अयोध्या विवाद: मस्जिद में नमाज इस्लाम का हिस्सा है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

By स्वाति सिंह | Updated: September 27, 2018 02:29 IST2018-09-27T02:29:06+5:302018-09-27T02:29:06+5:30

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ अपना फैसला सुनाएगी। पीठ ने 20 जुलाई को इसे सुरक्षित रख लिया था।

Is Namaz in Mosque Essential to Islam? Supreme Court is likely to pronounce its verdict today | अयोध्या विवाद: मस्जिद में नमाज इस्लाम का हिस्सा है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

अयोध्या विवाद: मस्जिद में नमाज इस्लाम का हिस्सा है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

नई दिल्ली, 26 सितंबर:अयोध्या विवाद से जुड़े एक मसले पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार ( 27 सितंबर) को फैसला सुना सकता है। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को सुनवाई के बाद फैसला लेगा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का आंतरिक हिस्सा है या नहीं। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ अपना फैसला सुनाएगी। पीठ ने 20 जुलाई को इसे सुरक्षित रख लिया था।

क्या कह रही है यूपी सरकार 

उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि कुछ मुस्लिम समूह ‘इस्लाम का अभिन्न हिस्सा मस्जिद के नहीं होने’ संबंधी 1994 की टिप्पणी पर पुनर्विचार करने की मांग कर लंबे समय से लंबित अयोध्या मंदिर - मस्जिद भूमि विवाद मामले में विलंब करने की कोशिश कर रहे हैं। 

क्या है मुस्लिम पक्ष का कहना

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इसलिए इस फैसले पर दोबार विचार किया जाएगा। इसलिए इनका कहना है कि इस पर सुनवाई होनी चाहिए। बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। 

क्या है विवाद?

अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना से संबंधित दो मुकदमे हैं। अयोध्या का राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित है। पहले मुकदमे में अयोध्या की जमीन किसकी है, इस पर अभी सुनवाई होनी बाकी है। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों ने 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को मानने से मना कर दिया था, जिसमें  कहा गया था कि इस जमीन को बांट दिया जाए। हाई कोर्ट ने जमीन को 2:1 के अनुपात में बांटने का फैसला किया गया था। जिसको दोनों पक्षों ने अस्वीकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने ने मध्यकालीन स्मारक को विध्वंस करने की कार्रवाई को ‘अपराध’ बताते हुये कहा था कि इसने संविधान के ‘धर्मनिरपेक्ष ताने बाने’ को हिला कर रख दिया।

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