साक्षात्कार: 'पहाड़ पर शिवाजी महाराज का जीवन उकेरना चाहता हूं', 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' बनाने वाले मूर्तिकार राम सुतार ने जताई इच्छा

By शरद गुप्ता | Published: May 11, 2022 09:28 AM2022-05-11T09:28:24+5:302022-05-11T09:33:45+5:30

दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' बनाने वाले 97-वर्षीय मूर्तिकार राम सुतार पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजे जा चुके हैं. अभी भी वे मुंबई के मरीन ड्राइव पर लगने वाली शिवाजी महाराज की घुड़सवारी करती मूर्ति और अयोध्या में लगने वाली भगवान राम की मूर्ति बनाने का इंतजार कर रहे हैं.

interview sculptor ram sutar shivaji maharaj | साक्षात्कार: 'पहाड़ पर शिवाजी महाराज का जीवन उकेरना चाहता हूं', 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' बनाने वाले मूर्तिकार राम सुतार ने जताई इच्छा

साक्षात्कार: 'पहाड़ पर शिवाजी महाराज का जीवन उकेरना चाहता हूं', 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' बनाने वाले मूर्तिकार राम सुतार ने जताई इच्छा

Highlights97-वर्षीय मूर्तिकार राम सुतार पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजे जा चुके हैं.आज दुनिया के 50 से अधिक देशों में मेरी बनाई गांधीजी की मूर्ति लगी है.मुंबई और पुणे के बीच एक पहाड़ काटकर शिवाजी महाराज का जीवन उकेरने का विचार है.

दुनिया के दसियों देशों में उनकी बनाई मूर्तियां लगी हैं. दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' बनाने वाले 97-वर्षीय मूर्तिकार राम सुतार पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजे जा चुके हैं.

अभी भी वे मुंबई के मरीन ड्राइव पर लगने वाली शिवाजी महाराज की घुड़सवारी करती मूर्ति और अयोध्या में लगने वाली भगवान राम की मूर्ति बनाने का इंतजार कर रहे हैं. महाराष्ट्र स्थित धुलिया के मूल निवासी राम सुतार ने अपने काम और जीवन के बारे में लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता से लंबी बात की.

आपका बचपन बहुत अभाव में बीता. आज आपके पास यश है और पैसा भी. अपने जीवन के सफर को कैसे देखते हैं?

मेरे पिताजी बढ़ई थे. परिवार का जो भी काम था उसी को मैंने आगे बढ़ाया. पौधे से पेड़ बना, उसमें शाखाएं आईं, फल-फूल लगे. बस और क्या?

आज तक आपने कितनी मूर्तियां बनाई हैं?

याद नहीं. अनगिनत. काम मिलता गया, करता गया.

आप बहुत अच्छे चित्र बनाते हैं, फिर आपने मूर्तिकार बनना ही क्यों पसंद किया?

हर मूर्ति को बनाने से पहले स्केचिंग ही तो करता हूं. मैंने बहुत सी पेंटिंग भी बनाई हैं. लेकिन सबसे अधिक आनंद मूर्तियां बनाने में ही आया.

आपकी मूर्तियां शारीरिक हावभाव से तो संवाद करती ही हैं लेकिन उनके चेहरे की एक-एक लकीर आप कैसे पकड़ लेते हैं?

मैं कल्पना करता हूं यदि यह व्यक्ति हंसेगा तो चेहरे की मांसपेशियां कैसे काम करेंगी और वह क्रोध में होगा तो मांसपेशियां कैसे मुड़ेंगी. इसी से हाव-भाव बनते और बदलते हैं.

गांधीजी की अधिकतर मूर्तियां ध्यान की मुद्रा में ही क्यों बनाई हैं? उनके जीवन के और भी पहलू तो थे.

मैंने गांधीजी की पहली मूर्ति हंसते हुए ही बनाई थीं. लेकिन संसद भवन में लगाने के लिए सरकार की ओर से ध्यान मुद्रा में मूर्ति चाहिए थी. उसके बाद सबको गांधीजी की वही मूर्ति पसंद आई. आज दुनिया के 50 से अधिक देशों में मेरी बनाई गांधीजी की यही मूर्ति लगी है. वह गांधीजी के मूल चरित्र को दर्शाती है - शांति और अहिंसा का प्रतीक.

आपके जीवन का सबसे बेहतरीन दौर कौन सा रहा? और सबसे कठिन दौर?

