जम्मू: लद्दाखियों को छठी अनुसूची पर सहमति की खुशी नहीं, राज्य का दर्जा पाने को चेतावनियों पर जोर
By सुरेश एस डुग्गर | Published: February 25, 2024 12:52 PM2024-02-25T12:52:44+5:302024-02-25T12:55:13+5:30
जम्मू: आंदोलनरत लद्दाखी नेताओं और केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधिकारियों के बीच कल हुई महत्वपूर्ण बैठक में लद्दाख को संविधान की 6ठी अनुसूची में स्थान देने की सहमति की खबरें हैं।
जम्मू: आंदोलनरत लद्दाखी नेताओं और केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधिकारियों के बीच कल हुई महत्वपूर्ण बैठक में लद्दाख को संविधान की 6ठी अनुसूची में स्थान देने की सहमति की खबरें हैं। पर यह लद्दाखियों को फिलहाल कोई खुशी इसलिए नहीं दे पा रही है क्योंकि वे उस केंद्र शसित प्रदेश के दर्जे से घुटन महसूस कर रहे हैं जिसे पाने के लिए उन्होंने 30 से ज्यादा साल तक संघर्ष किया था।
यही कारण है कि राज्य का दर्जा पाने की खातिर वे चेतावनियां और धमकियां जारी कर रहे हैं। यह बात अलग है कि ये चेतावनियों और धमकियां गांधी गिरी के रास्ते पर चलने वाली ही हैं। मिलने वाली खबरों के अनुसर, केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधिकारियों के बीच शनिवार को बनी सहमति के अनुसार, अगली बैठक में लद्दाखी नागरिक समाज के कानूनी व सांविधानिक विशेषज्ञ और सरकारी अधिकारी लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इसे छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की वैधता और संदर्भ पर चर्चा के लिए एक साथ आएंगे।
जानकारी के लिए संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची जनजातीय आबादी की रक्षा करती है, स्वायत्त विकास परिषदों के निर्माण की अनुमति देती है जो भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि पर कानून बना सकती हैं। अब तक, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं। दरअसल लेह एपेक्स बाडी (एलएबी) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सदस्यों ने शनिवार को तीसरे दौर की बैठक के लिए एमएचए अधिकारियों से मुलाकात की।
संयुक्त रूप से लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने और इसे आदिवासी दर्जा देने, स्थानीय निवासियों के लिए नौकरी में आरक्षण, लेह व करगिल के लिए एक-एक संसदीय सीट और अलग लोक सेवा आयोग की मांग कर रहे हैं। हालांकि सभी मुद्दों पर अभी बातचीत जारी है, पर लद्दाखी नेता साथ ही में दबाब की रणनीति भी अपनाए हुए हैं।
सबसे अधिक दबाव सोशल वर्कर और मैगसासे पुरस्कार से सम्मानित सोनम वांगचुक बनाए हुए हैं जो वार्ता के विफल होने पर आमरण अनशन की धमकी दे रहे हैं। वे पहले भी दो बार भूखहड़ताल पर बैठ चुके हैं। एक बार वे बर्फ के बीच पांच दिनों तक भूखहड़ताल कर चुके हैं जिस कारण पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने में लद्दाखी कामयाब रहे थे।