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जम्मू कश्मीर: राज्यपाल के पाले में पहुंची गेंद, एसआर बोम्मई मामले से पड़ी थी नजीर

By खबरीलाल जनार्दन | Updated: June 19, 2018 16:10 IST

सितम्बर 1988 में एसआर बोम्मई की सरकार गिरी थी।

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श्रीनगर, 19 जूनः जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पिपुल्स डेमेक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इसके बाद सीएम महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल नरेंद्र बोरा को इस्तीफा सौंप दिया। और एक बार फिर से एक प्रदेश की सत्ता की गेंद राज्यपाल के पाले में चली गई है। भारतीय राजनीति में ऐसे मामलों की शुरुआत एसआर बोम्मई मामले से हुई थी।

सितम्बर 1988 में कर्नाटक में जनता पार्टी और लोक दल पार्टी ने मिलकर एक नई पार्टी जनता दल बनाकर सरकार बनाने का दावा किया था। जनता दल एसआर बोम्मई के नेतृत्व में राज्य की बहुमत वाली पार्टी बनी थी। मंत्रालय में 13 सदस्यों रखा गया। लेकिन इसके दो दिन बाद ही जनता दल विधायक के आर मोलाकेरी ने राज्यपाल के समक्ष एक पत्र पेश किया जिसमे उन्होंने बोम्मई के खिलाफ अर्जी थी। उन्होंने अपने पत्र के साथ 19 अन्य विधायकों की सहमती पत्र भी जारी किया था।

बीजेपी ने लिया समर्थन वापस फिर भी ऐसे बच सकती है महबूबा मुफ्ती की सरकार

इसके बाद राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट भेजी जिसमें कहा गया था कि सत्ताधारी पार्टी के कई विधायक उससे खफा हैं। राज्यपाल ने आगे लिखा था कि विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद मुख्यमंत्री बोम्मई के पास बहुमत नहीं बचता है जिससे उन्हें सरकार बनाने नहीं दिया जा सकता, वह संविधान के खिलाफ था और उन्होंने राष्ट्रपति से भी सिफारिश की थी कि वह उन्हें अनुच्छेद 356 (1) के तहत शक्ति का प्रयोग करें।

हालांकि कुछ दिन बाद ही उन्नीस विधायक जिनके हस्ताक्षर के बल पर असंतोष प्रस्ताव पेश किया गया था उन्होंने यह दावा किया कि पहले पत्र में उनके हस्ताक्षर जाली थे  और उन्होंने फिर से अपने गठबंधन को समर्थन देने की पुष्टि की। इसके बाद मामले को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई।

11 मार्च 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसको बोम्मई जजमेंट के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक के सीएम रामकृष्‍ण हेगड़े के फोन टेंपिंग मामले में फंसने के बाद एसआर बोम्मई ने सरकार बनाई थी। लेकिन राज्यपाल ने उन्हें बहुमत खो चुकने की आशंका पर बर्खास्त कर दिया था। इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी भी राज्य सरकार के बहुमत का फैसला राष्ट्रपति भवन-राजभवन के बजाय विधानमंडल में हो, इसके बाद कोर्ट ने आगे कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले राज्य सरकार को शक्ति परीक्षण का मौका देना होगा।' हालांकि यह पहला मौका था जब किसी राज्य में राज्यपाल के हाथ में शासन पहुंच गया था। हाल ही में कर्नाटक में ऐसी स्थिति बनने के हालात रहे।

क्या है जम्मु कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी टूट मामला

दिसंबर 2014 में जम्मू कश्मीर में चुनाव हुए थे। तब पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी पार्टी के तौर पर उभरी। पीडीपी ने जम्मू कश्मीर की कुल 89 सीटों में से 28 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। लेकिन प्रदेश में सरकार बनाने में के लिए जरूरी होती हैं 45 सीटें। तब पीडीपी 15 सीटें जीतने वाली उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू कश्मीर नेशनल कॉफ्रेंस (एनसी) और 12 सीटें जीतने वाली कांग्रेस की तरफ देख रही थी।

जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन राष्ट्र विरोधी था इसे टूटना ही था, देखें ट्विटर रिएक्शन

लेकिन देशभर में सरकार बनाने और कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही बीजेपी ने आगे बढ़कर पीडीपी सरकार को बिना शर्त समर्थन दे दिया। जबकि बीजेपी और पीडीपी ने अलग विचारधाराओं पर एक दूसरे खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद गठबंधन की सरकार बना ली। तब पीडीपी के नेता महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद थे। लेकिन साल 2016 में उनका निधन हो गया।

सीएम मुफ्ती की सरकार के दौरान ही महबूबा मुफ्ती बीजेपी से गठबंधन को लेकर सहज नहीं थी। इसीलिए जब मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हुआ तो सरकार अस्थिर हो गई। लेक‌िन पीएम मोदी ने महबूबा मुफ्ती को दिल्ली बुलाकर गठबंधन जारी रखने को कहा। लेकिन अब करीब साढ़े तीन साल सरकार चलाने के बाद आखिरकार बीजेपी ने ही समर्थन वापस खींच लिया है

टॅग्स :मेहबूबा मुफ़्तीजम्मू कश्मीर समाचारभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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