जॉर्डन : शाही परिवार का विवाद अदालत पहुंचा, सोमवार को सुनवाई
By भाषा | Published: June 20, 2021 09:27 PM2021-06-20T21:27:40+5:302021-06-20T21:27:40+5:30
अम्मान (जॉर्डन), 20 जून (एपी) जॉर्डन में सदी का सबसे अहम मुकदमा अगले सप्ताह राज्य सुरक्षा अदालत में शुरू होगा जब किंग अब्दुल्ला द्वितीय के रिश्तेदार और शाही दरबार के पूर्व प्रमुख आरोपी की तरह कठघरे में राजद्रोह और उकसावे के आरोपों का सामना करने पहुंचेंगे।
इन पर शाही परिवार के वरिष्ठ सदस्य और जॉर्डन के मौजूदा शाह के सौतेले भाई राजकुमार हमजा के साथ मिलकर विदेशी मदद से किंग अब्दुल्ला के खिलाफ जनता में असंतोष पैदा करने की साजिश रचने का आरोप है। महल का यह ‘नाटक’ अप्रैल महीने की शुरुआत में तब सार्वजनिक हुआ था जब हमजा को नजरबंद किया गया।
बचाव पक्ष के वकील अला खासावनेह ने कहा, ‘‘जहां तक मेरी जानकारी है जॉर्डन के इतिहास में इतना बड़ा मुकदमा नहीं चला है।’’ उन्होंने कहा कि सुनवाई सोमवार को शुरू होगी।
इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में 41 वर्षीय हमजा हैं लेकिन वह मुकदमे का सामना नहीं कर रहे हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2004 में किंग अब्दुल्ला ने अपने बड़े बेटे के लिए हमजा से वलीअहद (युवराज) का दर्जा छिन लिया था। यहां की आधिकारिक संवाद एजेंसी के मुताबिक हमजा ने राजा बनने की महत्वाकांक्षा में यह साजिश रची जबकि हमजा ने आरोपों से इनकार किया है और भ्रष्टाचार उजागर करने पर निशाना बनाए जाने का दावा किया है।
जानकारी के मुताबिक सोमवार को शाही परिवार के सदस्य शरीफ हसन बिन जैद और पूर्व शाही सलाहकार बसीम अवादाल्ला राजद्रोह और उकसावे के आरोपों का सामना करेंगे।
अदालत में राजा के दूर के भाई बिन जैद का पक्ष रखने वाले खासावनेह ने कहा कि उनका मुवक्किल ‘स्तब्ध हैं और दोषमुक्त साबित होने की योजना बना रहे हैं। उनपर राजद्रोह और उकसावे के आरोपों के साथ मादक पदार्थ रखने की धारा भी लगाई गई है।
वकील ने कहा कि उनकी योजना हमजा को अदालत में बुलाने की है- माना जा रहा है कि इससे सुनवाई और सनसनीखेज हो जाएगी। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल की योजना मुकदमा लड़ने की है। इसके साथ ही किसी समझौते से भी उन्होंने इनकार कर दिया।
राज्य सुरक्षा अदालत के पूर्व अध्यक्ष और अवादाल्लाह का पक्ष रख रहे मोहम्मद अल अफीफ ने कहा कि उनके मुवक्किल और बिन जैद के कठघरे में सीमित रहने और कैदियों के लिए निर्धारित नीली वर्दी में आने की उम्मीद है। अगर वे दोषी ठहराए जाते हैं तो 20 साल तक की सजा हो सकती है।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।