कर्नाटक: लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देकर सिद्धारमैया ने 'योगी-मोदी-शाह' के लिए बिछाई है नई बिसात

By खबरीलाल जनार्दन | Published: March 20, 2018 07:35 AM2018-03-20T07:35:40+5:302018-03-20T07:35:40+5:30

कर्नाटक में इसी साल विधान सभा चुनाव होने हैं। लिंगायत राज्य में बड़ी संख्या में हैं। कुछ लिंगायत संगठन लम्बे समय से लिंगायत को अलग धर्म देने की माँग करते आ रहे थे। मामला अदालत भी पहुँचा था। अब राज्य की कांग्रेस सरकार ने अपनी मंजूरी देकर गेंद को नरेंद्र मोदी सरकार के पाले में पहुँचा दिया है।

Karnataka: Siddaramaiah Government accepted Lingayat as a separate religion to set Narendra Modi, Amit Shah and Yogi Adityanath | कर्नाटक: लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देकर सिद्धारमैया ने 'योगी-मोदी-शाह' के लिए बिछाई है नई बिसात

कर्नाटक: लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देकर सिद्धारमैया ने 'योगी-मोदी-शाह' के लिए बिछाई है नई बिसात

Highlightsकनार्टक के कुल वोट का 18 फीसदी लिंगायत समुदाय वोटजब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत पार्टी से नाराज हो गएअब बीजेपी और कांग्रेस में लिंगायतों को अपने पक्ष में करने की होड़ है

कनार्टक के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। फिलहाल इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अप्रैल में चुनाव होने के आसार हैं। प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार का कार्यकाल आगामी मई में समाप्त होगा। इसलिए तीनों ही प्रमुख पार्टियां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) व जनता दल सेकुलर (जेडीएस) अघोषित चुनाव प्रचार में कूद गई हैं। ऐसे में सत्तारूढ़ कांग्रेस की सिद्धारमैय्या सरकार के सोमवार को राज्य कैबिनेट में लिंगायत को अलग धर्म के दर्जा देने के अहम फैसले को एक बड़े सियासी दांव के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन क्यों? कौन हैं लिंगायत, सीएम के इस कदम को इतना बड़ा क्यों माना जा रहा है?

कनार्टक में लिंगायत की सियासी ताकत

कनार्टक के कुल मतदाताओं का 18 फीसदी लिंगायत समुदाय से है। ऐसे में यह कर्नाटक में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं, आज से नहीं आजादी के बाद से ही। शुरुआत में इन्होंने कांग्रेस को समर्थन दिया और देते रहे। तब तक जब तक साल 1989 में राजीव गांधी ने एक विवाद की वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को पद से हटाया तो लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस का दामन छोड़कर रामकृष्ण हेगड़े का समर्थन किया। 

हेगड़े के निधन के बाद बीजेपी के येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता हुए। लेकिन जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटाया तो लिंगायतों ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिए। इसीलिए अब कांग्रेस इस मौके पर भुनाने की ताक में है। लेकिन येदियुरप्पा इस बार चुनाव में फिर से बीजेपी के चेहरे हैं। इसलिए मुकाबला रोमांचक हो गया है। 

लिंगायत: राजनैतिक ताकत, प्रमुख बातें

*कनार्टक के कुल वोट का 18 फीसदी लिंगायत समुदाय वोट

*लिंगायत को अगड़ी जाति का समुदाय माना जाता है

*आजादी के बाद कांग्रेस को लिंगायतों का समर्थन रहा 

*1989 में राजीव गांधी के सीएम पाटिल को पद से हटाने से लिंगायत नाराज

*कांग्रेस से नाराज लिंगायत समुदाय ने जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े को समर्थन दिया

*हेगड़े के निधन के बाद बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने

*बीएस येदियुरप्पा को लिंगायतों का तगड़ा सपोर्ट था

*लेकिन जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत फिर नाराज हो गए

*अब बीजेपी और कांग्रेस में लिंगायतों को अपने पक्ष में करने की होड़ है

लिंगायत के अलग धर्म की मांग क्यों

12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। वे मूर्ति पूजा नहीं मानते थे। वह वेदों में लिखी बातों को भी नहीं मानते थे लिंगायत समुदाय के लोग भी शिव की पूजा भी नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर ही इष्टलिंग धारण करते हैं। यह एक गेंद की आकृति के समान होती है। यह मृत्यु के बाद लाश को जलाने के बजाए उसे दफनाने के समर्थक हैं। इन्हीं सब बातों को लेकर वे लंबे समय से अपने अलग धर्म की मांग कर रहे थे। अब उन्हें इसका दर्जा मिला है।

लिंगायत: धार्मिक मान्यताएं

*12वीं सदी में बासवन्ना की अगुआई में विकसित हुआ समुदाय

*बासवन्ना हिन्‍दुओं में जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलनकारी थे

*बासवन्ना मूर्ति पूजा और वेदों के खिलाफ थे

*उनकी प्रेरणा से लिंगायत भी भगवान शिव तक की पूजा नहीं करते

*लिंगायत अपने शरीर पर ही इष्टलिंग धारण करते हैं

*वे लाश जलाने के नहीं बल्कि दफनाने के समर्थक हैं

*वे अपने लिए हिन्दू से अलग धर्म की मांग करते रहे हैं

*अब उनके धर्म को सिद्धरमैय्या ने मान्यता दी है

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