जम्मू में लंबा खूनी इतिहास रहा है आतंकी हमलों का, जानिए पूरा ब्योरा

By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 26, 2023 05:13 PM2023-04-26T17:13:09+5:302023-04-26T17:18:51+5:30

जम्मू में एलओसी से सटे पुंछ और राजौरी जिलों में 7 दिन पहले आतंकियों के भीषण हमले में पांच सैनिकों का मारा जाना जम्मू संभाग में कोई पहली घटना नहीं है बल्कि इससे पहले भी कई बार जम्मू संभाग आतंकी हमलों से दहल चुका है।

Jammu has a bloody history of terrorist attacks, know full details | जम्मू में लंबा खूनी इतिहास रहा है आतंकी हमलों का, जानिए पूरा ब्योरा

जम्मू में लंबा खूनी इतिहास रहा है आतंकी हमलों का, जानिए पूरा ब्योरा

Highlightsएलओसी के करीब जम्मू संभाग शुरू से आंतकी हमले का शिकार होता रहा हैपुंछ और राजौरी में 7 दिनों पहले आतंकी हमले में मारे गये पांच सैनिकों की घटना कोई पहली नहीं हैजम्मू संभाग में 14 मई 2002 को आतंकियों ने पहली बार बड़े पैमाने पर सैन्य जवानों पर हमला किया था

जम्मू: भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित नियंत्रण रेखा (एलओसी) से सटे पुंछ और राजौरी जिलों में 7 दिन पहले दुर्दांत आतंकियों के भीषण हमले में पांच सैनिकों का मारा जाना जम्मू संभाग में कोई पहली घटना नहीं है बल्कि आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही जम्मू संभाग कभी भी आतंकी हमलों और सैनिकों की मौत से अछूता नहीं रहा है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सेना के जवानों को बड़े पैमाने पर सबसे पहले जम्मू संभाग में 14 मई 2002 को निशाना बनाया गया था जब आतंकियों ने कालूचक गैरीसन में सेना के फैमिली र्क्वाटरों में घुसकर कत्लेआम मचाते हुए 36 से अधिक जवानों और उनके परिवारों के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया था।

इसके बाद तो जम्मू संभाग कई ऐसे आतंकी हमलों का गवाह बनने लगा जिसमें बड़ी संख्या में जवान और अफसर मारे जाने लगे। पहली घटना के करीब 13 महीनों के उपरांत ही आतंकियों ने 28 जून 2003 को जम्मू के सुंजवां में स्थित सेना की ब्रिगेड पर हमला बोला तो 15 जवान की मौत हो गई। इतना जरूर था कि आतंकियों ने इस हमले के 15 सालों के बाद फिर से सुंजवां पर 10 फरवरी 2018 को हमला बोला और 10 जवानों की हत्या कर दी।

सेना के जवानों पर हमले की दास्तां यहीं नहीं ठहरती। वर्ष 2003 में ही 22 जुलाई को जम्मू के अखनूर में आतंकियों ने एक और सैनिक ठिकाने पर हमला बोला तो ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी समेत 8 सैनिकों को जान गंवानी पड़ी। यह सिलसिला बढ़ता गया और आतंकी हमले करते रहे और जवानों की मौत होती रही। इतना जरूर था कि अखनूर में वर्ष 2003 में हुए हमले के उपरांत करीब 10 सालों तक जम्मू संभाग में सुरक्षबलों पर कोई बड़ा हमला नहीं हुआ था।

एक बार आतंकियों ने पाक सेना के जवानों के साथ मिल कर 6 अगस्त 2013 को पुंछ के चक्कां दा बाग में बैट हमला किया तो 5 जवानों को जान गंवानी पड़ी। जबकि इसी साल इस हमले के एक महीने के बाद ही 6 सितम्बर 2013 को आतंकियों ने सांबा व कठुआ के जिलों में हमले कर 4 सैनिकों व 4 पुलिसकर्मियों को जान से मार डाला। इनमें एक लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक का अधिकारी भी शामिल था।

इंटरनेशनल बार्डर से सटे अरनिया में भी 27 नवम्बर 2014 को आतंकी हमले में 3 जवानों को जान गंवानी पड़ी थी तो वर्ष 2016 के 29 नवम्बर को आतंकियों ने नगरोटा स्थित कोर हेडर्क्वाटर पर हमला बोल कर दो अफसरों समेत 7 जवानों को मार दिया था। ऐसा भी नहीं है कि आतंकियों के हमलों में सिर्फ सैनिकों, जवानों व नागरिकाों को ही जानें गंवानी पड़ी थी बल्कि प्रत्येक हमले में आतंकी भी मारे गए थे और अकेले जम्मू संभाग में हुए आतंकी हमलों में 100 से अधिक दुर्दांत भी मारे गए गए थे।

Web Title: Jammu has a bloody history of terrorist attacks, know full details

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