गांधीनगर:कांग्रेस नेता राहुल गांधी के आपराधिक मानहानि केस में उनके दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट शुक्रवार को फैसला सुनाएगी। हाईकोर्ट द्वारा गुरुवार को जारी की गई सूची के अनुसार जस्टिस हेमंत प्रच्छक की अदालत शुक्रवार सुबह 11 बजे केस पर अपना फैसला सुनाएगी। मानहानि के उस केस में राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने दो साल की कैद की सजा सुनाई है।
उस मामले को राहुल गांधी द्वारा गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक की अदालत में अप्रैल और मई में सुनवाई हुई थी। राहुल गांधी की ओर से गुजरात हाईकोर्ट में पेश हुए उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने 29 अप्रैल को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में जस्टिस प्रच्छक के समक्ष तर्क दिया था कि एक जमानती एवं गैर-संज्ञेय अपराध के लिए अधिकतम दो साल की सजा का मतलब है कि उनके मुवक्किल अपनी लोकसभा सीट खो सकते हैं।
इसके अलावा सिंघवी ने सूरत द्वारा राहुल गांधी को दोषसिद्धि करने के फैसले को लगत बताते हुए हाईकोर्ट में यह भी कहा था कि वह मुकदमा पूरी तरह से गलत तथ्यों के आधार पर था। वो ऐसा अपराध नहीं है कि उसे गंभीर मानते हुए सजा दी जानी जरूरी थी।
वकील सिंघवी ने अदालत से कहा कि इस कारण निचली अदालत द्वारा उन्हें दोषी करार दिये जाने के फैसले पर रोक लगाई जाए। इस केस पर बहस 2 मई को समाप्त हुई थी। लेकिन जस्टिस प्रच्छक ने मई में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद अंतिम आदेश पारित करेंगे। अगर इस केस में हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि पर रोक लगा दी जाती है तो राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल हो सकती है।
मालूम हो कि बीते 23 मार्च को सूरत की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने राहुल गांधी द्वारा साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक के को कोलार में दिये चुनावी भाषम में कथित तौर पर कहा था कि "सभी चोर मोदी उपनाम क्यों साझा करते हैं"। जिस पर सूरत पश्चिम के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल के खिलाफ कोर्ट में आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें कोर्ट ने फैसला देते हुए राहुल गांधी को दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।
सूरत कोर्ट के फैसले के बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द हो गई थी। राहुल गांधी लोकसभा में केरल के वायनाड सीट का प्रतिनिधित्व किया करते थे, लेकिन जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत सजा के बाद उन्हें बतौर सांसद अयोग्य घोषित कर दिया गया था।