स्टालिन के लिए आसान नहीं होगी करुणानिधि की विरासत की लड़ाई, अलागिरी चुप नहीं बैठेंगे
By भाषा | Published: August 8, 2018 04:58 PM2018-08-08T16:58:03+5:302018-08-08T17:03:19+5:30
उत्तराधिकार संघर्ष के चरम पर रहने के दौरान अलागिरी ने एक बार सवाल किया था कि क्या द्रमुक एक मठ है जहां महंत अपना उत्तराधिकारी चुन सकते हैं। उनका इशारा अपने पिता की ओर था।
चेन्नई, आठ अगस्त (भाषा) द्रमुक कार्यकर्ताओं के साथ ही आम लोगों के जेहन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या पार्टी में उत्तराधिकार की लड़ाई फिर शुरू होगी या एम के स्टालिन पार्टी में अपना प्रभुत्व बनाए रखेंगे। एम करुणानिधि ने अपने जीवनकाल में ही स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था।
करुणानिधि करीब पांच दशक तक द्रमुक प्रमुख रहे और उनके देहांत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के मन में यह सवाल उठ रहा है। करुणानिधि के दो पुत्रों एम के अलागिरी और एम के स्टालिन के बीच कई वर्षेां से संघर्ष चल रहा है। अलागिरी संप्रग सरकार में मंत्री भी रहे थे और उन्हें 2014 में पार्टी से निकाल दिया गया था।
उत्तराधिकार संघर्ष के चरम पर रहने के दौरान अलागिरी ने एक बार सवाल किया था कि क्या द्रमुक एक मठ है जहां महंत अपना उत्तराधिकारी चुन सकते हैं। उनका इशारा अपने पिता की ओर था।
अलागिरी पार्टी से निष्कासन के बाद राजनीतिक निर्वासन में मदुरै में रह रहे थे। लेकिन करुणानिधि जब चेन्नई के एक अस्पताल में भर्ती थे तो अलागिरी पूरे परिवार के साथ थे। द्रमुक के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी में फिर से उत्तराधिकार संघर्ष होने की कोई आशंका नहीं है।
उन्होंने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर पीटीआई से कहा, "हर मुद्दे को सुलझा लिया गया है।"
उन्होंने कहा कि द्रमुक परिवार ने करुणानिधि के अस्पताल में भर्ती होने से लेकर सात अगस्त को उनकी मृत्यु तक एकजुट परिवार तस्वीर पेश की।
उन्होंने कहा, "यह विवाद खत्म हो गया है। हर मुद्दे को सुलझा लिया गया है क्योंकि इस अवधि के दौरान परिवार के सभी सदस्यों ने नियमित रूप से एक-दूसरे से बातचीत की थी।"
हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षक और वरिष्ठ पत्रकार श्याम षणमुगम द्रमुक नेता की राय से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह उत्तराधिकार की लड़ाई तुरंत शुरू होगी। भाइयों के बीच लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी। उन्होंने कहा कि स्टालिन को समावेशी राजनीति करनी चाहिए।
उन्होंने दावा किया कि उत्तराधिकार को लेकर विवाद होगा। सत्तारूढ़ भाजपा का एजेंडा क्षेत्रीय दलों को कमजोर करना है। अब वे द्रमुक को कमजोर करने की कोशिश करेंगे क्योंकि करुणानिधि अब नहीं रहे।
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