Interview: मोदी सरकार में कोयला सचिव रहे अनिल स्वरूप बोले- कोयला घोटाला था ही नहीं, सीएजी की गणना गलत थी

By शरद गुप्ता | Published: August 10, 2022 08:46 AM2022-08-10T08:46:15+5:302022-08-10T08:46:15+5:30

कोयला घोटाला को लेकर कई तरह की बातें देश में होती रही हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार में कोयला सचिव रहे अनिल स्वरूप ने कहा है कि यह घोटाला तो था ही नहीं. सारी गड़बड़ी तत्कालीन कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) विनोद राय की थी.

Interview Anil Swarup, former coal secretary in Narendra Modi govt, says – there was no coal scam calculation of CAG was wrong | Interview: मोदी सरकार में कोयला सचिव रहे अनिल स्वरूप बोले- कोयला घोटाला था ही नहीं, सीएजी की गणना गलत थी

कोयला घोटाला था ही नहीं, सीएजी की गणना गलत थी: अनिल स्वरूप (फोटो- सोशल मीडिया)

कोयला सेक्टर संकट से गुजर रहा है. भारी आयात के बावजूद बार-बार कोयले की कमी हो रही है. क्या इसके पीछे यूपीए सरकार का कथित कोयला घोटाला जिम्मेदार है जिसके लिए तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता को सीबीआई अदालत ने जिम्मेदार ठहराया है. इस बारे में मोदी सरकार में कोयला सचिव रहे अनिल स्वरूप से लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता ने बात की. मुख्य अंश...

- आखिर कोयला सेक्टर में क्या समस्या है? बार-बार कोयले की कमी क्यों हो रही है?

इसके कई कारण हैं. पहला, तथाकथित कोयला घोटाले के बाद सभी खदानें नीलामी के जरिये दी जा रही हैं. दूसरी बात, सबसे बड़ी कोयला सप्लायर कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड में लगभग एक वर्ष तक चेयरमैन ही नहीं नियुक्त हुआ था, इसलिए अहम निर्णय समय पर नहीं लिए जा सके. और कोयला ले जाने वाले रेल वैगनों की भी कमी है.

- इसे तथाकथित घोटाला क्यों कह रहे हैं?

दरअसल यह घोटाला तो था ही नहीं. सारी गड़बड़ी तत्कालीन कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) विनोद राय की थी. उन्होंने गणना ठीक नहीं की थी. कोल इंडिया द्वारा बेचे जा रहे कोयले के बाजार भाव और प्रोडक्शन कॉस्ट का औसत का अंतर लेकर उन्होंने संभावित लाभ 1.8 लाख करोड़ बता दिया जो सही नहीं था.

- क्यों सही नहीं था?

कोयला निकाले जाने की लागत कई बातों पर निर्भर होती है - मसलन उसे कितनी गहराई से निकाला जा रहा है, उसे कितनी दूर पहुंचाया जाना है और खदान में कितना कोयला है. हर खदान से कोयला निकाले जाने की लागत अलग होती है. उन्होंने सारी गणना 195 रुपए प्रति टन लाभ से की जबकि लागत 400 रुपए से 3500 रुपए प्रति टन तक होती है. इसका औसत लेना सही नहीं है. जो मुनाफा उन्होंने बताया वह हो ही नहीं सकता था.

- लेकिन उनकी रिपोर्ट तो सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार की.

उन्होंने तो सिर्फ 2004 से गणना की थी. सुप्रीम कोर्ट ने तो 1990 के दशक में भी हुए सभी कोयला खानों के आवंटन रद्द कर दिए. इसका असर कोयला उत्पादन पर पड़ा.

- लेकिन आपने तो कोयला खानों की नीलामी की थी. उससे सरकार को कितना पैसा मिला?

शुरू में लोगों में उत्साह था. इसलिए नीलामी की कुल रकम 1.8 लाख करोड़ के पास पहुंच गई थी. लेकिन फिर बोली लगाने वालों को समझ आया कि उन्होंने ज्यादा दाम लगाए हैं. इसलिए मेरे कार्यकाल के दौरान नीलामी की रकम की महज 10 प्रतिशत धनराशि ही सरकार को मिल पाई. अभी तक सरकार को 50 हजार करोड़ भी नहीं मिले.

