'न्यायाधीश को सुनवाई से दूर करने की कोशिश पसंद की पीठ चुनने का हथकंडा, अगर इसे स्वीकारा तो संस्थान को नष्ट कर देगा'

By भाषा | Published: October 17, 2019 05:48 AM2019-10-17T05:48:20+5:302019-10-17T05:48:20+5:30

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर पांच सदस्यीय संविधान पीठ से न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को अलग करने की मांग करने के पक्षकारों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया तो ‘‘यह इतिहास का सबसे काला अध्याय होगा, क्योंकि न्यायपालिका को नियंत्रित करने के लिये उसपर हमला किया जा रहा है।’’

Land acquisition case: Attempt for recusal of judge nothing but 'bench hunting says Supreme Court | 'न्यायाधीश को सुनवाई से दूर करने की कोशिश पसंद की पीठ चुनने का हथकंडा, अगर इसे स्वीकारा तो संस्थान को नष्ट कर देगा'

'न्यायाधीश को सुनवाई से दूर करने की कोशिश पसंद की पीठ चुनने का हथकंडा, अगर इसे स्वीकारा तो संस्थान को नष्ट कर देगा'

Highlightsउच्चतम न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ से एक न्यायाधीश को दूर रखने के प्रयासों की बुधवार को निंदा की।कोर्ट ने कहा कियह और कुछ नहीं बल्कि अपनी पसंद की पीठ चुनने का हथकंडा है और अगर इसे स्वीकार कर लिया गया तो यह ‘‘संस्थान को नष्ट कर देगा।’’

उच्चतम न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ से एक न्यायाधीश को दूर रखने के प्रयासों की बुधवार को निंदा करते हुए कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि अपनी पसंद की पीठ चुनने का हथकंडा है और अगर इसे स्वीकार कर लिया गया तो यह ‘‘संस्थान को नष्ट कर देगा।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर पांच सदस्यीय संविधान पीठ से न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को अलग करने की मांग करने के पक्षकारों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया तो ‘‘यह इतिहास का सबसे काला अध्याय होगा, क्योंकि न्यायपालिका को नियंत्रित करने के लिये उसपर हमला किया जा रहा है।’’

पीठ में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट भी हैं। शीर्ष अदालत पांच सदस्यीय पीठ से न्यायमूर्ति मिश्रा को अलग रखने की मांग करने वाली याचिका पर 23 अक्टूबर को आदेश सुनाएगी।

किसानों के कुछ संगठनों की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘यह अपनी पसंद की पीठ चुनने का प्रयास करने के अलावा और कुछ नहीं है। आप अपनी पसंद के व्यक्ति को पीठ में चाहते हैं। अगर हम आपके अनुरोध को स्वीकार कर लेते हैं और सुनवाई से अलग हो जाने के आपके नजरिये को स्वीकार कर लेते हैं तो यह संस्थान को नष्ट कर देगा। यह गंभीर मुद्दा है और इतिहास तय करेगा कि यहां तक वरिष्ठ अधिवक्ता भी इस प्रयास में शामिल थे।’’

दीवान ने कहा कि किसी न्यायाधीश को पक्षपात की किसी भी आशंका को खत्म करना चाहिये, अन्यथा जनता का भरोसा खत्म होगा और सुनवाई से अलग होने का उनका अनुरोध और कुछ नहीं बल्कि संस्थान की ईमानदारी को कायम रखना है। उन्होंने कहा कि उनकी प्रार्थना का सरोकार अपनी पसंद के व्यक्ति को पीठ में शामिल कराने से दूर-दूर तक नहीं है और ‘‘वैश्विक सिद्धांत हैं जिन्हें यहां लागू किया जाना है। हम सिर्फ इस ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।’’

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि पीठ से उनके अलग होने की मांग करने वाली याचिका ‘‘प्रायोजित’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम इन प्रयासों के आगे झुक गए तो यह इतिहास का सबसे काला अध्याय होगा। ये ताकतें न्यायालय को किसी खास तरीके से काम करने के लिये मजबूर करने का प्रयास कर रही हैं। इस संस्थान को नियंत्रित करने के लिये हमले किये जा रहे हैं। यह तरीका नहीं हो सकता, यह तरीका नहीं होना चाहिये और यह तरीका नहीं होगा।’’

किसी का भी नाम लिये बिना न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘ये ताकतें हैं जो इस न्यायालय को खास तरीके से काम करने के लिये मजबूर करने का प्रयास कर रही हैं, वही मुझे पीठ में बने रहने को मजबूर कर रही हैं। अन्यथा, मैं अलग हो जाता।’’

