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झारखंड चुनाव: कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन ने कोर्ट से मांगी चुनाव लड़ने की इजाजत, 128 आपराधिक मामलों में है लिप्त

By एस पी सिन्हा | Updated: November 7, 2019 18:19 IST

राजा पीटर के बाद अब झारखंड के कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन ने भी कोर्ट से चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी है. मई, 2017 में सरेंडर करने वाला कुंदन कई साल तक पुलिस के लिए सिरदर्द और क्षेत्र में आतंक का पर्याय था. 

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ठळक मुद्देझारखंड में पांच चरणों में चुनाव, 30 नवंबर को पहले चरण का मतदानकई बंदूक छोड़कर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे, कुंदन पाहन ने मांगी कोर्ट से इजाजत

झारखंड में बंदूक छोड़कर कर अब कई लोग गणतंत्र के सफर पर निकलने की तैयारी में जुटे हैं. हिंसा का रास्ता छोड़कर कई उग्रवादी और उनके रिश्तेदार चुनाव लड़कर लोकतंत्र की मुख्यधारा से जुडने में अपनी दिलचस्पी दिखाने लगे हैं. उनकी बेताबी का हाल यह है कि वह जेल में रहते हुए गन छोडकर अब गणतंत्र को मजबूत करने के लिए बेचैन दिख रहे हैं. इसके पहले भी उग्रवादी गतिविधियों में शामिल रहे कई बड़े नाम संगठन छोड़कर राजनीति में किस्मत आजमा चुके हैं.

इस मामले में राजा पीटर के बाद अब झारखंड के कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन ने भी कोर्ट से चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी है. मई, 2017 में सरेंडर करने वाला कुंदन कई साल तक पुलिस के लिए सिरदर्द और क्षेत्र में आतंक का पर्याय था. 

डीएसपी, इंस्पेक्टर, कई पुलिस वाले की हत्या सहित कुल 128 आपराधिक मामले में लिप्त कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन भी झारखंड विधान सभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाने को तैयार दिख रहा है. उसका मानना है कि माओवादी अपने सिद्धांतों से भटक गये हैं. इसके साथ ही उसने कहा था कि अपराध की दुनिया में जाकर उसने जो कुछ भी किया, उसके लिए उसे पछतावा है. फिलहाल वह जेल की सलाखों के पीछे है. 

पहले ही दिए थे राजनीति में आने के संकेत

सरेंडर करने के बाद ही कुंदन राजनीति में आने के संकेत दिये थे. कुंदन ने एनआइए के विशेष जज नवनीत कुमार की अदालत में इस संबंध में एक याचिका दाखिल की है. वहीं, पिछले दिनों अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वाले तमाड़ के पूर्व विधायक राजा पीटर ने रांची की एनआईए की अदालत में याचिका दायर कर जेल से नामांकन दाखिल करने की अनुमति मांगी थी.

कोर्ट ने राजा पीटर की याचिका को स्वीकार करते हुए उन्हें नामांकन दाखिल करने की अनुमति दे दी है. संभवत: इसी को देखते हुए कुंदन पाहन ने भी यह कदम उठाया है.

यहां ये भी उल्लेखनीय है कि तोरपा के वर्तमान विधायक पौलुस सुरीन पीएलएफआई के कमांडर रह चुके हैं. साल 2009 में जेल में रहते हुए पौलुस ने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़कर भाजपा के कोचे मुंडा को हराया था. पौलुस दूसरी बार 2014 में तोरपा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इस बार पौलुस सुरीन को चुनौती उनके ही पूर्व संगठन से मिल सकती है. 

जीदन गुडिया की पत्नी जोनिका गुडिया ने ली भाजपा की सदस्यता

वर्तमान में पीएलएफआई के सक्रिय कमांडर जीदन गुडिया की पत्नी जोनिका गुडिया ने भाजपा की सदस्यता ली है. तोरपा सीट के लिए जोनिका को मजबूत दावेदार माना जा रहा है. जोनिका अभी खूंटी जिला परिषद की अध्यक्ष भी हैं. वहीं, कांके विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रबल दावेदारों में नीरज भोक्ता उर्फ नीरज गंझू का नाम भी शामिल है. 

नीरज गंझू को पूर्व में टीपीसी का सक्रिय सदस्य माना जाता था. नीरज की पहचान टीपीसी कमांडर भीखन गंझू के करीबियों में होती थी. लेकिन जेल से छूटने के बाद नीरज ने मार्च महीने में कांग्रेस का दामन थामा. कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव के दौरान नीरज ने जोरशोर से प्रचार भी किया था. कांके विधानसभा क्षेत्र में नीरज की लगातार सक्रियता भी रही है. 

उधर, कामेश्वर बैठा वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. कामेश्वर बैठा भाकपा माओवादी संगठन में कोयल शंख जोन के कमांडर हुआ करते थे. उनके खिलाफ 53 माओवादी कांड दर्ज थे. साल 2009 में सासाराम जेल में रहते हुए कामेश्वर बैठा झामुमो के टिकट पर पहली बार पलामू से लोकसभा चुनाव लडे और जीते थे. साल 2014 में कामेश्वर बैठा ने झामुमो छोड पहले भाजपा का दामन थामा, लेकिन टिकट नहीं मिलने पर तृणमूल कांग्रेस से चुनाव लडे, हालांकि वह हार गए. 

कामेश्वर बैठा लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन महागठबंधन में सीट राजद के खाते में जाने की वजह से वह चुनाव नहीं लड पाए. इसके बाद में उन्होंने पार्टी छोड दुबारा तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया.

वहीं, साल 2009 के विधानसभा चुनाव में जेल में बंद जेएलटी कमांडर मसीहचरण पूर्ति को झामुमो ने खूंटी, पौलुस सुरीन को तोरपा, सतीश कुमार को डालटनगंज, युगल पाल को विश्रामपुर से लडाया था. राजद ने नक्सली संगठन में रहे केश्वर यादव उर्फ रंजन यादव को पांकी से चुनाव लडवाया था. रंजन दो बार चतरा से लोकसभा चुनाव लड चुका है. लेकिन पौलुस को छोड सभी चुनाव हार गए थे. 

आजसू ने 2009 में सिमरिया से पूर्व माओवादी कुलदीप गंझू को चुनाव लड़ाया. वहीं, टीपीसी सुप्रीमो ब्रजेश गंझू के भाई गणेश गंझू झाविमो से सिमरिया से लडे थे. वहीं, माओवादी रंजन यादव ने सपा का दामन थामा. पार्टी ने बीते साल रंजन यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. इस साल फरवरी में रंजन को छत्तीसगढ पुलिस ने लेवी वसूली व आगजनी के केस में गिरफ्तार किया था. जबकि चतरा के टेरर फंडिंग के मामले में टीपीसी के ब्रजेश गंझू की तलाश एनआईए को है. 

ब्रजेश गंझू के सगे भाई गणेश गंझू 2014 में झाविमो से चुनाव लडकर विधानसभा पहुंचे थे, बाद में भाजपा का दामन थाम लिया. इस तरह से गन से नाता रखने वाले अब गणतंत्र की ओर बढने में खासा दिलचस्पी ले रहे हैं और उनके लिए कोई भी दल अछूत नही है. बस टिकट का सवाल है.

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