लाइव न्यूज़ :

Jammu Kashmir Special Report: बंदूक छोड़ अब नशाखोरी में डूबा कश्मीर, पिछले एक साल में इतने फीसदी हुई बढ़ोतरी

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: June 3, 2020 16:55 IST

प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता यासिर अराफात जहांगीर ने बताया कि घाटी में कोकीन जैसे नशीले पदार्थों के अलावा दवाइयों का भी नशाखोरी के लिए जमकर उपयोग किया जा रहा है।

Open in App
ठळक मुद्देएक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर के चर्चित स्कूल के कक्षा 9 के ज्यादातर विद्यार्थी निकोटीन और सूंघने वाले नशीले तत्वों की गिरफ्त में हैं।संयुक्त राष्ट्र नशाखोरी नियंत्रण कार्यक्रम की ओर से कराए गए एक सर्वे के मुताबिक कश्मीर में नशाखोरों की संख्या 2.60 लाख के आसपास है।

जम्मू: कश्मीर में बंदूक के नशे का खुमार धीरे धीरे खत्म तो हो रहा है लेकिन कश्मीरी युवकों में अब नशाखोरी एक बड़ी समस्या बनकर उभरती दिखाई दे रही है। नशाखोरी को अपनी समस्याएं दूर करने के तरीके के तौर पर, मानसिक सुकून पाने के विकल्प के तौर पर या खुद को शांत दिखाने के लिए युवक इस विकृति के जाल में फंसते चले जा रहे हैं। घाटी में पिछले साल इस समस्या में 35 से 40 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है।

प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता यासिर अराफात जहांगीर ने बताया कि घाटी में कोकीन जैसे नशीले पदार्थों के अलावा दवाइयों का भी नशाखोरी के लिए जमकर उपयोग किया जा रहा है। इनमें कोरेक्स, कोडेन, एल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस आदि का प्रमुख रूप से उपयोग किया जा रहा है। तो कश्मीर के सरकारी मनोचिकित्सकीय रोग अस्पताल के मनोवैज्ञानिक डा अरशद हुसैन की सुने तो नशाखोरी ने पूरे शहर को अपने आगोश में ले लिया है। हुसैन कहते थे कि  निःसंदेह कश्मीर में नशाखोरी में वृद्धि हुई है। इसके आंकड़े चिंतनीय हैं। इसके जाल के 18 से 35 वर्ष के युवक फंस रहे हैं, जिसके चलते युवकों की मौत की खबरें मिल रही हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर के चर्चित स्कूल के कक्षा 9 के ज्यादातर विद्यार्थी निकोटीन और सूंघने वाले नशीले तत्वों की गिरफ्त में हैं। मात्र 14 साल की उम्र से नशाखोरी के चंगुल में फंसे मुबाशिर ने कहा कि मैंने एक बार गलती की और अब यह मेरी मजबूरी बन गई है। मुबाशिर कहता था कि मैंने तरल इरेजर, पेट्रोल ओर फेविकोल से शुरुआत की। मैं पढ़ने में बहुत अच्छा था। सभी लोग कहते थे कि मैं बहुत बुद्धिमान हूं, लेकिन अब इसका कोई उपयोग नहीं है। मैं एक क्रिकेटर बनना चाहता था, लेकिन अब मैं ऐसा करने में सक्षम नहीं हूं।

संयुक्त राष्ट्र नशाखोरी नियंत्रण कार्यक्रम की ओर से कराए गए एक सर्वे के मुताबिक कश्मीर में नशाखोरों की संख्या 2.60 लाख के आसपास है। सामाजिक कार्यकर्ता जहांगीर कहते थे कि पिछले ढाई सालों में हमने 2198 मरीजों का इलाज किया और हमारे पास लगभग 3500 मरीज आए।

दरअसल कश्मीर घाटी तीन दशकों से जारी सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसा की कीमत अपनी दिमागी सेहत खोकर चुका रही है। कश्मीर में नशे के शिकार लोगों का आंकड़ा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। पोस्त और भांग की खेती तो बढ़ ही रही है, नशीली दवाओं ने भी हजारों लोगों को गुलाम बना लिया है। इनमें छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा है। नशा छुड़ाने वाले परामर्शकारों का अनुमान है कि कश्मीर में स्कूल और कालेज के 40 फीसदी छात्र ड्रग्स की चपेट में हैं। वादी में उभर रहे हालात पर अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी से शोध कर रहे छात्र सैबा वर्मा कहते हैं कि अकेले श्रीनगर में नशे के आदी लोगों की संख्या कम से कम 60 हजार हो सकती है।

