हिंदी के जाने-माने व्यंग्यकार और मज़ाकिया कवि 'काका हाथरसी' का असली नाम प्रभु लाल गर्ग था। उन्होंने एक नाटक किया था जिसमें 'काका' किरदार खूब प्रसिद्ध हुआ। लोग उन्हें काका नाम से ही बुलाने लगे। कविताएं लिखने के क्रम में उन्होंने गृह नगर हाथरस का नाम जोड़ लिया और बन गए- काका हाथरसी। उन्होंने हास्य व्यंग्य कविताओं के साथ-साथ गद्य और नाटक की कुल 42 किताबें लिखी हैं। वसंत नाम से भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित भी तीन किताबें लिखी हैं।
काका हाथरसी ने 1932 में संगीत कार्यालय नाम के प्रकाशन केंद्र की स्थापना की जो भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की पुस्तकें प्रकाशित करता था। 1935 में संगीत नाम की पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू हुआ जो 78 वर्षों तक जारी रहा। काका हाथरसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे- लेखक, कवि, संगीतकार, अभिनेता और पेंटर। इसके अलावा हिंदी कवि सम्मेलनों की भी शान बढ़ाते रहते थे। काका हाथरसी उन गिने-चुने कविताओं में से जिन्होंने मंच पर तीखे व्यंग्य और हास्य की परंपरा शुरू की। भारत सरकार ने 1985 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया।
18 सितंबर का अजीब संयोग है कि काका हाथरसी का जन्मदिवस और पुण्यतिथि दोनों पड़ती है। इस खास दिन पर उनको याद करते हुए पढ़िए कुछ हास्य-व्यंग्य की कविताएं, जो गुदगुदी का मज़ा देकर तलवार का घाव करती हैं।
1. हिंदी की दुर्दशा / काका हाथरसी
बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्यसुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्यहै हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचाकहँ 'काका', जो ऐश कर रहे रजधानी मेंनहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में
पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूसहिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूसजाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादीइंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदीकहँ 'काका' कविराय, ध्येय को भेजो लानतअवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत
2. पंचभूत / काका हाथरसी
भाँड़, भतीजा, भानजा, भौजाई, भूपालपंचभूत की छूत से, बच व्यापार सम्हालबच व्यापार सम्हाल, बड़े नाज़ुक ये नातेइनको दिया उधार, समझ ले बट्टे खाते‘काका ' परम प्रबल है इनकी पाचन शक्तीजब माँगोगे, तभी झाड़ने लगें दुलत्ती
3. पिल्ला / काका हाथरसी
पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझभेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोजबहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हातादेवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाताकहँ 'काका' कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्लापुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला
4. मुर्ग़ी और नेता / काका हाथरसी
नेता अखरोट से बोले किसमिस लालहुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवालमेरा एक सवाल, समझ में बात न भरतीमुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करतीनेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे
5. पुलिस-महिमा / काका हाथरसी
पड़ा - पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादानदर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचाननिज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वालेझुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वालेकहँ ‘ काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरतीचरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती
कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यानमानव की तो क्या चले , डर जाये भगवानडर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसींइँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसींकहँ ‘ काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दीख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी
शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकासगाली देने का करो , नित नियमित अभ्यासनित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओबेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ‘ काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के‘ रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के
लोकमत न्यूज परिवार काका हाथरसी को नमन करता है।