येदियुरप्पा ने विधानसभा में चला '1996 का वाजपेयी कार्ड', आंखों में आंसू भरकर गिराई BJP की सरकार
By खबरीलाल जनार्दन | Published: May 19, 2018 02:45 PM2018-05-19T14:45:42+5:302018-05-19T16:29:20+5:30
अटल बिहारी वाजपेयी का फ्लोर टेस्ट भारतीय राजनीतिक इतिहास का ये सबसे करीबी और रोमांचक अविश्वास प्रस्ताव का मुकाबला था।
बेंगलुरु, 19 मईः कर्नाटक में फ्लोर टेस्ट से डेढ़ घंटे पहले मीडिया और सोशल मीडिया में ये अफवाह तेजी से फैल रही है कि बीएस येदियुरप्पा बहुमत परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे सकते हैं। इसके बाद विधानसभा में अपने 13 पेज का भाषण पूरा करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया। इसकी तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी लगभग ऐसी ही स्थिति में बहुमत परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था और जोरदार भाषण दिया था जो आज भी यूट्यूब पर काफी लोकप्रिय है। आइए आपको बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी को किन हालत में इस्तीफा देना पड़ा था और येदियुरप्पा की स्थिति उनसे कितनी मिलती-जुलती है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने शक्ति परीक्षण ऐन पहले दिया था इस्तीफा
16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उनकी सरकार चली गई थी। लेकिन इस दौरान एक अद्भुत भाषण पढ़ते हुए उन्होंने फ्लोर टेस्ट से पहले ही पीएम पद इस्तीफा दे दिया था। ताकि फ्लोर टेस्ट में फेल होने के बाद उन्हें गद्दी छोड़ने की तोहमत ना उठानी पड़े। (जरूर पढ़ेंः रेड्डी ब्रदर्स की वजह से जा चुकी है बीएस येदियुरप्पा की कुर्सी, इस बार बने संकटमोचक)
फ्लोर टेस्ट में फेल हुए हैं अटल बिहारी वाजपेयी
17 अप्रैल 1999 की सुबह 11 बजे का वक्त था। भारतीय संसद में गहमागहमी कुछ बढ़ी हुई थी। सभी सांसद अपनी-अपनी जगह पर बैठ चुके थे। कुछ ही देर में भारतीय संसद एक ऐतिहासिक पल का गवाह बनने जा रही थी। सदन में बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होना था। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही देर पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। सदन की कार्यवाही शुरू हुई। बसपा सुप्रीमो मायावती खड़ी हुई और उन्होंने बीजेपी सरकार के खिलाफ वोट कर दिया। भारतीय राजनीतिक इतिहास का ये सबसे करीबी और रोमांचक अविश्वास प्रस्ताव होने जा रहा था।
इस पूरे घटनाक्रम की आधारशिला इस अविश्वास प्रस्ताव से 13 महीने पहले रखी जा चुकी थी। 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सका। कई पार्टियों के बाहरी समर्थन से सरकार बनी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुने गए। सरकार गठन के साल भर के अंदर एआईएडीएमके पार्टी की जयललिता ने गठबंधन से असंतोष जाहिर कर दिया। वो तमिलनाडु की डीएमके सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिराना चाहती थी। लेकिन केंद्र की वाजपेयी सरकार ने उनकी इस मांग पर सहमति नहीं जताई। इसके बाद जयललिता ने एनडीए का साथ छोड़ने का फैसला किया और अविश्वास प्रस्ताव की पृष्ठभूमि तैयार हुई। (जरूर पढ़ेंः कांग्रेस के ये 4 MLA हैं शक के घेरे में, दो विधान सभा नहीं पहुंचे, दो शपथ लेकर हुए 'गायब')
कांग्रेस ने इसे सरकार गिराने के मौके के तौर पर देखा और वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। 17 अप्रैल 1999 को लोकसभा में प्रस्ताव पर बहस और वोटिंग होनी थी। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही देर पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। सदन की कार्यवाही शुरू हुई। बसपा सुप्रीमो मायावती खड़ी हुई और थोड़ी देर पहले के अपने स्टैंड को बदल दिया। उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट कर दिया। सत्ता पक्ष में खामोशी छा गई। अब नजरें विपक्षी बेंच पर बैठे गिरिधर गमांग पर जाकर टिक गई।
फ्लोर टेस्ट में फेल होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था सैल्यूट
ओडिशा के कोरापुट से सांसद गिरधार गमांग ने दो महीने पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। नियम के अनुसार मुख्यमंत्री बनने के छह महीने के भीतर सदन से इस्तीफा देना होता है। लेकिन नैतिक रूप से दो संवैधानिक पदों पर बैठना उचित नहीं है। बीजेपी नैतिकता के भरोसा अपनी नैया पार लगना चाहती थी। गिरधर गमांग बैठे मुस्कुरा रहे थे। गमांग ने भी बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर दिया। अब बीजेपी की आखिरी उम्मीद नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज़ थे। (जरूर पढ़ेंः कर्नाटक बहुमत परीक्षण: मिल गए कांग्रेस के 2 लापता विधायक, पुलिस सुरक्षा में होटल से निकाले गए)
नेशनल कांफ्रेंस का वाजपेयी सरकार को समर्थन था। सासंद सैफुद्दीन सोज़ ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया। मतदान पूरा हो चुका था। अब बारी वोटों की गिनती की थी। वाजयेपी सरकार के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े। महज एक वोट से 13 महीने पुरानी वाजपेयी सरकार गिर गई।
सदन खामोश था। अटल बिहारी वाजपेयी अपना हाथ उठाकर सैल्यूट की मुद्रा में माथे तक ले गए। उन्होंने जनादेश को स्वीकार कर लिया था। बाद के कुछ भाषणों में उन्होंने कहा कि जो सरकार जोड़-तोड़ और अनैतिकता से चलती हो उसे मैं चिमटे से भी छूने से मना कर दिया। भारतीय राजनीतिक इतिहास में यह सबसे करीबी मुकाबला जिसे एक सबक के तौर पर हमेशा याद किया जाता है।
ये था अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण, वीडियो
बीएस येदियुरप्पा की क्या है मौजूदा स्थिति-
कर्नाटक के स्थानीय चैनल टीवी-5 के अनुसार बीजेपी सदन में 104 से आगे नहीं बढ़ पाई है। तमाम उठा-पटक के बाद, कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों गायब होने के बाद भी बहुमत के लिए कम से कम 109 विधायकों की जरूरत पड़ने वाली थी। बीजेपी ने माना कि वह बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे और उन्होंने एक भ्ाावुक भाषण देकर इस्तीफा दे दिया।