मगर समाज के साथ-साथ सरकार भी सामने दिखती इस चुनौती की तरफ से आंखें मूंदे है। आलम यह है कि समस्या से निबटने की बात तो दूर, समस्या कितनी गंभीर है, इस बारे में एक भी विस्तृत सर्वेक्षण नहीं किया गया है। अधिकतर डाक्टरों और मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि 70 से 80 प्रतिशत लोग आसानी से मिलने वाली दवाओं मसलन अल्कोहल आधारित कफ सीरपों, दर्दनिवारक दवाओं, निशान मिटाने वाले केमिकल, नेल और शू पालिश से नशा करते हैं। बाकी लोग या तो शराब लेते हैं या घाटी में उगने वाली भांग और तंबाकू के मिश्रण से काम चलाते हैं। श्रीनगर में पुलिस कंट्रोल रूम में चलाए जा रहे एक नशा मुक्ति केंद्र में काम करने वाले डा मुजफ्फर खान कहते हैं कि हमारी एक पूरी पीढ़ी नशे की भेंट चढ़ने वाली है। नौजवानों में इतनी ज्यादा असुरक्षा काफी हद तक सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से पैदा हुई है।

नशे के आदी अधिकतर लोग 18 से 35 साल के बीच के हैं। अख्तर का ही उदाहरण लीजिए जिन्हें अक्सर सख्त घेराबंदी और सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान और आतंकी हमलों से पैदा होने वाली तनावजनक परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता था। 2008 तक उनके सिर में लगातार दर्द रहने लगा था और इससे निजात पाने के लिए वे दर्दनिवारक दवाओं की मात्रा लगातार बढ़ा रहे थे। अख्तर बताते हैं कि फिर एक दूसरे ड्राइवर ने सलाह दी कि मैं कुछ और स्ट्रांग चीज लूं। धीरे-धीरे वे दवा के ऐसे आदी हो गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उन्होंने अपने घरवालों के साथ बुरा बर्ताव करना शुरू कर दिया।

अख्तर की कहानी यह भी बताती है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग के पास नशामुक्ति और पुनर्वास के लिए कोई प्रभावी कार्यक्रम नहीं है। तनाव से मुक्ति के लिए अख्तर ने एक एनजीओ आल जेएंडके यूथ वेलफेयर द्वारा चलाए जा रहे राहत नामक नशा मुक्ति केंद्र की सहायता ली थी पर जल्दी ही वे वहां से भाग आए क्योंकि उन्हें पहले दिन ही कैदियों की तरह जंजीर में बांध दिया गया था।

टॅग्स :जम्मू कश्मीर
Open in App

संबंधित खबरें

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

क्रिकेटवैभव सूर्यवंशी की टीम बिहार को हैदराबाद ने 7 विकेट से हराया, कप्तान सुयश प्रभुदेसाई ने खेली 28 गेंदों में 51 रन की पारी, जम्मू-कश्मीर को 7 विकेट से करारी शिकस्त

भारतDrung Waterfall: महीनों बाद खुला द्रुग वाटरफाल, टंगमर्ग राइडर्स की रोजी-रोटी में मदद मिली

भारतJammu-Kashmir Power Shortage: सर्दी बढ़ने के साथ कश्मीर में गहराया बिजली सकंट, करीब 500 मेगावाट बिजली की कमी से परेशान लोग

भारतJammu-Kashmir: कश्मीर के मोर्चे से खुशखबरी, आतंकी हिंसा में गिरावट पर आतंक और दहशत में नहीं

भारत अधिक खबरें

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की

भारतसिरसा जिलाः गांवों और शहरों में पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल, जानिए खासियत

भारतउत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोगः 15 विषय और 7466 पद, दिसंबर 2025 और जनवरी 2026 में सहायक अध्यापक परीक्षा, देखिए डेटशीट