"पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' समिति का अध्यक्ष बनना गलत है", कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: November 22, 2023 10:27 AM2023-11-22T10:27:45+5:302023-11-22T10:31:43+5:30
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' समिति की अध्यक्षता कभी स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी।
नई दिल्ली: मनमोहन सिंह सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' समिति की अध्यक्षता कभी स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी।
उन्होंने कहा, "पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के प्रति मेरे मन में बहुत सम्मान है। उन्होंने देश में सर्वोच्च पद संभाला है। इसलिए उनसे मेरा सम्मानजनक निवेदन है कि उन्हें इस विशेष समिति या आयोग की अध्यक्षता कभी स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि देश का सर्वोच्च पद संभालने के बाद उन्हें ऐसी किसी भी ऐसी चीज के साथ जोड़ा जाना न सम्मानजनक है और न अकादमिक है, यह गलत है।"
इससे पहले सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस विषय पर कहा था कि समिति के सदस्य जनता के साथ मिलकर सरकार को इस विचार के "कार्यान्वयन" के संबंध में सुझाव देंगे।
रामनाथ कोविंद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ''भारत सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया और मुझे इसका अध्यक्ष नियुक्त किया है। समिति के सदस्य जनता के साथ मिलकर इसे दोबारा लागू करने के संबंध में सरकार को सुझाव देंगे।''
पूर्व राष्ट्रपति ने आगे कहा, "मैंने 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' पर सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के साथ संवाद किया है और उनसे सुझाव मांगे हैं। हर राजनीतिक दल ने किसी न किसी समय इसका समर्थन किया है। हम सभी दलों से उनका रचनात्मक समर्थन मांग रहे हैं क्योंकि यह देश के लिए फायदेमंद है। यह राष्ट्रीय हित का मामला है।"
उन्होंने कहा, "किसी भी राजनीतिक दल का इससे कोई लेना-देना नहीं है और इससे अंततः जनता को फायदा होगा क्योंकि जो भी पैसा बचेगा, उसका उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकेगा।"
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने बीते सितंबर में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के मुद्दे की जांच करने और देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए सिफारिशें करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था।
केंद्र सरकार का विचार है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के जरिये पूरे देश में बार-बार होने वाले चुनावों को रोका जा सके और लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जा सके। भारत में यह चुनावी व्यवस्था साल 1967 तक प्रचलन में थी, लेकिन दल-बदल, बर्खास्तगी और सरकारों के गिरने के कारण यह परंपरा बाधित हो गई थी।