कुछ की अपनी पार्टी से नहीं बनी। आगे यह परिपाटी कब टूटेगी, कहा नहीं जा सकता।''

इस सीट पर सपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार के तौर पर सिन्हा को चुनौती दे रहे अफजाल अंसारी भी 2004 में सपा से चुनाव जीते लेकिन अगली बार 2009 से बसपा के टिकट पर खड़े हुए तो उन्हें सपा के राधेमोहन सिंह ने हरा दिया। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राधेमोहन सिंह को सपा का टिकट नहीं मिला और इस तरह उनकी जीत का सिलसिला भी बरकरार नहीं रह पाया। गाजीपुर से 1989 में जगदीश कुशवाहा निर्दलीय चुनाव जीते और 1991 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विश्वनाथ शास्त्री जीते, लेकिन ये दोनों दूसरी बार संसद नहीं पहुंच पाए।

वैसे, इस सीट पर 1989 से पहले कई ऐसे नेता रहे जो लगातर दो बार जीते, हालांकि वे जीत की हैट्रिक नहीं लगा सके। कांग्रेस के हरप्रसाद सिंह 1952 और 1957 के बाद चुनाव मैदान से बाहर हो गए। भाकपा के सरजू पांडेय भी 1967 और 1971 के बाद संसद नहीं पहुंच सके। 1980 में इंदिरा लहर में और फिर 1984 में चुनाव जीतने वाले जैनुल बशर भी जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाए। 

Web Title: lok sabha election 2019 Sinha hopes to transcend the caste equations in the area via these welfare programmes.



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