मैं वर्तमान में जीता हूं. न बीती बातों का अफसोस या खुशी होती है और न ही भविष्य की चिंता. जो हो गया सो हो गया. आगे का कुछ सोचना नहीं है. इसलिए मुझे अपने जीवन के सभी दौर अच्छे लगते हैं.

सबसे अधिक मुश्किल किस मूर्ति को बनाने में आई?

मुझे मूर्तियां बनाने में आनंद आता है. जो काम आपको अच्छा लगता है उसमें कभी कोई मुश्किल नहीं आती.

क्या कोई ऐसी मूर्ति है जो आपकी कल्पना में हो लेकिन अभी तक बना नहीं पाए?

मैंने गांधीजी की एक मूर्ति की कल्पना की थी जिसमें वे दो बच्चों के साथ हैं. एक लड़का और एक लड़की. लड़के के हाथ में शांति का प्रतीक कबूतर है और लड़की के हाथ में समृद्धि का प्रतीक फूल. यह मूर्ति अभी बाकी है. इसी तरह मुंबई और पुणे के बीच एक पहाड़ काटकर शिवाजी महाराज का जीवन उकेरने का विचार है. एक दो बार बात भी हुई. देखना है महाराष्ट्र सरकार कब इस प्रस्ताव को मंजूरी देती है.

क्या अफगानिस्तान के बामियान, अमेरिका के माउंट रशमोर या अजंता-एलोरा जैसा कुछ बनाने का सोचा है?

मैंने अपने जीवन की शुरुआत में अजंता एलोरा की गुफाओं में ही काम किया. कुछ गुफाएं अधूरी पड़ी थीं. उनमें से एक में गांधीजी की मूर्ति बनाने की सोची थी. गुजरात के केवड़िया में बनाई सरदार पटेल की मूर्ति का सिर माउंट रशमोर में बने राष्ट्रपतियों के सिर से 10 फुट बड़ा है. इससे अधिक क्या चाहिए? हां, भारत में उस तरह के चट्टानी पहाड़ भी तो नहीं हैं.

अपनी बनाई हजारों मूर्तियों में आप को सबसे अधिक पसंद कौन सी है?

मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर बनाए जा रहे गांधी सागर बांध पर बनी चंबल की मूर्ति. इसलिए भी क्योंकि मैंने सिर्फ 35 वर्ष की आयु में यह काम किया. वह सिर्फ 10000 रुपए में 7 फुट ऊंची चंबल की मूर्ति चाहते थे.

वहां पहुंच कर मुझे लगा कि इतनी छोटी मूर्ति दूर से दिखाई ही नहीं देगी. वे अधिक पैसे देने को तैयार नहीं थे. मैंने उन्हीं पैसों में अकेले एक वर्ष के अंदर यह 45-फुट ऊंची चंबल देवी की मूर्ति बनाई. उन्होंने सिर्फ कांक्रीट दी.

इसका एक पहाड़ बनाया जिसे मैंने अकेले छेनी-हथौड़ी से तराश कर यह मूर्ति बनाई. बांध के ठेकेदार ने सिर्फ एक आदमी छेनी तेज करने के लिए दिया था. मैं रोज उस कांक्रीट के पहाड़ पर चढ़ता और शाम तक काम करता रहता. आखिर यह दो राज्यों के सहयोग का भी प्रतीक थी. इसीलिए इसका नाम भाईचारा रखा. मेरे लिए काम का महत्व था और है, पैसे का नहीं.

आज आप ढाई सौ, तीन सौ मीटर ऊंची विश्व की सबसे बड़ी मूर्तियां बना रहे हैं. इतनी सटीक, इतनी बड़ी मूर्तियां कैसे बना पाते हैं?

पहले अपने स्टूडियो में क्ले मिट्टी का मॉडल बनाता हूं. स्टायरोफोम का बड़ा मॉडल बनाता हूं. फिर कम्प्यूटर पर उसका स्केल बड़ा करता जाता हूं. फिर उसके अलग-अलग हिस्से फाउंड्री में ढाले जाते हैं. जिन्हें आपस में जोड़कर बड़ी मूर्ति बनाई जाती है.

आपके अच्छे स्वास्थ्य का क्या राज है?

बचपन में पढ़ाई करते समय मैंने योग सीखा था. आज भी शाम घर पहुंच कर एक से डेढ़ घंटे योग अभ्यास करता हूं. इससे पूरा शरीर स्वस्थ रहता है. मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है.

Web Title: interview sculptor ram sutar shivaji maharaj

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे

टॅग्स :Indiaभारत