स्वतंत्रता दिवस 2022: आजादी का इतिहास, महत्व और तथ्य
By शिवेंद्र राय | Updated: August 15, 2022 06:43 IST2022-08-15T06:43:21+5:302022-08-15T06:43:21+5:30
200 सालों के संघर्ष और लाखों लोगों के बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। इस साल हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत सरकार आजादी के अमृत महोत्सव के अतर्गत कई कार्यक्रम आयोजित कर रही है जिसमें हर घर तिरंगा अभियान भी शामिल है। ये अवसर है उन अनगिनत लोगों के संघर्ष, त्याग और बलिदान को याद करने का जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी ताकि हम आजाद हवा में सांस ले सकें।

इस साल हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं
नई दिल्ली: लगभग दो सौ साल के संघर्ष के बाद, भारत को 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली। इस साल यानी कि 15 अगस्त 2022 को देश ने आजादी के 75 साल पूरे किए। केंद्र सरकार की 'आजादी का अमृत महोत्सव' पहल के तहत इस ऐतिहासिक अवसर का जश्न मनाने के लिए देश भर में बड़ी संख्या में कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। दुनिया भर में फैले भारतीयों द्वारा भी इस दिन को बहुत उत्साह के साथ मनाया जा रहा है।
भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा था। 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीय स्वतंत्रता विधेयक पेश किया गया था। इस विधेयक को एक पखवाड़े के भीतर मंजूरी दे दी गई थी। अंतत: 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। राष्ट्र को आजादी तो मिली लेकिन इसे आजादी की भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। दो सौ साल के संघर्ष के बाद जब स्वतंत्रता मिली तब देश दो हिस्सों में बंट गया था। भारत का ही एक हिस्सा कट कर पाकिस्तान के रूप में नया देश बना।
भारत में ब्रिटिश शासन की नींव साल 1757 में पड़ी। इसी साल बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला की हत्या हुई। 23 जून, 1757 को बंगाल की सेना रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से हार गयी। इतिहास में इसे प्लासी की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। हार के बाद दो जुलाई 1757 को जवाब सिराजुद्दौला को पकड़े गए। ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुए समझौते के मुताबिक मोहम्मद अली बेग ने नवाब की हत्या कर दी। प्लासी की लड़ाई जीतने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे देश में धीरे-धीरे पांव पसारने शुरू कर दिए और भारत ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के प्रभुत्व में आ गया।
1857 का स्वाधीनता संग्राम
प्लासी की लड़ाई के लगभग 100 साल बाद 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला विद्रोह हुआ। इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई। धीरे-धीरे यह कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई। इसकी शुरूआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई थी लेकिन जल्द ही यह क्रान्ति के रूप में बदल गई। पूरे भारत में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह शुरू के हो गया। इस महान क्रांति को भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।
1857 के विद्रोह का एक प्रमुख राजनीतिक कारण तब के ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति थी। डलहौजी ने नियम बनाया था कि किसी राजा के निःसंतान होने पर उस राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना लिया जाएगा। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ। रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। अब अन्य राजाओं को भय सताने लगा कि उनका भी विलय थोड़े दिनों की बात रह गई है। इसके अलावा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पेंशन रोक दी गई जिससे भारत के शासक वर्ग में विद्रोह की भावना मजबूत होने लगी।
बहुत कम समय में आंदोलन देश के कई हिस्सों तक पहुंच गया। लेकिन दक्षिण के प्रांतों ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। अहम शासकों जैसे सिंधिया, होल्कर, जोधपुर के राणा और अन्यों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया। 1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला। इसे 1858 के मध्य में कुचला गया। मेरठ में विद्रोह भड़कने के चौदह महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को लार्ड कैनिंग ने घोषणा की कि विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया है।
कांग्रेस की स्थापना और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष
28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) का गठन गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल, बॉम्बे में किया गया। अंग्रेज अधिकारी ए. ओ. ह्यूम ने इसके गठन में बड़ी भूमिका निभाई। कांग्रेस की स्थापना का शुरूआती उद्देश्य भारत के युवाओं को राजनीतिक आंदोलन के लिए प्रशिक्षित करना था। हालांकि यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस की स्थापना सेफ्टी वाल्व के रूप में की गई थी।
9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी जी 46 वर्ष की उम्र में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए। फरवरी, 1919 में गांधी जी ने सत्याग्रह सभा की स्थापना की। इसके बाद 1920 में असहयोग – आंदोलन की शुरुआत हुई। असहयोग आंदोलन भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ पहला बड़ा राजनीतिक आंदोलन था। इसने ब्रितानी हुकुमत की जड़ें हिला दी। इस बीच भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की भी शुरूआत हो चुकी थी। 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। 12 मार्च से 6 अप्रैल 1930 तक गांधी जी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक की यात्रा की और 6 अप्रैल 1930 को नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा।
सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा और ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी इसमें झोंक दिया। द्वितीय विश्व युद्ध ब्रिटिश हुकुमत के लिए बहुत महंगा पड़ा। इसने साम्राज्य को काफी कमजोर कर दिया। 08 अगस्त 1942 को गांधीजी ने अंग्रेज शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू दिया। इस आंदोलन के लिए गांधी जी ने नारा दिया 'करो या मरो'।
साल 1946 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली ने कैबिनेट मिशन प्लान की घोषणा की। 2 सितंबर 1946 को जे.एल. नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को सत्ता के हस्तांतरण की तरीका ढूंढ़ने के लिए भारत भेजा गया। 3 जून को इंडिपेंडेस ऑफ इंडिया एक्ट 1947 पारित किया गया जिसके द्वारा सत्ता को दो प्रभुत्व राष्ट्रों – भारत और पाकिस्तान, को सौंपा गई।
इस तरह 200 सालों के संघर्ष और लाखों लोगों के बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। इस साल हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भारत सरकार आजादी के अमृत महोत्सव के अतर्गत कई कार्यक्रम आयोजित कर रही है जिसमें हर घर तिरंगा अभियान भी शामिल है। लंबी गुलामी के बाद जब भारत आजाद हुआ तब उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई और अपने हर नागरिक को शासक चुनने के लिए मतदान का अधिकार दिया। आजादी के बाद से भारत ने अब तक 14 प्रधानमंत्री देख लिए हैं। 14वें प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से 9वीं बार राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे। ये अवसर है उन अनगिनत लोगों के संघर्ष, त्याग और बलिदान को याद करने का जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी ताकि हम आजाद हवा में सांस ले सकें।