जम्मू-कश्मीर में इसे नाकामी के तौर पर देखा जाए या फिर दावों की हवा निकलने के तौर पर कि लगातार तीसरी बार जम्मू-उधमपुर हाईवे पर आतंकी कई किमी का सफर तय करके आसानी से हमले करने में कामयाब रहे और सुरक्षाबल या तो सिर्फ सुरक्षा के प्रति दावे करते रहे या फिर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप ही लगाते रहे। अब भी वही हुआ है।
बन टोल प्लाजा पर हमला करने वाले आतंकियों ने 88 किमी से ज्यादा का सफर उन मार्गों से किया जहां सुरक्षा नाकों की भरमार है। पहले भी दो बार ऐसा हो चुका है जब आतंकी 40 और 50 किमी का सफर आसानी से पार करते हुए हमले करने में कामयाब रहे थे।
जम्मू कश्मीर पुलिस के महानिदेशक दिलबाग सिंह कह रहे हैं कि शुक्रवार को मारे गए तीन आतंकी कठुआ जिले के हरानगर बार्डर से घुसे थे। तो बन टोल प्लाजा और हीरानगर की दूरी 88 किमी है। हीरानगर में पाक सीमा नेशनल हाईवे से कहीं 2 किमी की दूरी पर है तो कहीं 5 किमी की दूरी पर। इस 88 किमी के सफर में क्या आतंकियों का साथ ‘काली भेड़ों’ ने दिया है, यह फिलहाल जांच का विषय है। पर इतना जरूर है कि पुलिस महानिदेशक ने ऐसा बयान देकर बीएसएफ के दावों पर सवाल जरूर उठा दिए हैं जिसमें बीएसएफ अधिकारी कहते रहे हैं कि सीमा से आतंकी तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।
याद रखने योग्य बात यह है कि 13 सितम्बर 2018 में झज्जर कोटली में हुए आतंकी हमले में भी आतंकी 40 किमी का सफर तय कर बॉर्डर से पहुंचे थे तो वर्ष 2016 की 29 नवम्बर को नगरोटा में सैन्य मुख्यालय पर हमला करने वाले आतंकियों ने भी बॉर्डर से नगरोटा तक का 50 किमी का सफर बिना रोक टोक के किया था।
बार-बार यह बात सामने आई है कि नेशनल हाइवे पर हमेशा आतंकियों के हमला करने का खतरा है। बावजूद इसके आतंकी हाईवे से कठुआ से झज्जर कोटली, नगरोटा और अब बन टोल प्लाजा तक पहुंच गए तो इसे सुरक्षा में एक बड़ी चूक ही कहा जाएगा। इससे पहले इसी साल सुंजवां में हुआ आतंकी हमला भी सुरक्षा में एक बड़ी चूक था। आतंकी इलाके में पूरी रात बिताने के बाद सैन्य कैंप में घुसे और हमला कर दिया।
इससे पहले जब उधमपुर के नरसो नाले के पास आतंकी हमला हुआ था। तब जिंदा पकड़े गए आतंकी नावेद ने बताया था कि वह कितनी देर तक हाइवे पर रुका रहा। ट्रक में बैठा रहा। तब भी वह बड़ी ब्राह्मणा से ही बैठा था। उधमपुर तक पहुंच गए थे। जबकि नगरोटा स्थित 16वीं कोर मुख्यालय से सटे 166वीं फील्ड रेजिमेंट के आफिसर्स मैस और फैमिली क्वाटर्स में 29 नवम्बर 2016 की सुबह फिदायीन हमला करने वाले तीन आतंकियों के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह थी कि उन्होंने बार्डर से लेकर हमले वाले स्थल तक पहुंचने के लिए 50 किमी का सफर बिना रोक टोक के पूरा किया था। हालांकि तीनों हमलावर आतंकियों को मार गिराया गया था लेकिन वे अपने पीछे अनगिनत अनसुलझे सवालों को छोड़ गए थे जो अभी भी अनुत्तरित हैं।
शुक्रवार के हमले के बारे में प्राथमिक जांच कहती है कि आतंकियों ने 88 किमी का सफर अढ़ाई से तीन घंटों में तय किया था। वे बॉर्डर को पार करने के बाद सीधे नगरोटा बन टोल प्लाजा आए थे क्योंकि उन्होंने पहले ही हमले के स्थल को चुना हुआ था।
सवाल यह नहीं है कि हमले का कारण क्या था जबकि जवाब इस सवाल का अभी भी अनुत्तरित है कि आखिर आतंकी इतनी तेजी से कैसे नगरोटा तक पहुंच गए और अब एक बार फिर यह सवाल गूंज रहा है कि कैसे आतंकी झज्जर कोटली तक बेरोकटोक पहुंच गए।
वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं था कि आतंकी सीमा पर तारबंदी को काट कर इस ओर घुसे हों और उन्होंने फिदायीन हमलों को अंजाम दिया हो बल्कि इससे पहले भी ऐसी 8 से 10 घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें ताजा घुसे आतंकियों ने जम्मू-पठानकोट राजमार्ग पर स्थित सैन्य ठिकानों और पुलिस स्टेशनों व पुलिस चौकिओं को निशाना बनाते हुए भयानक तबाही मचाई हो।