कानून वापस नहीं, निरस्त हो सकते हैं, कृषि कानूनों की वैधता का निर्णय न्यायालय करेगा: पीडीटी आचार्य

By भाषा | Published: January 17, 2021 12:43 PM2021-01-17T12:43:36+5:302021-01-17T12:43:36+5:30

Laws are not refundable, can be repealed, the court will decide the validity of agricultural laws: PDT Acharya | कानून वापस नहीं, निरस्त हो सकते हैं, कृषि कानूनों की वैधता का निर्णय न्यायालय करेगा: पीडीटी आचार्य

कानून वापस नहीं, निरस्त हो सकते हैं, कृषि कानूनों की वैधता का निर्णय न्यायालय करेगा: पीडीटी आचार्य

नयी दिल्ली, 17 जनवरी केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों का आंदोलन जारी है। सरकार के साथ उनकी बातचीत अब तक बेनतीजा रही है। किसान संगठन और विपक्षी दल इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, हालांकि सरकार इनको किसानों के हित में बता रही है। इन कानूनों को लेकर उच्चतम न्यायालय भी सुनवाई कर रहा है। इसी पृष्ठभूमि में लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य से पेश है ‘पीटीआई-भाषा’ के पांच सवाल:

सवाल: किसान संगठन और कई विपक्षी दल कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। क्या संसद से पारित कानूनों को वापस लिया जा सकता है?

जवाब: जो विधेयक संसद से पारित होकर कानून बन गया हो, उसे वापस नहीं लिया जा सकता। उसे सिर्फ निरस्त किया जा सकता है। विधेयक वापस लिए जा सकते हैं। अगर सरकार इन कानूनों को निरस्त करने के लिए तैयार होती है तो वह इनकी जगह दूसरे विधेयक लेकर आएगी। फिर संसद से नए विधेयकों को मंजूरी मिलेगी। इस तरह से पुराने कृषि कानून निरस्त हो जाएंगे।

सवाल: क्या अतीत में ऐसा कोई उदाहरण है कि किसी कानून के बनने के कुछ महीनों के भीतर ऐसी स्थिति पैदा होने पर उसे निरस्त किया गया हो?

जवाब: कई पुराने और अनुपयोगी कानूनों को निरस्त किया गया है और अक्सर किया जाता है। लेकिन मेरी स्मृति में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि संसद से कानून बनने के कुछ महीनों के भीतर जनता के दबाव में कानून निरस्त किया गया हो। मुझे नहीं पता कि इस गतिरोध में आगे क्या होगा, हालांकि सरकार इन कानूनों को निरस्त करने के लिए तैयार नहीं है।

सवाल: क्या सरकार ने कृषि कानूनों को लेकर जल्दबाजी की या उसकी तरफ से कोई चूक हुई?

जवाब: मेरे हिसाब से कृषि विधेयकों को पारित कराने में खामियां थीं और ये खामियां राज्यसभा में हुईं। सदन में जब वोट के लिए सदस्यों ने मांग कर दी तो सभापति या पीठासीन अधिकारी के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। ध्वनिमत से विधेयक पारित होते हैं, लेकिन किसी सदस्य ने मतदान की मांग कर दी तो यह करवाना ही पड़ेगा। अगर सभापति या पीठासीन व्यक्ति ऐसा नहीं करते हैं तो यह नियमों और संविधान के खिलाफ है।

सवाल: विपक्ष और किसान संगठनों का आरोप है कि विधेयकों को असंवैधनिक तरीके से पारित किया गया है, जबकि सरकार इसे संवैधानिक मानती है। इस संदर्भ में आपकी क्या राय है?

जवाब: संविधान के अनुच्छेद 100 के अनुसार सदन में हर मामला बहुमत के वोटों से तय होता है। बहुमत के वोट का फैसला तो मतदान से होगा। इन विधेयकों पर कई सदस्यों की मांग के बावजूद मतदान नहीं कराया गया। ऐसे में मेरा मानना है कि संविधान का उल्लंघन हुआ है।

सवाल: उच्चतम न्यायालय आगे किन प्रमुख संवैधानिक बिंदुओं के आधार पर इन कानूनों को लेकर सुनवाई कर सकता है?

जवाब: अनुच्छेद 122 के मुताबिक सदन की प्रक्रिया को आप अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। लेकिन प्रक्रिया में अनियमितता और संविधान के उल्लंघन को चुनौती दी जा सकती है। अगर संविधान के उल्लंघन की बात सर्वोच्च अदालत के समक्ष साबित होती है तो न्यायालय कानूनों को निरस्त कर सकता है। वह इनको राज्यसभा के पास भी भेज सकता है क्योंकि अगर ये प्रक्रिया के तहत पारित नहीं हुए हैं तो फिर ये अधिनियम नहीं हैं। ऐसे में उन्हें उच्च सदन के पास फिर से भेजा जा सकता है।

अब इन कानूनों की संवैधानिक वैधता का फैसला पूरी सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ही करेगा।

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