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पदोन्नति नीति पर हाईकोर्ट की रोक: चार लाख से अधिक कर्मचारियों की उम्मीदों पर झटका, जानें कहानी

By मुकेश मिश्रा | Updated: July 7, 2025 17:58 IST

jabalpur High Court's stay on promotion policy: कोर्ट के आदेश के मुताबिक, अगली सुनवाई तक नई नीति के तहत किसी भी प्रकार की पदोन्नति नहीं की जा सकेगी।

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ठळक मुद्देनई नीति लागू की थी, जिससे चार लाख से अधिक कर्मचारियों को लाभ मिलने की उम्मीद थी।अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए क्रमशः 16 और 20 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया है।प्रमोशन की प्रक्रिया में वरिष्ठता और मेधा दोनों को महत्व दिया गया है।

भोपालः मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की बहुप्रतीक्षित पदोन्नति प्रक्रिया एक बार फिर कानूनी उलझन में फंस गई है। हाल ही में लागू की गई पदोन्नति की नई नीति पर जबलपुर हाईकोर्ट ने फिलहाल एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर यह स्पष्ट करने को कहा है कि वर्ष 2002 से अब तक किन नियमों के तहत पदोन्नतियां दी गईं और वर्तमान नीति में पहले की तुलना में क्या बदलाव किए गए हैं। कोर्ट के आदेश के मुताबिक, अगली सुनवाई तक नई नीति के तहत किसी भी प्रकार की पदोन्नति नहीं की जा सकेगी।

राज्य सरकार ने करीब नौ साल बाद पदोन्नति की नई नीति लागू की थी, जिससे चार लाख से अधिक कर्मचारियों को लाभ मिलने की उम्मीद थी। इस नीति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए क्रमशः 16 और 20 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। साथ ही, प्रमोशन की प्रक्रिया में वरिष्ठता और मेधा दोनों को महत्व दिया गया है।

सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिए थे कि 31 जुलाई तक पात्र अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति दी जाए। नई नीति के लागू होते ही कुछ कर्मचारी संगठनों ने इसमें आरक्षण और प्रक्रिया को लेकर आपत्ति जताई। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहते हुए सरकार नई नीति लागू नहीं कर सकती।

इसी के चलते हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है और पूछा है कि 2002 से अब तक किस आधार पर पदोन्नतियां दी गईं और नई नीति में क्या भिन्नता है। गौरतलब है कि 2002 में सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था शुरू की थी, लेकिन 2016 में हाईकोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहने के कारण वर्षों तक पदोन्नति की प्रक्रिया बाधित रही।

अब नई नीति के तहत फिर से आरक्षण के साथ पदोन्नति का रास्ता खुला था, लेकिन इसे लेकर विवाद और कानूनी चुनौती बरकरार है। कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार को एक सप्ताह में अपना पक्ष रखना होगा। अगली सुनवाई 15 जुलाई को निर्धारित है। इस बीच, कर्मचारी संगठनों में असमंजस और नाराजगी का माहौल है,

वहीं सरकार ने कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष रखने की तैयारी शुरू कर दी है। इस घटनाक्रम ने प्रदेश के लाखों कर्मचारियों की उम्मीदों को एक बार फिर अधर में लटका दिया है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के अगले फैसले और सरकार की रणनीति पर टिकी हैं।

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