जम्मू-कश्मीरः आजाद ने कहा, धन्यवाद, फैसला ऐतिहासिक, इस बार किसी दबाव में नहीं आया उच्चतम न्यायालय

By भाषा | Updated: January 10, 2020 13:29 IST2020-01-10T13:29:10+5:302020-01-10T13:29:10+5:30

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘‘हम फैसले का स्वागत करते हैं। यह पहली बार है कि उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के लोगों की दिल की बात कही है। उसने लोगों की नब्ज पकड़ ली है। मैं ऐतिहासिक निर्णय के लिए उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद करना चाहता हूं। पूरे देश खासकर जम्मू-कश्मीर के लोग इसके लिए इंतजार कर रहे थे।’’

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इंटरनेट के इस्तेमाल को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा बताया।

Highlightsसरकार ने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की थी।इस बार शीर्ष अदालत किसी दबाव में नहीं आई।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में आए उच्चतम न्यायालय के आदेश की सराहना करते हुए शुक्रवार को कहा कि सरकार ने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की थी और इस बार शीर्ष अदालत किसी दबाव में नहीं आई।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष आजाद ने कहा, ‘‘हम फैसले का स्वागत करते हैं। यह पहली बार है कि उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के लोगों की दिल की बात कही है। उसने लोगों की नब्ज पकड़ ली है। मैं ऐतिहासिक निर्णय के लिए उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद करना चाहता हूं। पूरे देश खासकर जम्मू-कश्मीर के लोग इसके लिए इंतजार कर रहे थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार ने पूरे देश को गुमराह किसा। इस बार उच्चतम न्यायालय किसी दबाव में नहीं आई।’’ उच्च्तम न्यायालय ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन को केंद्र शासित प्रदेश में प्रतिबंध लगाने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने का आदेश दिया और इंटरनेट के इस्तेमाल को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा बताया।

न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा। 

इंटरनेट का इस्तेमाल मौलिक अधिकार, सरकार जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध की समीक्षा करे- न्यायालय

उच्च्तम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट के इस्तेमाल को एक मौलिक अधिकार करार देते हुये जम्मू-कश्मीर प्रशासन को केंद्र शासित प्रदेश में प्रतिबंध लगाने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के लिए कहा।

पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी भी शामिल हैं। संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट के इस्तेमाल को मौलिक अधिकार का हिस्सा बताते हुए शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से इंटरनेट के निलंबन के सभी आदेशों की समीक्षा करने के लिए कहा।

पीठ ने कहा कि इंटरनेट का उपयोग करना कुछ प्रतिबंधों के साथ संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत एक मौलिक अधिकार है और प्रेस की स्वतंत्रता एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और पवित्र अधिकार है। अदालत ने कहा कि कश्मीर में लगे प्रतिबंधों को लेकर न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने वाले किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल अनिश्चित काल तक नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा जारी करते समय इसपर विचार करना चाहिए और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। पिछले साल पांच अगस्त को पूववर्ती जम्मू कश्मीर प्रदेश से संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा वापस लिये जाने के बाद केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह फैसला दिया। पीठ अब इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को करेगी।

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