जानिए स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से ही तिरंगा क्यों फहराते हैं?

By रंगनाथ | Published: August 14, 2018 07:26 AM2018-08-14T07:26:00+5:302018-08-14T07:26:00+5:30

यूनेस्को ने लाल किले के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है। पीएम नरेंद्र मोदी अपने मौजूदा कार्यकाल में आखिरी बार स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से तिरंगा फहराएंगे।

Independence day special know why india pm hoist flag from red fort on 15 august | जानिए स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से ही तिरंगा क्यों फहराते हैं?

जानिए स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से ही तिरंगा क्यों फहराते हैं?

जब 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी लागू की और दो दिन बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने 500 रुपये का नया नोट जारी किया तो उसके पीछे लाल किले की तस्वीर थी, जिस पर तिरंगा लहरा रहा था। लाल किला और तिरंगे का अक्स एक-दूसरे के इस कदर पर्याय हो चुके हैं, जिनकी आज एक-दूसरे के बिना कल्पना भी मुश्किल है।

इस 15 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी एक बार फिर 71 सालों से जारी परंपरा के अनुरूप स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराएंगे और राष्ट्र को सम्बोधित करेंगे। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी की वर्षगांठ पर देश के प्रधानमंत्री लाल किले से ही तिरंगा क्यों फहराते हैं? 

आपको याद होगा जब कुछ साल पहले 'सूचना का अधिकार' के तहत भारत सरकार से पूछा गया था कि मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा क्यों कहा जाता है तो जवाब में सरकार ने कहा कि ऐसा कोई सरकारी फरमान नहीं है। बापू को आजादी की लड़ाई के दौरान रवींद्रनाथ टैगोर ने महात्मा कहा था और तभी ये उनके नाम से जुड़ गया।

इसी तरह लाल किले से प्रधानमंत्री के तिरंगा फहराने के पीछे कोई कानूनी या संवैधानिक प्रावधान नहीं है। यह एक परंपरा है जो आजाद हिंदुस्तान की पहचान बन चुकी है। 

सन् 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से तिरंगा फहराया। पीएम नेहरू ने 1964 में अपने निधन से पहले तक इस परंपरा को जारी रखा।

नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने भी स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से तिरंगा फहराने और राष्ट्र को सम्बोधित करने की रवायत कायम रखी और इस तरह ये अलिखित परंपरा स्थापित हो गई और बाद के प्रधानमंत्रियों ने इसे जारी रखा।

लेकिन, पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी मिलने के बाद लाल किले को ही तिरंगा फहराने के लिए क्यों चुना? इसकी वजह है लाल किले का इतिहास। 

देश का दिल दिल्ली

भारत के केंद्र में स्थित दिल्ली करीब हजार सालों से भारतीय महाद्वीप की सबसे शक्तिशाली रियासतों की राजधानी रही है। पौराणिक इतिहास में पाण्डवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ भी आज की दिल्ली के आसपास ही स्थित मानी जाती है। बात अगर ज्ञात इतिहास की करें तो भी दिल्ली का इतिहास कम से कम एक हजार साल पुराना है।

गुलाम वंश (1206-1290) के राजा कुतुबद्दीन ऐबक ने 1214 में दिल्ली को अपनी सल्तनत की राजधानी बनायी। गुलाम वंश के बाद खिलजी वंश (1290-1320), तुगलक वंश (1320-1414), सैयद्द वंश (1414-1451) और लोधी वंश (1451-1526) ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाए रखा। तुगलक 1327 में अपने साम्राज्य की राजधानी दिल्ली को दौलताबाद ले गया, लेकिन 1335 में उसे लौटकर दिल्ली वापस आना पड़ा।

सन् 1526 में उज़्बेकिस्तान से आए बाबर ने लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हराकर हिंदुस्तान में मुगल वंश की नींव रखी। बाबर महज चार साल तक ही तख्त पर बैठ सका और 1530 में उसका निधन हो गया। बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूँ मुगल साम्राज्य का वारिस बना।

