CJI दिपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग मामलाः वैंकयानायडू की अस्वीकृति पर 5 जजों की बेंच करेगी सुनवाई
By खबरीलाल जनार्दन | Published: May 7, 2018 08:27 PM2018-05-07T20:27:00+5:302018-05-07T20:39:07+5:30
राज्यसभा के सभापति द्वारा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज किये जाने को चुनौती देने वाली विपक्षी सांसदों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय की पीठ सुनवाई करेगी।
नई दिल्ली, 7 मईः उच्चतम न्यायालय में पांच सदस्यीय संविधान पीठ प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने के राज्यसभा सभापति के फैसले के खिलाफ याचिका पर कल सुनवाई करेगी। जानकारी के मुताबिक पांच जजों की बेंच सुनवाई के लिए राजी हो गई है।
इससे पहले राज्यसभा के सभापति द्वारा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज किये जाने को चुनौती देने वाली विपक्षी सांसदों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय की पीठ ने अधिवक्ताओं से कहा कि वे कल उसके समक्ष आएं, तभी इस मुद्दे को देखेंगे।
गौरतलब है कि सभापति ने यह कहते हुए नोटिस खारिज कर दिया था कि न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ किसी प्रकार के कदाचार की पुष्टि नहीं हुई है। सभापति की इसी व्यवस्था को विपक्ष के दो सांसदों ने आज न्यायालय में चुनौती दी है।
महाभियोग नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में शा मिल वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति जे . चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति एस . के . कौल की पीठ से तत्काल सुनवाई के लिए यचिका को सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। (जरूर पढ़ेंः CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर सस्पेंस, कांग्रेस चुप, सपा ने किया समर्थन, NCP सांसद ने कहा किए हैं दस्तखत)
पीठ ने मास्टर ऑफ रोस्टर के संबंध में संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए सिब्बल और अधिवक्ता प्रशांत भूषण से कहा कि वह तत्काल सुनवाई के लिए याचिका प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखें। यह याचिका दायर करने वाले सांसदों में पंजाब से कांग्रेस विधायक प्रताप सिंह बाजवा और गुजरात से अमी हर्षदराय याज्ञनिक शामिल हैं।
महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने का राज्यसभा के सभापति के पास उचित कारण था : भाजपा नेता
वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता अमन सिन्हा ने आज कहा कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने के राज्यसभा के सभापति के फैसले को चुनौती देने का कोई वैधानिक आधार नहीं है।
राज्यसभा के सभापति के फैसले को चुनौती देते हुये कांग्रेस के दो सांसदों की तरफ से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुये उन्होंने कहा कि यह फैसला बेहद तार्किक और स्पष्ट था जो महाभियोग प्रस्ताव में बताए गए सभी आधारों का स्पष्ट रूप से जवाब देता है।
सिन्हा ने कहा कि नायडू विचार विमर्श के बाद इस नतीजे पर पहुंचे थे कि याचिका कानूनी रूप से स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। सिन्हा ने कहा , ‘‘ इसलिये राज्यसभा के दो सांसदों द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर की गई याचिका का कोई वैधानिक आधार नहीं है। ’’ (जरूर पढ़ेंः मोदी सरकार द्वारा जस्टिस केएम जोसेफ के नाम को मंजूरी न देने पर CJI दीपक मिश्रा कर सकते हैं कोलेजियम की बैठक)
राज्यसभा के सभापति ने 23 अप्रैल को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों द्वारा प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ दिये गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को खारिज कर दिया था। उन्होंने ऐसा करते हुये कहा था कि ‘‘ आरोप स्वीकार करने योग्य नहीं हैं। ’’ यह पहला मौका था जब मौजूदा प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग नोटिस दिया गया था।
न्यायाधीश को हटाने के मामले में रास के नियम सांसदों को सार्वजनिक बयानों से रोकते हैं: न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के विपक्ष के प्रयासों पर आज यह कहते हुये एक तरह से पानी फेर दिया कि राज्यसभा के नियम संसद में नोटिस दिये बगैर ही उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीश को हटाने के बारे में सार्वजनिक बयानबाजी से रोकते हैं।
न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीश को पद से हटाने के बारे में संसद में नोटिस दिये बगैर ही इस बारे में सार्वजनिक बयान देने से रोकने के लिये दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि इस मामले में शीघ्र सुनवाई की कोई जल्दी नहीं है और इसे जुलाई के तीसरे सप्ताह में सूचीबद्ध कर दिया।
गैर सरकारी संगठन ‘इन परसूट आफ जस्टिस’ ने यह जनहित याचिका दायर की है। इस संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा आने वाले समय से संबंधित है और शीर्ष अदालत को इस पर विचार करना चाहिए। (जरूर पढ़ेंः सलमान खुर्शीद का बड़ा बयान, कहा- कांग्रेस के दामन पर लगे हैं मुसलमानों के खून के दाग)
इस पर पीठ ने कहा कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि ऐसा अवसर बार बार आयेगा। पीठ ने कहा कि इस पर सुनवाई की कोई जल्दी नहीं है।
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल , जिनसे इस मामले में सहयोग का अनुरोध किया गया था , ने कहा कि अब यह याचिका निरर्थक हो चुकी है। उन्होंने शीर्ष अदालत के न्यायाधीश को पद से हटाने के संबंध में न्यायाधीश जांच कानून और संविधान में प्रदत्त प्रक्रिया का भी जिक्र किया।
याचिकाकर्ता का कहना था कि दुनिया भर में यह व्यवस्था दी गयी है कि इस तरह की सार्वजनिक बयानबाजी संबंधित न्यायाधीश की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के समान है।
इस संगठन ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने के लिये कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों द्वारा राज्यसभा के सभापति नोटिस देने की पृष्ठभूमि में जनहित याचिका दायर की थी। मीनाक्षी अरोड़ा का कहना था कि संसद में इस तरह का नोटिस दिये बगैर ही राजनीतिक लोग सार्वजनिक बयान दे रहे हैं।
इस पर पीठ ने टिप्पणी की , ‘‘ राज्य सभा के नियम भी ऐसी बयानबाजी से रोकते है। ’’ अरोड़ा ने विधि आयोग की सिफारिशों का भी हवाला देते हुये कहा कि इसने कहा है कि सदन के बाहर इस तरह के सावजनिक बयान नहीं दिये जा सकते हैं। इस पर पीठ ने कहा , ‘‘ हम विधि आयोग को इस मामले पर विचार करने का निर्देश देकर याचिका का निस्तारण कर सकते हैं। (जरूर पढ़ेंः CJI के खिलाफ महाभियोग: तो क्या कांग्रेस ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है?)
अरोड़ा ने कहा कि आयोग ने यह सिफारिश 2005 में दी थी और कहा था कि सदन के बाहर इस तरह के मुद्दे पर चर्चा को अपराध बनाया जाना चाहिए परंतु इस दिशा में अभी तक कुछ नहीं हुआ है।