कर्नाटक हाईकोर्ट: केवल विवाह करने से बेटियों का बीमा हक नहीं मरता, बीमा कंपनी को देना होगा मुआवजा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 12, 2022 02:12 PM2022-08-12T14:12:34+5:302022-08-12T14:19:24+5:30

कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीमा क्लेम विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि देश की सर्वेच्च अदालत ने भी बीमा क्लेम के विषय में शादीशुदा बेटियों को भी मुआवजे का हकदार बताया है।

Karnataka High Court: Mere marriage does not end the insurance rights of the daughter, the insurance company will have to pay compensation | कर्नाटक हाईकोर्ट: केवल विवाह करने से बेटियों का बीमा हक नहीं मरता, बीमा कंपनी को देना होगा मुआवजा

फाइल फोटो

Highlightsकर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि विवाहित होने के बाद बेटियों का बीमा क्लेम खारिज नहीं होता हाईकोर्ट ने कहा कि विवाहित बेटियां माता-पिता के बीमा राशि को पाने का पूरा हक रखती हैं मृतक की बेटियां विवाहित हैं, इस कारण बीमा क्लेम खारिज नहीं किया जा सकता है

बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीमा विवाद के विषय में दायर एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल विवाह के आधार पर बेटियों द्वारा किये जाने वाला बीमा क्लेम को खारिज नहीं किया जा सकता है, बल्कि विवाहित बेटियां भी अपने माता-पिता के बीमा राशि को पाने का पूरा हक रखती हैं और बीमा कंपनियों को उन्हें मुआवजे की धनराशि देनी होगी।

फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि देश की सर्वेच्च अदालत ने भी बीमा क्लेम के विषय में शादीशुदा बेटियों को भी मुआवजे का हकदार बताया है।

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा, "कोर्ट इस आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर सकती है कि बेटियां विवाहित हैं या फिर अविवाहित हैं। इसलिए लिहाज से इस तर्क को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि चूंकि मृतक की बेटियां विवाहित हैं, इस आधार पर वो बीमा राशि की हकदार नहीं हैं।"

मामले में आदेश देते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस एचपी संदेश ने कहा बीमा कंपनी द्वारा दायर इस याचिका को खारिज किया जाता है। बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में जो याचिका दायर की थी, उसमें कंपनी ने कर्नाटक में 57 साल की मृत रेणुका की विवाहित बेटियों द्वारा मांगी गई बीमा मुआवजे को चुनौती दी गई थी। रेणुका की मौत 12 अप्रैल 2012 को उत्तरी कर्नाटक में हुबली के यमनूर के पास दुर्घटना में हो गई थी।

रेणुका की मौत के बाद उनके पति, तीन बेटियों और एक बेटे ने बीमा कंपनी से मुआवजे की मांग की थी। मोटर दुर्घटना दावा ट्राइब्यूनल ने रेणुका के परिवार को 6 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ 5,91,600 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था।

बीमा कंपनी ने ट्राइब्यूनल के इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जिसमें कंपनी की ओर से कहा गया था कि चूंकि मृतका की बेटियां विवाहित हैं, इसलिए वो मुआवजे का दावा नहीं कर सकती हैं क्योंकि वो मृतका की आश्रित नहीं हैं। इसलिए "मृतक आश्रित" आधार पर मुआवजा देना गलत होगा।

बीमा कंपनी के इस तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि निर्भरता का मतलब केवल वित्तीय निर्भरता नहीं होता है। अदालत ने बीमाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि ट्राइब्यूनल ने इस मामले में अत्यधिक मुआवजा दिया है। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

Web Title: Karnataka High Court: Mere marriage does not end the insurance rights of the daughter, the insurance company will have to pay compensation

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