1540 में शेर शाह सूरी ने हुमायूँ को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया और मुगल बादशाह को देश छोड़कर भागना पड़ा। लेकिन 1555 में हुमायूँ ने वापस दिल्ली पर कब्जा कर लिया, लेकिन अगले ही साल 1556 में दिल्ली स्थित पुराने किले में उसकी मौत हो गई। 

दिल्ली पर मुगलों का कब्जा

हुमायूँ के बाद उसका बेटा अकबर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। अकबर ने मुगल साम्राज्य को अभूतपूर्व विस्तार दिया। लेकिन, उसने दिल्ली के बजाय आगरा स्थित फतेहपुर सीकरी में अपनी  राजधानी बनाई। अकबर के शासन में मुगल साम्राज्य हिंदुस्तान का प्रतीक बन गया।

अकबर के बाद उसके बेटे जहाँगीर ने भी आगरा से ही मुगल सल्तनत की बागडोर संभाली।  करीब 80 साल तक आगरा ही देश की सबसे ताकतवर हुकूमत का केंद्र रहा। जहाँगीर के बेटे शाहजहाँ ने 1638 में दिल्ली में लाल किले का निर्माण शुरू करवाया जो करीब 10 साल में पूरा हुआ।

शाहजहाँ ने 1648 में मुगल सल्तनत की राजधानी आगरा से दिल्ली ले आया। शाहजहाँ 1658 तक दिल्ली का बादशाह रहा। उसके बाद उसके बेटे औरंगजेब हिंदुस्तान का बादशाह बना। 

1707 में औरंगजेब के निधन के बाद मुगल साम्राज्य की नींव दरकने लगी, लेकिन 1857 की क्रांति तक दिल्ली का लाल किला हिंदुस्तान के तख्तो-ताज का प्रतीक बना रहा।

1857 की क्रांति और लाल किला

1857 की क्रांति में मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को क्रांतिकारियों का निर्विवाद नेता माना गया। आजादी की पहली लड़ाई में भारतीय क्रांतिकारियों की हार हुई और जफर को अंग्रेजों ने रंगून दरबदर कर दिया, जहां उनका निधन हो गया। 1857 की क्रांति के विफल होने के लाल किले पर ब्रिटिश साम्राज्य का यूनियन जैक फहराने लगा।

अंग्रेजी हुकूमत की राजधानी पहले कोलकाता (तब कलकत्ता) थी। 1911 में ब्रिटिश हुकूमत ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। चाहे वो 1857 की क्रांति हो या उसके बाद 1947 तक चली आजादी की लड़ाई हो लाल किले पर कब्जा हिंदुस्तान की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया था।

दिल्ली का भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कितना महत्व है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि जब सुभाष चंद्र बोस ने रंगून में आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो उन्होंने "दिल्ली चलो" का नारा देते हुए लाल किले पर दोबारा कब्जा हासिल करने का आह्वान किया। 

देश को जब 200 सालों के ब्रिटिश कोलनियल रूल से आजादी मिली तो उसका जश्न मनाने के लिए लाल किले से बेहतर विकल्प दूसरा नहीं था।

लाल किला है यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज

लाल रंग के बलुआ पत्थर से बना लाल किला आज भी भारत की एकता और अखण्डता का प्रतीक बना हुआ है।

यूनेस्को ने इसके महत्व को रेखांकित करते हुए लाल किले को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है।

15 अगस्त को पीएम मोदी अपने मौजूदा कार्यकाल में आखिरी बार लाल किले से तिरंगा फहराएंगे।

इसी के साथ लाल किला हिंदुस्तान के इतिहास का एक और अहम अध्याय के अंत का मूक गवाह बन हमारे बीच मौजूद रहेगा।

English summary :
Know Why on Independence day of India Indian Prime Minister Hoist Tricolour on Red Fort. Know Red Fort History and its importance in Indian history.


Web Title: Independence day special know why india pm hoist flag from red fort on 15 august

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे