पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अलह मामला आया। हरियाणा के एक युवक ने याचिका दायर कर कहा कि मुझे आप सरकार से नास्तिक होने का सर्टिफिकेट दिला दीजिए।
उसने याचिका में कहा कि उसे हरियाणा सरकार से नो जाति, नो धर्म, नो ईश्वर सर्टिफिकेट दिलाया जाए। इस पर सुनवाई के दौरान पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सवाल किया कि अगर आप नास्तिक हो तो प्रमाण पत्र की क्या जरूरत है। भगवान, जाति और धर्म को मानना या न मानना किसी भी व्यक्ति का प्राइवेट मामला है।
पूरे मामले में दिलचस्प बात यह है कि युवक को तहसीलदार ने यह सर्टिफिकेट जारी कर दिया था और इसे बाद में सरकार ने खारिज कर दिया था। टोहाना निवासी रवि कुमार नास्तिक ने हरियाणा सरकार के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें तहसीलदार द्वारा जारी नो कास्ट, नो रिलीजन, नो गॉड सर्टिफिकेट को रद करने का आदेश दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि वह जातिहीन समाज में विश्वास रखता है। वह जाति, धर्म व किसी भी भगवान में विश्वास नहीं रखता। वह अनुसूचित जाति से है लेकिन सरकार द्वारा अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ व आरक्षण का लाभ नही लेना चाहता।
रवि कुमार के अनुसार सभी लोग एक समान हैं तो जाति विशेष को लाभ क्यों दिया जा रहा है। मैं जाति व धर्म मुक्त समाज का पक्षधर हूं। इसके लिए मैंने लंबी लड़ाई के बाद तहसीलदार से नो कास्ट, नो रिलीजन, नो गॉड सर्टिफिकेट जारी करवाया था।
टोहाना के तहसीलदार ने 24 अप्रैल 2019 को उसको यह प्रमाण पत्र जारी किया था, लेकिन 4 मई 2019 को सरकार ने यह प्रमाण पत्र रद कर दिया था। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से आग्रह किया कि वह सरकार को आदेश दे कि उसको नो कास्ट, नो रिलीजन, नो गॉड सर्टिफिकेट जारी करे। सुनवाई के दौरान बेंच ने भी माना कि राज्य अपने नागरिकों को जाति, धर्म की स्वतंत्रता देता है।