तीन तलाक के बाद पति बन गया बच्चा, ससुर से हुआ हलाला, अब देवर से निकाह का दबाव
By कोमल बड़ोदेकर | Published: July 10, 2018 08:12 AM2018-07-10T08:12:32+5:302018-07-10T09:04:47+5:30
इस्लाम में तीन तलाक और शरीयत कानून जैसी कुप्रथाओं से पीड़ित एक मुस्लिम महिला ने आरोप लगाते हुए कहा है कि शरीयत कानून के नाम पर महिलाओं का जमकर शोषण हो रहा है।
नई दिल्ली, 10 जुलाई। इस्लाम में तीन तलाक और शरीयत कानून जैसी कुप्रथाओं से पीड़ित एक मुस्लिम महिला ने आरोप लगाते हुए कहा है कि शरीयत कानून के नाम पर महिलाओं का जमकर शोषण हो रहा है। आरोप लगाने वाली इस महिला का नाम शबीना है जो उत्तर प्रदेश के बरेली की रहने वाली है। शबीना ने बताया कि कैसे उसका पति तीन तलाक के चलते बेटा बन गया और उसका ससुर उसका पति बन गया।
इतना ही नहीं इस पीड़ित महिला ने बताया कि अब उसके ससुराल वाले उसका तीन तलाक उसके ससुर से करवाकर उसका निकाह उसके देवर से करवाने की फिराक में हैं। वहीं मामला सामने आने के बाद शहर की करीब 35 पीड़ित महिलाओं ने एक साथ आवाज बुलंद करते हुए मोदी सरकार से मांग की है वे जल्द से जल्द ऐसी कुरीतियों के खिलाफ सख्त कानून बनाए।
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प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान एक पीड़ित महिला ने बताया कि बच्चा न होने का हवाला देते हुए पहले उसके पति ने उसे तलाक दे दिया। इसके बाद दोबारा शादी की बात कह कर ससुर से उसका हलाला करवाया। इसके बाद पति अपने वादे से मुकर गया और अब देवर से हलाला कराने का दबाव बना रहा है।
इन सबसे तंग आकर शबीना तीन तलाक और हलाला पीड़ित महिलाओं के लिए एनजीओ चलाने वाली दरगाह आला हजरत खानदान की तलाक पीड़ित बहू निदा खान के घर पहुंची थी, जिसके बाद इस पूरे मामले का खुलासा हुआ।
बता दें कि बीते महीने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्षी पार्टियों की प्रमुख महिला नेताओं से अपील करते हुए कहा था कि वे राजनीतिक मतभेद से परे जाकर फौरी तीन तलाक को प्रतिबंधित करने वाले विधेयक, जो राज्यसभा में लंबित है , को पारित कराने में मदद करें।
वहीं इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुपत्नी प्रथा और निकाह हलाला को मान्यता देने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने के लिये दायर याचिका पर केन्द्र सरकार को जवाब तलब करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के 2017 के बहुमत के फैसले को ध्यान में रखते हुये 26 मार्च को इन मुद्दों को लेकर दायर याचिकायें पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दी थीं।
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