उन्होंने कहा कि न्यायाधीश के तौर पर लोगों के लिये संस्थान की रक्षा करने की जिम्मेदारी को वह जानते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इस संस्थान में जो कुछ भी हो रहा है, वह वाकई हैरान करने वाला है।’’ दीवान ने विभिन्न निर्णयों का उल्लेख किया और कहा कि जब किसी न्यायाधीश के सुनवाई से अलग होने की मांग की जाती है तो उसे अनावश्यक संवेदनशील नहीं होना चाहिए, इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लेना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘झुकाव तथ्यों पर हो सकता है, यह कानून के एक सवाल पर भी हो सकता है। यहां हम भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 24 की व्याख्या पर विचार कर रहे हैं। यह पीठ जिस विस्तृत निर्णय विचार कर रही है, वह उक्त न्यायाधीश द्वारा दिया गया है और इसमें झुकाव का तत्व है।’’

दीवान ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या यह सही है अगर किसी न्यायाधीश ने किसी मुद्दे पर निर्णय लिया है और फिर उस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को सौंपा जाता है, तो क्या न्यायाधीश को उस बड़ी पीठ का हिस्सा होना चाहिए? न्यायमूर्ति मिश्रा ने न्यायाधीश के सुनवाई से अलग हो जाने के लिए पांच घंटे से अधिक समय तक निडर होकर बहस करने के लिए दीवान की सराहना की, जिसमें मुश्किल से तीस मिनट लगते। उन्होंने कहा कि यह एक अच्छा गुण है और वकील में यह विशेषता होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, "अब मेरा सवाल यह है कि अगर आप न्यायाधीश के सुनवाई से अलग हो जाने पर निडर होकर बहस कर सकते हैं तो मुद्दे के गुण-दोष पर निडर होकर बहस करने में क्या हर्ज है।’’ दीवान ने सराहना के लिए न्यायालय को धन्यवाद दिया और कहा, "एक बार पीठ का गठन हो जाता है तो वादी बिना किसी झुकाव के मुद्दे पर फैसला किये जाने की अदालत से उम्मीद करता है।’’ इसी तरह वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी और गोपाल शंकरनारायणन ने भी न्यायमूर्ति मिश्रा के सुनवाई से अलग हो जाने पर दलील देते हुए कहा कि जरूरत संस्था की रक्षा की है।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक प्रवृत्ति उभर रही है जिसमें सुनवाई की पूर्व संध्या पर रिपोर्ट और लेख प्रकाशित किए जाते हैं। इस पर, न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, "इन परिस्थितियों के आधार पर मेरा दृढ़ संकल्प मजबूत हुआ है। उन्होंने मुझे सुनने के लिए इस शर्मिंदगी में डाल दिया है। एक निश्चित लॉबी है जो किसी चीज की आड़ में न्यायालय को नियंत्रित करने का प्रयास कर ही है।

यह प्रायोजित प्रयास है।’’ मेहता ने कहा कि यह निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए एक बौद्धिक रूप से गलत तरीका है और सभी जानते हैं कि ये सोशल मीडिया संदेश कहां से उत्पन्न होते हैं और वायरल होते हैं। उन्होंने कहा, "किसानों की ओर से भारत के प्रधान न्यायाधीश को एक ज्ञापन भेजा गया जिसे कुछ ही मिनटों के भीतर वायरल कर दिया गया। ये किसान नहीं, बल्कि कुछ अन्य ताकतें हैं।"

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि गरीब किसान इसके पीछे नहीं हैं बल्कि इसके पीछे शक्तिशाली ताकत हैं और "जब मैं इस संस्थान में हूं, तो इसकी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है।" न्यायमूर्ति मिश्रा पिछले साल फरवरी में वह फैसला सुनाने वाली पीठ के सदस्य थे जिसने कहा था कि सरकारी एजेन्सियों द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण का मामला अदालत में लंबित होने की वजह से भू स्वामी द्वारा मुआवजे की राशि स्वीकार करने में पांच साल तक का विलंब होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

इससे पहले, 2014 में एक अन्य पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मुआवजा स्वीकार करने में विलंब के आधार पर भूमि अधिग्रहण रद्द किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह मार्च को कहा था कि समान संख्या के सदस्यों वाली उसकी दो अलग-अलग पीठ के भूमि अधिग्रहण से संबंधित दो अलग-अलग फैसलों के सही होने के सवाल पर वृहद पीठ विचार करेगी। 

Web Title: Land acquisition case: Attempt for recusal of judge nothing but 'bench hunting says Supreme Court

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