जजों द्वारा जजों की नियुक्ति करने की बात एक मिथक है, अन्य संस्थाएं भी प्रक्रिया में शामिल होती हैं: सीजेआई एनवी रमना

By विशाल कुमार | Updated: December 26, 2021 15:22 IST2021-12-26T15:19:50+5:302021-12-26T15:22:42+5:30

सीजेआई ने समीक्षा की शक्ति के माध्यम से न्यायिक अतिरेक की आलोचना के खिलाफ न्यायपालिका का भी बचाव किया। उन्होंने कहा कि ऐसे सामान्यीकरण गुमराह करने वाले हैं और यदि न्यायपालिका के पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति नहीं होगी, तो इस देश में लोकतंत्र के कामकाज की कल्पना नहीं की जा सकती है।

judges-appointing-judges-cji-nv-ramana supreme court collegium system | जजों द्वारा जजों की नियुक्ति करने की बात एक मिथक है, अन्य संस्थाएं भी प्रक्रिया में शामिल होती हैं: सीजेआई एनवी रमना

जजों द्वारा जजों की नियुक्ति करने की बात एक मिथक है, अन्य संस्थाएं भी प्रक्रिया में शामिल होती हैं: सीजेआई एनवी रमना

Highlightsसीजेआई ने हाल के दिनों में कई जजों की नियुक्ति में सरकार के प्रयासों की सराहना की।समीक्षा के माध्यम से न्यायिक अतिरेक की आलोचना के खिलाफ न्यायपालिका का भी बचाव किया।लोक अभियोजकों की संस्था को स्वतंत्र करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने न्यायपालिका के ऊपर लगने वाले उन आरोपों का बचाव किया जिसमें आरोप लगाए जाते हैं कि कॉलेजियम सिस्टम में जज ही जज की नियुक्ति करते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विजयवाड़ा के सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में 5वें स्वर्गीय श्री लवू वेंकटेश्वरलू एंडोमेंट व्याख्यान देते हुए रमना ने कहा कि आजकल 'जज खुद जज नियुक्त कर रहे हैं' जैसे वाक्यांशों को दोहराना फैशन बन गया है। मैं इसे व्यापक रूप से प्रचारित मिथकों में से एक मानता हूं। तथ्य यह है कि न्यायपालिका इस प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से एक है। केंद्रीय कानून मंत्रालय, राज्य सरकारें, राज्यपाल, हाईकोर्ट कॉलेजियम, इंटेलिजेंस ब्यूरो और अंत में शीर्ष कार्यकारी कई प्राधिकरण शामिल हैं, जिन्हें सभी उम्मीदवार की उपयुक्तता की जांच करने के लिए नामित किया गया है। मुझे यह जानकर दुख हो रहा है कि जानकार भी उपरोक्त धारणा का प्रचार करते हैं क्योंकि ऐसी बातें कुछ वर्गों के लिए उपयुक्त हैं।

यह कहते हुए कि रिक्तियों को भरना न्यायपालिका के सामने मौजूद चुनौतियों में से एक है, सीजेआई ने हाल के दिनों में कई जजों की नियुक्ति में सरकार के प्रयासों की सराहना की।

हालांकि, केंद्र से मलिक मजहर मामले में निर्धारित समय-सीमा का सख्ती से पालन करने का आग्रह किया कि हाईकोर्टों द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा अभी तक सुप्रीम कोर्ट को नहीं भेजा गया है।

सीजेआई ने समीक्षा की शक्ति के माध्यम से न्यायिक अतिरेक की आलोचना के खिलाफ न्यायपालिका का भी बचाव किया। उन्होंने कहा कि ऐसे सामान्यीकरण गुमराह करने वाले हैं और यदि न्यायपालिका के पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति नहीं होगी, तो इस देश में लोकतंत्र के कामकाज की कल्पना नहीं की जा सकती है।

यह कहते हुए कि एक लोकप्रिय बहुमत सरकार द्वारा की गई मनमानी कार्रवाइयों का बचाव नहीं है, सीजेआई ने कहा कि शक्तियों के अलगाव की अवधारणा का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे को सीमित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

वहीं, लोक अभियोजकों की स्वतंत्रता की कमी पर बोलते हुए सीजेआई ने जोर देकर कहा कि लोक अभियोजकों की संस्था को स्वतंत्र करने की आवश्यकता है और उन्हें केवल अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाकर उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

सुधारात्मक उपाय सुझाते हुए रमना ने कहा उनकी नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र चयन समिति का गठन किया जा सकता है। अन्य न्यायालयों के तुलनात्मक विश्लेषण के बाद सबसे अच्छी प्रथाओं को अपनाया जाना चाहिए।

Web Title: judges-appointing-judges-cji-nv-ramana supreme court collegium system

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