हिंदी-उर्दू के चर्चित साहित्यकार मुशर्रफ आलम जौकी का कोरोना से निधन
By अरविंद कुमार | Published: April 19, 2021 09:47 PM2021-04-19T21:47:04+5:302021-04-19T21:48:59+5:30
मुशर्रफ आलम जौकी के निधन पर उर्दू के साहित्यकार एवं पत्रकार सैयद अहमद कादरी ने अफसोस जताते हुए कहा कि उन्होंने अपना एक पुराना दोस्त खो दिया।
नई दिल्लीः हिंदी उर्दू के चर्चित अफसाना निगार मुशर्रफ आलम जौकी नहीं रहे। वह 59 वर्ष के थे। दिल का दौरा पड़ने से अस्पताल में इंतकाल हो गया।
मुशर्रफ आलम को दो दिन पहले भर्ती कराया गया था। वे कोरोना से पीड़ित थे। परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा भी है। बिहार के आरा मे जन्मे जौकी 90 के दशक में दिल्ली आए थे और यही रह कर बस गए। उन्होंने हिंदी उर्दू अदब की दुनिया में अपनी विशेष पहचान बनाई थी। वे "हंस" पत्रिका के प्रमुख लेखकों में थे।
जौकी कुछ दिन के लिए "राष्ट्रीय सहारा "के उर्दू संस्करण के संपादक बने थे लेकिन उनका मन अखबारी दुनिया में नहीं लगा और वह लेखन की दुनिया में फिर से पूरी तरह रम गए। वह हिंदी और उर्दू के बीच एक पूल की तरह थे और हिंदी के लेखकों के बीच काफी उठते बैठते थे और उनसे संवाद कायम करते थे।
उनके 10 से अधिक कहानी संग्रह और 7 से अधिक उपन्यास भी छप चुके थे। उन्होंने चार नाटक भी लिखे थे और उर्दू आलोचना में भी उनकी कुछ किताबें साया हुई थी। पाकिस्तान के रिसालों में भी वे छपते थे
उनके कहानी संग्रहों में "फ्रिज में औरत" "बाजार की एक रात "" फरिश्ते भी मरते हैं" काफी चर्चित रहा। "नीलमघर ""बयान" "मुसलमान" उनके चर्चित उपन्यास हैं ।"एक सड़क अयोध्या " और "गुडबाय राजनीति "उनका लोकप्रिय नाटक है। उनकी कहानियों पर धारावाहिक भी बने थे। उन्हें" आजकल" "कृष्णचंद्र" सम्मान समेत अनेक अवार्ड भी मिले थे।