इंडियन बैंक ने गर्भवती महिलाओं से संबंधित मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट प्रारूप को वापस लिया, दिल्ली महिला आयोग ने जताई थी कड़ी आपत्ति
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: July 20, 2022 02:53 PM2022-07-20T14:53:41+5:302022-07-20T14:59:03+5:30
इंडियन बैंक ने कहा कि महिला उम्मीदवारों के गर्भावस्था से जुड़े हुए मेडिकल प्रारूप को वापस ले लिया है लेकिन साथ ही बैंक ने यह भी कहा कि उनके द्वारा महिला सहित सभी से मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट इसलिए लिया जाता है, ताकि उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उपयुक्त पोस्टिंग प्रदान किया जा सके।
दिल्ली: देश के प्रमुख सार्वजनिक बैंकों में से एक इंडियन बैंक ने मंगलवार को आधिकारिक बयान जारी करते हुए विवादास्पद महिला मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट के प्रारूप को वापस लेने की घोषणा की है। इस संबंध में बैंक ने कहा कि महिला उम्मीदवारों के गर्भावस्था से जुड़े हुए प्रारूप को वापस लिया जा रहा है लेकिन इसके साथ ही बैंक ने यह भी कहा कि उनके द्वारा महिला सहित सभी से मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट इसलिए लिया जाता है, ताकि उनके शारीरिक क्षमता को देखते हुए उपयुक्त पोस्टिंग प्रदान किया जा सके।
इसने साथ ही बैंक ने जोर देकर कहा कि इंडियन बैंक हमेशा से "प्रगतिशील" बैंक रहा है, जो अपने यहां कार्यरत महिला कर्मचारियों की देखभाल और उनके सशक्तिकरण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है। यही कारण है कि इंडियन बैंक के कुल कर्मचारियों की संख्या में लगभग 29 फीसदी महिलाएं हैं।
बैंक ने बीते 20 जून को एक सर्कुलर जारी करते हुए कहा था कि वो महिला उम्मीदवार गर्भ धारण करने के 12 सप्ताह के बाद भी मेडिकल फिटनेस दिखाने के बाद सेवा में शामिल हो सकती हैं।
बैंक के इस सर्कुल को भेदपूर्ण मानते हुए दिल्ली महिला आयोग ने इस मामले में कड़ा एतराज बताया था, जिसके बाद अब बैंक ने महिलाओं के गर्भावस्था से संबंधित मेडिकल सर्टिकेट के सर्टिफिकेट प्रारूप को हटा दिया है।
इस संबंध में दिल्ली महिला आयोग बैंक के इस नियमावली को महिला भर्ती के खिलाफ "भेदभावपूर्ण" नीति करार देते हुए तत्काल वापस लेने की मांग करते हुए बैंक से जवाब तलब किया था।
बैंक नीति के खिलाफ कड़ा आक्रोश व्यक्त करते हुए दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को पत्र लिखकर मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की थी।
मालूम हो कि दिल्ली महिला आयोग ने बीते जून में मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें बताया गया था कि इंडियन बैंक उन महिलाओं को, जो तीन महीने से अधिक गर्भवती हैं। उन्हें सेवा के लिए "अस्थायी रूप से अयोग्य" करार दे रहा है और उनके चयनीत होने पर भी सेवा में शामिल होने पर रोक लगा रहा है।
इस संबंध में महिला आयोग का कहना था कि जाहिर है इस तरह की भेदभाव पूर्ण नीतियों के कारण बैंक महिलाओं के साथ अन्याय कर रहा है और पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले उनके उनकी समानता को कम करके आंक रहा है। इस भेदभाव पूर्ण शतों के कारण महिलाओं की वरिष्ठता का क्रम और उनका वेतन भी प्रभावित होगा। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)