पटनाः लोजपा में जारी सियासी जंग के बीच सांसद चिराग पासवान अपने चाचा सांसद पशुपति कुमार पारस पर लगतार हमलावर हैं.
दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन करने के बाद चिराग का आत्मविश्वास भी काफी बढ़ गया है. इसी रणनीति के तहत उन्होंने मंगलवार को चार पन्ने का पत्र जारी किया है. उन्होंने बिहार चुनाव में एनडीए से अलग होकर लड़ने के मामले में बड़ा खुलासा किया है. चिराग ने कहा है कि एनडीए लोजपा को बिहार विधानसभा चुनाव में सिर्फ 15 सीटें दे रही थी, जिस वजह से हमने अलग होकर लड़ने का फैसला किया.
लोजपा को करीब 10 प्रतिशत वोट जरूर मिलता
अपने ट्विटर हैंडल पर पत्र शेयर करते हुए लोजपा नेता चिराग पासवान ने लिखा, 'बिहार चुनाव में हमारी पार्टी को 25 लाख वोट मिले. वो भी तब, जब पार्टी सिर्फ 135 सीटों पर चुनाव लड़ी. अगर हम सभी सीटों पर चुनाव लड़ते तो, हमारी पार्टी को करीब 10 प्रतिशत वोट जरूर मिलता.' चिराग ने अपने पत्र में आगे लिखा कि एनडीए की ओर से हमें 15 सीटें दी जा रही थी, जो कि कहीं से तार्किक नहीं था.
उन्होंने कहा कि एक तरफ सीट का विवाद था ही दूसरी ओर हम उनके साथ बिल्कुल चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे, जो हमारी पार्टी हमारे नेता को कमजोर करने का काम कर चुके थे. उन्होंने अपने पत्र के जरिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए लिखा है कि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू शुरुआत से ही लोजपा को कमजोर करने में लगी है.
29 विधायक को तोड़कर अपनी सरकार बना ली
इस पत्र में चिराग ने पार्टी की वर्तमान स्थिति से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार हमेशा तोड़फोड़ की राजनीति में विश्वास करते हैं. बिहार में 2005 में मेरी पार्टी से 29 विधायक को तोड़कर अपनी सरकार बना ली. 2014 में मेरी पार्टी एनडीए के साथ आई, उस वक्त नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर चुनाव लडे़.
2017 में जब नीतीश कुमार एनडीए में दुबारा शामिल हुए तो पापा एडजस्ट नहीं कर पा रहे थे, परंतु गठबंधन धर्म मानकर साथ दिया. इसके बावजूद 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान मेरे सभी सांसदों हराने की पुरजोर कोशिश की. रामविलास पासवान जब बीमार थे तो एक बार भी उनके स्वास्थ्य की जानकारी नहीं ली.
चिराग ने अपने पत्र में नीतीश कुमार पर आरोप लगाया
उल्टे पत्रकारों के सवालों का जबाव दिया कि क्या वे दो विधायक के रहते राज्यसभा में जा सकते हैं. चिराग ने अपने पत्र में नीतीश कुमार पर आरोप लगाया है कि किसी दलित नेता को आगे बढने देना नही चाहते हैं. पहले उन्होंने पापा को दबाने की कोशिश की और अब मुझे नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.
चिराग ने पत्र में अपने चाचा पशुपति कुमार पारस पर निशाना साधते हुए लिखा है कि पिता की मौत के बाद लगा था चाचा पारस उनका मार्गदर्शन करेंगे, परंतु वे मुझे बीच मझधार में ही छोड़कर चले गए. चाचा रामचंद्र पासवान की मौत के बाद पापा ने प्रिंस को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, ताकि समय रहते वह सबकुछ सीख ले. परंतु चाचा पारस ने समझा कि मैंने उन्हें हटाया है.
लोजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष रखता
उन्होंने सवालिया लहजे में चाचा पारस से पूछा कि पिता की मौत हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ वे अनाथ छोड़कर चले गए? मेरी जगह उनका बेटा होता तो क्या उसके साथ भी यही बर्ताव करते? उन्होंने कहा कि अगर पशुपति कहते तो मैं उनका नाम मंत्री बनने के लिए लोजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष रखता.
उन्होंने कहा कि अगर पशुपति कहते तो मैं उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समक्ष रखता. लेकिन चाचा ने मुझे धोखा दिया. भाई और पार्टी के अन्य सांसदों ने मेरी पीठ में खंजर घोपने का काम किया. चिराग ने पत्र में लिखा है कि पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी और परिवार का दारोमदार चाचा के ऊपर ही था.
पापा के निधन के बाद वह परिवार के मुखिया थे
चाचा सबको लेकर चलते और मेरा मार्गदर्शन करते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. बल्कि जब मैं टायफाइड से पीड़ित था, तो उस वक्त आधी रात को मेरे पीठ में खंजर घोंपने का काम किया. उन्होंने लिखा है कि पापा ने पार्टी और परिवार को साथ लेकर चलने की पूरी कोशिश की. चाचा रामचंद्र के निधन के बाद उन्होंने प्रिंस को आगे बढ़ने के लिए सहायता दी.
इसी तरह वह चाहते थे कि परिवार के सभी लोग साथ रहें. उन्होंने पशुपति के लिए लिखा कि पापा के निधन के बाद वह परिवार के मुखिया थे. लेकिन, पापा के जाने के बाद उन्होंने कभी इस जिम्मेदारी को निभाना जरूरी नहीं समझा. मैंने उन्हें पिता की जगह स्थान देने की कोशिश की, उनसे मार्गदर्शन की उम्मीद रखी. लेकिन उन्होंने वह मुझे बेटा मानने की जगह प्रतिस्पर्थी समझने लगे.
इसके साथ ही उन्होंने तमाम बातें अपने पत्र में लिखीं. अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चिराग ने लिखा है कि हमें एक लंबी और राजनीतिक और सैद्धांतिक लडाई लडनी है, ये लडाई किसी व्यक्ति विशेष के अस्तित्व की नहीं बल्कि रामविलास पासवान की विचारधारा को बचाने की है. पार्टी से निकाले गए मुट्ठीभर लोग हम से हमारी पार्टी नहीं छीन सकते, पार्टी हमारी थी और हमारी ही रहेगी.