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'शेर-ए-कश्मीर' के नाम को मिटाने पर मचा बवाल, नेशनल कॉन्फ्रेंस बोली- बदले की कार्रवाई, बीजेपी ने कहा, सभी जगह से नाम हटाएं

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: January 28, 2020 17:18 IST

शेर-ए-कश्मीर पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला को कहा जाता है। शेख अब्दुल्ला के संदर्भ में ही यह नाम था। जिसे गृह विभाग ने बदल दिया है। गणतंत्र दिवस के मौके पर पुलिस को मिले अवार्ड के दौरान यह बदलाव किया गया है। 

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ठळक मुद्देजम्मू-कश्मीर में वीरता और सराहनीय कार्यों के लिए दिए जाने वाले पुलिस मेडल का नाम अब जम्मू कश्मीर पुलिस मेडल करने पर बवाल मचा हुआ है। नेशनल कांफ्रेंस ने पदक का नाम बदलने पर कड़ा एतराज जताया है।

जम्मू-कश्मीर में वीरता और सराहनीय कार्यों के लिए दिए जाने वाले पुलिस मेडल का नाम अब जम्मू कश्मीर पुलिस मेडल करने पर बवाल मचा हुआ है। नेशनल कांफ्रेंस ने पदक का नाम बदलने पर कड़ा एतराज जताया है। उसने आरोप लगाया कि यह कवायद शेर-ए-कश्मीर के नाम को मिटाने की साजिश है क्योंकि इस आदेश के बाद भाजपा ने यह मांग कर डाली है कि उन इमारतों व पुलों आदि के नाम भी बदले जाएं जो शेर-ए-कश्मीर के नाम पर हैं।

जानकारी के लिए बता दें, शेर-ए-कश्मीर पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला को कहा जाता है। शेख अब्दुल्ला के संदर्भ में ही यह नाम था। जिसे गृह विभाग ने बदल दिया है। गणतंत्र दिवस के मौके पर पुलिस को मिले अवार्ड के दौरान यह बदलाव किया गया है। 

जम्मू कश्मीर प्रशासन ने गत शनिवार को पुलिस वीरता पुरस्कार और उत्कृष्ट सेवा पुलिस पदक का नाम बदलने का एलान किया है। गृह विभाग के प्रधान सचिव शालीन काबरा ने एक आदेश में कहा कि शेर-ए-कश्मीर पुलिस वीरता पदक और शेर-ए-कश्मीर पुलिस उत्कृष्ट सेवा पदक को अब जम्मू कश्मीर पुलिस वीरता पदक और जम्मू कश्मीर पुलिस उत्कृष्ट सेवा पदक ही पढ़ा, लिखा और पुकारा जाए।

इस घोषणा पर नेकां के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक पीर आफाक अहमद ने कहा कि केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन राजनीतिक दुराग्रह से काम कर रहा है। वीरता पुरस्कार से शेरे कश्मीर का नाम हटाना इतिहास से छेड़खानी है। यह जम्मू कश्मीर की राजनीति की प्रत्येक पहचान को मिटाने की साजिश है। 

केंद्र सरकार भारतीय संविधान और इसके संघीय ढांचे के प्रति आस्था रखने वालों को ही निशाना बना रही है। वह शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के प्रति दुराग्रह रखती है। इसलिए उनसे जुड़ी हर चीज को नष्ट करने पर तुली है। शेख अब्दुल्ला का व्यक्तित्व किसी पदक या पुरस्कार का मोहताज नहीं है। पीर आफाक ने कहा कि शेख अब्दुल्ला ने जिस जम्मू कश्मीर की परिकल्पना की थी, उसे आज क्षेत्रीय व धार्मिक संकीर्णता के बंधन में बांधकर दिखाया जा रहा है। केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन आज भी 30 साल पहले इस दुनिया से कूच कर गए नेता से डरते हैं।

इससे पहले सरकारी छुट्टियों में से भी शेख अब्दुल्ला के जन्मदिवस की छुट्टी को खत्म कर दिया गया था। इस बारे में पूर्व डीजीपी एमएम खजूरिया का कहना है कि वह इस पर कोई टिप्पणी तो नहीं करना चाहते, लेकिन इतना जरूर है कि नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता। मेडल बहादुरी और सराहनीय कार्य के लिए मिलता है। ऐसे में क्या फर्क पड़ता है कि किसके नाम से है। वर्ष 2001 में सरकार ने आदेश जारी कर शेर ए कश्मीर पुलिस मेडल का नाम रखा था। जो बाद में वक्त-वक्त पर संशोधित होता रहा।

हालांकि भाजपा के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए यह मांग कर डाली है कि जम्मू कश्मीर में खासकर जम्मू संभाग में शेरे कश्मीर के नाम पर रखी गई सभी इमारतों तथा पुलों के नामों को भी बदल दिया जाए। भाजपा की इस मांग के बाद जम्मू कश्मीर में राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है जो थमने का नाम नहीं ले रहा है।

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