पटना: एनडीए से नाता तोड़ महागठबंधन के साथ जा कर प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा पाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ निराशा ही लगती दिख रही है। इसका कारण यह है कि उनकी विपक्षी एकता की मुहिम धरातल पर उतरती दिखाई नही दे रही है। शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ आने के फौरन बाद जो दिल्ली गये, उसके बाद उन्होंने चुप्पी साध ली है।
एनडीए को झटका देने के बाद उन्होंने यह ऐलान किया था कि अब वह विपक्षी एकता की मुहिम के लिए देशभर का दौरा करेंगे और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष को खड़ा करेंगे। लेकिन उनका यह मुहिम अब ठंढे बस्ते में जाता दिखाई देने लगा है। इस बीच अब एक नई बात यह सामने आने लगी है कि देश में विपक्षी एकता की मुहिम चलाने के बदले नीतीश कुमार अब खुद को बिहार में ही केन्द्रीत करते नजर आ रहे हैं।
इसी कड़ी में अब वह नए साल पर फिर से राज्य के सभी जिलों का दौरा करने वाले हैं। उनके बिहार दौरे की शुरुआत खरमास के बाद यानी 15 जनवरी के बाद होने की चर्चा है। इसके लिए जदयू की ओर से तैयारी भी शुरू कर दी गई है। अब जल्द ही यात्रा के तारीखों का ऐलान भी हो सकता है।
ऐसे में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ जाने के बावजूद खुद को सहज महसू्स नही कर पा रहे हैं। इसका कारण यह है कि महागठबंधन की मुख्य सहयोगी दल राजद के द्वारा उनपर सत्ता के हस्तांतरण का दबाव बनाया जाने लगा है।
राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह कई बार यह दोहरा चुके हैं कि बडे पद अर्थात प्रधानमंत्री पद के लिए छोटा पद अर्थात मुख्यमंत्री पद का जल्द ही त्याग कर नये मुहिम में नीतीश कुमार को जुट जाना चाहिये। यह न केवल जगदानंद सिंह ने कहा है बल्कि राजद के कई नेताओं ने दबी जुबान यह बातें कहने लगे हैं।
ऐसे में जदयू भले ही इसपर खुलकर कुछ नही बोल पा रही है, लेकिन उन्हें इस बात का अहसास होने लगा है कि सत्ता अगर जल्द ही तेजस्वी यादव को नही सौंपा गया तो कभी भी सियासी भूचाल की स्थिती उत्पन्न हो जा सकती है। शायद यही कारण है कि राजद का ध्यान भटकाने के उद्देश्य से नीतीश कुमार यात्रा की सियासत जल्द से जल्द शुरू कर देना चाहते हैं।
ऐसे में कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस बार अचानक से यात्रा शुरू कर शराबबंदी जैसी योजना को लेकर फिर से जन जागरूकता अभियान भी चला सकते हैं, तो दूसरी और वे यात्रा के बहाने जदयू के जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाएंगे। इसलिए उन्होंने यात्रा के बहाने जदयू की जमीन मजबूत करने की योजना बनाई है।
नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि उनका मकसद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में वापसी नहीं करने देना है। उनका यह सपना तभी साकार होगा जब नीतीश की जदयू को बिहार को बड़ी सफलता मिले। इसी बहाने नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के पहले राज्य के सभी संसदीय क्षेत्रों में जनता का मिजाज भी भांपने का प्रयास करेंगे।
उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार इसके पहले 2005 में न्याय यात्रा, 2009 जनवरी में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, सितंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, नवंबर 2011 में राज्य यात्रा, सितंबर 2012 में अधिकार यात्रा, मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2014 मे संपर्क यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, दिसंबर 2017 में समीक्षा यात्रा, दिसंबर 2019 में जल-जीवन-हरियाली यात्रा, 2021 में समाज सुधार यात्रा निकाल चुके हैं।