मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह संबंधी प्रावधानों को चुनौती देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से मांगा जवाब
By भाषा | Published: April 23, 2018 08:58 PM2018-04-23T20:58:38+5:302018-04-23T20:58:38+5:30
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने केन्द्र और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी करने के साथ ही इन मुद्दों को लेकर पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न करने का आदेश दिया।
नई दिल्ली , 23 अप्रैल। उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुपत्नी प्रथा और निकाह हलाला को मान्यता देने वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने के लिये दायर याचिका पर आज केन्द्र सरकार से जवाब मांगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने केन्द्र और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी करने के साथ ही इन मुद्दों को लेकर पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न करने का आदेश दिया। ये याचिकायें पहले ही पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास सुनवाई के लिये भेजी जा चुकी हैं।
न्यायालय ने लखनऊ निवासी नैश हसन की याचिका पर आज यह आदेश दिया। इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि ,‘‘ मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) कानून 1937 की धारा दो को उस सीमा तक असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून समक्ष बराबर), अनुच्छेद 15 (जाति , धर्म , जन्म स्थान या लिंग के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत आजादी को संरक्षण) का उल्लंघन करने वाली घोषित किया जाये जहां वह बहुपत्नी प्रथा , निकाह हलाला और निकाह मुताह और निकाह मिसयार को मान्यता देता है। ’’
हसन ने अपनी नयी याचिका में कहा है कि इस सवाल के जवाब की आवश्यकता है कि क्या धर्म निरपेक्ष संविधान के तहत महिलाओं को महज उनकी धार्मिक पहचान के सहारे दूसरी आस्थाओं का पालन करने वाली महिलाओं की तुलना में कमजोर दर्जा दिया जा सकता है।
याचिका में कहा गया है कि बहुपत्नी , निकाह हलाला , निकाह मुताह और निकाह मिसयार की प्रथायें मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक हैसियत और गरिमा पर असर डालती हैं और उन्हें अपने ही समुदाय के आदमियों और दूसरे समुदाय की महिलाओं और भारत के बाहर मुस्लिम महिलाओं की तुलना में असमान तथा कमजोर बनाती हैं।
शीर्ष अदालत ने तीन तलाक के मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के 2017 के बहुमत के फैसले को ध्यान में रखते हुये 26 मार्च को इन मुद्दों को लेकर दायर याचिकायें पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दी थीं।