नयी दिल्ली, 25 अप्रैल न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनागौदर उच्चतम न्यायालय में अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान भूमि अधिग्रहण के एक मामले में लोकप्रिय असहमति समेत कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे। शनिवार देर रात गुरुग्राम के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया ।
कर्नाटक के रहने वाले न्यायमूर्ति शांतनागौदर उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने पिछले साल 10 फरवरी के एक फैसले में कहा था कि न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ सबरीमला मंदिर मामले में पुनर्विचार न्यायक्षेत्र के तहत अपनी सीमित शक्तियों का इस्तेमाल कर कानून के सवाल को बृहद पीठ को संदर्भित कर सकती है।
फिलहाल उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वरिष्ठता क्रम में नौवें स्थान पर रहे न्यायमूर्ति शांतनागौदर ने आठ फरवरी 2018 को न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एके गोयल के बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी। इस फैसले में कहा गया था कि भूमि अधिग्रहण के मामले में 2014 में एक अन्य तीन सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया फैसला ‘पर इनक्यूरियम’ (कानून की परवाह किये बिना पारित) था।
तीन सदस्यीय एक अन्य पीठ द्वारा इस मामले में कुछ मुद्दे उठाए जाने के बाद अंतत इसे पांच सदस्यीय संविधान पीठ को संदर्भित कर दिया गया था।
शुक्रवार को सेवानिवृत्त हुए प्रधान न्यायाधीश एस ए बोब्डे की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 14 नवंबर 2019 के अपने फैसले में उन प्रारंभिक आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया था कि पांच न्यायाधीशों की पीठ का 2018 के सबरीमला फैसले में पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला किये बिना बृहद पीठ को संदर्भित करना गलत था। पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को केरल के इस प्रसिद्ध मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।
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