- यानी यह घोटाला था ही नहीं?

हो सकता है कुछ कंपनियों को फायदा हुआ हो लेकिन जिस विंडफाल लाभ की बात उन्होंने अपनी रिपोर्ट में की वह संभव नहीं था. वैसे भी सीएजी को अपनी रिपोर्ट संसद को देनी होती है न कि प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घोषित करनी होती है. इसी से उनकी मंशा साफ हो जाती है. मैंने जितने तथ्य दिए हैं उनमें से किसी का भी खंडन किसी ने कभी नहीं किया.

- कोयला उत्पादन पर इसका क्या असर पड़ा?

सुप्रीम कोर्ट ने 204 कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द कर दिया था. उस समय 46 करोड़ टन कोयला उत्पादित किया जा रहा था जिसमें 9 करोड़ टन इन खानों से आ रहा था.

- आज भी चल रही कोयले की कमी इसी वजह से है?

तब से आज बिजली की मांग बढ़ गई है. लेकिन 2018 से 2020 के बीच कोयले की सप्लाई मात्र 60 करोड़ टन पर स्थिर थी. कोयला उत्पादन की वृद्धि दर 2014-15 में 9 प्रतिशत पर थी. यदि यही दर कायम रही होती तो आज कोल इंडिया लिमिटेड का उत्पादन 85 से 90 करोड़ टन होता और कोयला संकट का सवाल ही नहीं होता.

- क्या कोल इंडिया के सामने आर्थिक संकट भी है?

कोल इंडिया के पास 2014-15 में 35000 करोड़ का रिजर्व था जिसे सरकार ने डिविडेंड में खर्च कर दिया. आज उसके पास महज आठ हजार करोड़ का रिजर्व है जिसमें भी अधिकतर देनदारियों के रूप में मिलना है. इसीलिए वह नई खदानें नहीं शुरू कर पा रहा और कोयला संकट बना हुआ है.

- इस कथित घोटाले से जुड़े 11वें मामले पर हाईकोर्ट के फैसले में तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता को सजा सुनाई गई है. क्या वे सच में दोषी थे?

मुझसे पहले कोयला सचिव थे. लोग उनकी ईमानदारी की कसमें खाते थे. कोर्ट के आदेश में निजी कंपनी के आंकड़ों पर सवाल उठाए गए हैं न कि एचसी गुप्ता पर. लेकिन चूंकि वह कोयला आवंटन समिति के अध्यक्ष थे इसलिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. उन्होंने तो उन्हीं तथ्यों के आधार पर फैसले लिए जो उनके सामने रखे गए. यदि उन्हें सजा दी जा रही है तो समिति के अन्य सभी सदस्यों को भी वही सजा मिलनी चाहिए क्योंकि फैसलों में उनकी भी सहमति थी.

- इसका नौकरशाही पर क्या असर पड़ा?

इसके बाद अफसरों ने फाइलों पर फैसले लेना बंद कर दिया था. कोई जिम्मेदारी ही नहीं लेना चाहता था क्योंकि कोई एचसी गुप्ता की तरह सजा नहीं भुगतना चाहता. संदेह का वातावरण बन गया था. एक मामले में जब सीबीआई ने अफसरों के खिलाफ कुछ नहीं पाया तो सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को एक बार फिर जांच करने के निर्देश दिए.

- क्या आज भी यही स्थिति है?

नहीं. अधिकारियों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने सेवा नियमावली में संशोधन कर दिया है. अब किसी भी अधिकारी को तब तक सजा नहीं हो सकती जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि उसके किसी फैसले से उसको निजी लाभ हुआ है.

- कथित कोयला घोटाले का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा?

कोयले के दाम बढ़ गए. हमारी जरूरत का लगभग 20 प्रतिशत कोयला महंगे दामों पर आयात किया जा रहा है. बिजली उत्पादन कंपनियों और स्टील कंपनियों की लागत काफी बढ़ गई. इसीलिए उनमें से कइयों को काम बंद करना पड़ा.

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