कर्नाटक चुनाव परिणाम: इन 5 कारणों से कांग्रेस ने दक्षिणी राज्य में बड़ी जीत हासिल की
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: May 14, 2023 02:16 PM2023-05-14T14:16:56+5:302023-05-14T14:27:03+5:30
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला है। राज्य की कुल 224 विधानसभा सीट में से कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत दर्ज की है। कांग्रेस का मानना है कि कर्नाटक में जीत राष्ट्रीय राजनीति में उनके पुनरुत्थान को सुनिश्चित करेगी। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की सफलता के पीछे के 5 बड़े कारण ये रहे।
Karnataka election results: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 224 सीटों में से 135 सीटों पर जीत दर्ज की। भारतीय जनता पार्टी, जो राज्य में सत्ता में थी, ने 65 सीटों पर जीत हासिल की। एग्जिट पोल आने के बाद किंगमेकर की भूमिका में दिख रही जनता दल (सेक्युलर) महज 19 सीटों पर सिमट कर रह गई। कांग्रेस का मानना है कि कर्नाटक में जीत राष्ट्रीय राजनीति में उनके पुनरुत्थान को सुनिश्चित करेगी। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की सफलता के पीछे के 5 बड़े कारण ये रहे।
1- बजरंग दल पर की गई घोषणा से पीछे हटना
कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में 'बजरंग दल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने' के वादे से जुड़ा विवाद इस पुरानी पार्टी की संभावनाओं को खत्म कर सकता था। इस बात ने एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ दी और प्रधानमंत्री सहित सभी बड़े भाजपा नेताओं के भाषणों जोर शोर से इसका जिक्र किया गया। लेकिन एक बार जब विवाद शुरू हो गया, तो कांग्रेस सावधानी बरतते हुए अपने रुख से पीछे हट गई और कहा कि संगठन पर प्रतिबंध लगाने की उसकी कोई योजना नहीं है। डीके शिवकुमार, जो कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के नायक के रूप में उभरे हैं, ने कहा कि अगर वे आते हैं तो पार्टी राज्य भर में बजरंग बली मंदिरों का निर्माण करेगी।
2- राज्य स्तरीय जननेता
एक राज्य का चुनाव अक्सर केवल एक राज्य का चुनाव होता है और मतदाता अक्सर राष्ट्रीय राजनीति के व्यापक दायरे के बजाय अपनी तात्कालिक चिंताओं से सीधे जुड़े मामलों पर वोट देने का फैसला करते हैं। कर्नाटक में यही हुआ। चुनावी राजनीति से बीएस येदियुरप्पा की क्रमिक सेवानिवृत्ति का मतलब था कि भाजपा के पास राज्यव्यापी अपील वाला एक जन नेता नहीं था। बासवराज बोम्मई जनता का भरोसा नहीं जीत सके। दूसरी ओर कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व कर्नाटक अभियान से लगभग अनुपस्थित था। भारत जोड़ो यात्रा को छोड़कर, कर्नाटक अभियान को लगभग पूरी तरह से सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार द्वारा आगे बढ़ाया गया था।
3- भ्रष्टाचार पर ध्यान: 40% सरकार अभियान
भारत में नारे अक्सर चुनाव जीत जाते हैं। कांग्रेस पार्टी के 40% वाली सरकार अभियान ने उसके पक्ष में काम किया। ऐसा लगता है कि कर्नाटक के मतदाताओं को कांग्रेस का ये नारा पसंद आया। कर्नाटक में चुनावों में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया था और कांग्रेस बिना डगमगाए अपने अभियान के दौरान भ्रष्टाचार पर अपना ध्यान केंद्रित करने में सफल रही। पार्टी ने यह सुनिश्चित किया कि वह हर अवसर पर भाजपा नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रहे।
4- अमूल बनाम नंदिनी की लड़ाई
अमूल की घोषणा के बाद कि वह अपने उत्पादों को कर्नाटक में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बेचेगी, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह राज्य के घरेलू सहकारी-आधारित दूध ब्रांड नंदिनी को समाप्त करने की केंद्र की योजना थी। कर्नाटक के डेयरी उद्योग पर 25 लाख से अधिक लोगों के आश्रित होने के कारण, यह अभियान कि उद्योग को जोखिम हो सकता है, ने एक भय पैदा कर दिया और मतदाताओं को भाजपा से अलग कर दिया।
5- राहुल गांधी की अनुपस्थिति
राहुल गांधी का खराब चुनावी रिकॉर्ड रहा है। उनके अभियानों, भाषणों, का अक्सर मतदाताओं पर विपरीत असर होता है। इस बार, जबकि भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने अपनी पूरी ऊर्जा कर्नाटक अभियान में झोंक दी, कांग्रेस राहुल गांधी को कर्नाटक से दूर रखने में सफल रही। सुनियोजित जनसंपर्क के हिस्से के रूप में नंदिनी आइसक्रीम खाते हुए राहुल गांधी के कुछ वीडियो सामने आए। राहुल ने बेहद कम रैलियां भी कीं।