कश्मीर में आतंकवाद से बड़ी समस्या बनी कुंवारीं लड़कियां, नहीं मिल रहे लड़कियों को दूल्हे
By सुरेश डुग्गर | Published: October 20, 2018 05:56 AM2018-10-20T05:56:08+5:302018-10-20T05:56:08+5:30
अंजुम नसीम (बदला हुआ नाम) ने वर्ष, 1995 में बीडीएस की प्रोफेशनल डिग्री हासिल की थी। चार साल के प्रयास के बाद किसी तरह एक कान्वेंट स्कूल में नौकरी मिली। डाक्टर होने के बावजूद उसके परिवारीजनों को डाक्टर या इंजीनियर जैसे रिश्ते नहीं मिल पाए।
आतंकवाद के कारण पनपी नकारात्मक प्रवृतियों ने कश्मीर घाटी के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर डाला है। यहां शादी के लिए लड़की का नौकरी करना लाजमी बन गया है। समय पर शादी की परंपरा भी धूमिल हुई है। कश्मीरी लड़कियों की ढलती उम्र में शादी के भी बुरे परिणाम आ रहे हैं।
अंजुम नसीम (बदला हुआ नाम) ने वर्ष, 1995 में बीडीएस की प्रोफेशनल डिग्री हासिल की थी। चार साल के प्रयास के बाद किसी तरह एक कान्वेंट स्कूल में नौकरी मिली। डाक्टर होने के बावजूद उसके परिवारीजनों को डाक्टर या इंजीनियर जैसे रिश्ते नहीं मिल पाए। वजह यही कि वह अच्छी नौकरी में नहीं है।
अंजुम की तरह वहीदा ने जूलोजी में पीएचडी की है। उसे अच्छा रिश्ता इसलिए नहीं मिल रहा, क्योंकि मंजिमयोर यानि शादी के लिए रिश्ते लाने वालों की सूची में केवल नौकरीपेशा लड़की ही प्राथमिकता पर है। इनके विपरीत केवल ग्रेजुएट शाहिदा को अच्छा वर समय पर मिल गया, क्योंकि वह सरकारी नौकरी कर रही है। उसका पद जूनियर असिस्टेंट जरूर है।
शोधकर्ता प्रो. बशीर अहमद डाबला कश्मीर में ऐसा प्रवृत्ति बढ़ने की बात स्वीकारते हैं। वह कहते हैं कि आतंकवाद के चलते हर कोई वित्तीय स्तर पर मजबूत होना चाहता है। वह चाहे पत्नी द्वारा कमाई के बूते पर ही क्यों न हो।
डाबला कहते हैं कि मैटीरियलिस्टिक होने का खामियाजा भी लड़कियों को ही भुगतना पड़ रहा है। लड़कियों के नौकरी न करने से अपनी ही जात या खानदान में शादी की सदियों पुरानी परंपरा भी टूट रही है। दरअसल, लड़के वाले अपने खानदान या कास्ट में नौकरीपेशा लड़की न मिलने पर बाहर से शादियां करने में संकोच नहीं करते हैं।
महिला आयोग की सचिव बताती हैं कि इस उलझन के हल के लिए उनके पास भी कई मामले आए। लेकिन इस सामाजिक प्रकरण पर हम कुछ नहीं कर सकते हैं। हम सरकार को यह सुझाव जरूर दे सकते हैं कि कम से कम प्रोफेशनल डिग्रीधारी लड़कियों को कामकाज शुरू करने के लिए लोन की सुविधाएं दी जाएं। वह कहती हैं कि अब यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैशन के तौर पर ज्यादा फैल रही है।