शादी का एक साल पूरा होने के पहले तलाक संभव, हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 15, 2018 09:19 AM2018-11-15T09:19:11+5:302018-11-15T09:19:11+5:30
पति को पत्नी से या पत्नी को पति से बहुत ज्यादा प्रताड़ना सहन करना पड़ रहा है तो दोनों में से कोई भी शादी की तारीख से एक वर्ष के भीतर तलाक ले सकता है. इसके लिए पीडि़त पति/पत्नी को संबंधित न्यायालय में आवेदन कर तलाक की याचिका दायर करने की अनुमति लेनी होती है.
नई दिल्ली, 15 नवंबर: नागपुर पति को पत्नी से या पत्नी को पति से बहुत ज्यादा प्रताड़ना सहन करना पड़ रहा है तो दोनों में से कोई भी शादी की तारीख से एक वर्ष के अंदर तलाक ले सकता है. ऐसे मामले में शादी की तारीख से एक वर्ष के भीतर दायर की गई तलाक की याचिका नामंजूर करने का प्रावधान लागू नहीं होता.
बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक मामले में यह बात स्पष्ट की है. हिंदू विवाह कानून की धारा 14 के अनुसार शादी की तारीख से एक वर्ष के भीतर तलाक की याचिका दायर नहीं की जा सकती. साथ ही धारा 14 (1) के अनुसार संबंधित न्यायालय तलाक की याचिका पर सुनवाई भी नहीं कर सकता. लेकिन इस धारा में एक स्पष्टीकरण किया गया है. उसके अनुसार पति को पत्नी से या पत्नी को पति से बहुत ज्यादा प्रताड़ना सहन करना पड़ रहा है तो दोनों में से कोई भी शादी की तारीख से एक वर्ष के भीतर तलाक ले सकता है. इसके लिए पीडि़त पति/पत्नी को संबंधित न्यायालय में आवेदन कर तलाक की याचिका दायर करने की अनुमति लेनी होती है. यह अनुमति लेने के लिए पीडि़त पति/पत्नी को खुद के प्रताडि़त होने की बात साबित करनी पड़ती है. उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में इस प्रावधान पर विस्तार से प्रकाश डाला है.
यह था मामला मामले में पत्नी दीप्ति की शादी का एक वर्ष पूरा होने के पहले ही पति विनोद (दोनों काल्पनिक नाम) से तलाक चाहिए था. इसीलिए उसने तलाक की याचिका दायर करने की अनुमति प्राप्त करने के लिए अमरावती परिवार न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया था. परिवार न्यायालय ने दीप्ति को बहुत ज्यादा प्रताडि़त होना नहीं पाए जाने की बात कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया. इसीलिए दीप्ति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी.
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवि देशपांडे व विनय जोशी ने कानून के प्रावधान पर प्रकाश डालकर परिवार न्यायालय के निर्णय को गलत बताया. न्यायालय ने यह भी कहा कि आवेदन खारिज करते समय दीप्ति की बात उचित तरीके से समझी नहीं गई. साथ ही दीप्ति की अपील स्वीकृत कर यह मामला नए निर्णय के लिए परिवार न्यायालय को वापिस भेज दिया. आवेदन पर निर्णय लेने के लिए परिवार न्यायालय को तीन महीने का समय दिया गया है.