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जम्मू-कश्मीर: राज्यपाल एनएन वोहरा ने सुरक्षा को लेकर सेना के अधिकारियों से की बैठक

By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: August 10, 2018 12:46 IST

कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन ऑल आउट के कारण आतंकी दुम दबाकर इधर-उधर जंगलों में भाग रहे हैं और अपनी जान बचाने के लिए नए पैतरे खोज रहे हैं।

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भारतीय सेना आंतकियों को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन ऑल आउट कर रही है। ऐसे में आज (शुक्रवार)  जम्मू-कश्मीर के राजभवन में सुरक्षा प्रबंधन से संबंधित मुद्दों की समीक्षा के लिए राज्यपाल एनएन वोहरा ने वरिष्ठ नागरिक, पुलिस, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस, सेना, और राज्य और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की एक बैठक की अध्यक्षता की है। इस बैठक के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से कैसे निपटा जाए इस पर भी चर्चा हो सकती हैं।

कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन ऑल आउट के कारण आतंकी दुम दबाकर इधर-उधर जंगलों में भाग रहे हैं और अपनी जान बचाने के लिए नए पैतरे खोज रहे हैं। वहीं, कहा जा रहा है कि घाटी में मौजूद जैश ए मोहम्मद के खूंखार आतंकी बौखलाहट में सुरक्षाबलों को निशाना बनाने के लिए आईईडी ब्लास्ट लर सकते हैं। सुरक्षाबलों ने इसके लिए अलर्ट भी जारी किया है।

आतंकियों के लिए नहीं शुरू हुआ था ऑपरेशन ऑल आउट

अगर ऑपरेशन ऑल आउट का हिन्दी मतलब निकालें तो सबको बाहर निकालो समझ आता है। भारतीय सेना और जम्मू कश्मीर से जोड़ के देखें तो यह समझ आता है कि आतंकियों को बाहर निकालो। लेकिन इसकी शुरुआत इस उद्देश्य नहीं हुई थी।

दिसंबर 2014, असम में उग्रवादियों और बोडो नक्सलियों से जुड़ी घटनाओं ने सेना की नाक में दम कर रखा था। जब भारतीय सेना के करीब 3500 जवानों ने वायु सेना, असम पुलिस और अर्धसैनिक बलों के साथ मिलकर अभियान छेड़ा और स्‍थिति पर काबू कर लिया। तब इस ऑपरेशन को अखबारों ने ऑपरेशन ऑल आउट के नाम से प्रकाशित करना शुरू किया। जनवरी 2015 में सेना ने भी इसे ऑपरेशन ऑल आउट बताया।

जनवरी में ही निचले असम से एनडीएफबी (सांगबिजित) के आतंकवादियों का भी सेना ने सफाया किया। तब सेना के साथ अर्धसैनिक बल और राज्य पुलिस के साथ भारतीय वायु सेना भी शामिल हो गई है। तब इसे भारतीय सेना का करीब-करीब सबसे घातक ऑपरेशन बताया गया था।

लेकिन 2015 में असम के ऑपरेशन के बाद इसे जम्मू में लागू कर दिया गया। लेकिन वहां इतने विशाल रूप में नहीं। फिर भी सेना ने साल 2016-17 में करीब 200 आतंकियों को मौत के घाट उतारा। 

लेकिन 2017 की दूसरी छमाही एक बार फिर जम्मू कश्मीर में हालत बद से बदतर होने लगे। आतंकियों ने खासतौर पर लश्कर ए तैयबा ने कई वारदातों को ताबड़तोड़ अंजाम देना शुरू किया। तब सेना एक बार फिर से ऑपरेशन ऑल आउट को उसी रूप में लागू किया। 

19 नवंबर 2017 को ऑपरेशन ऑल आउट की सबसे बड़ी जीत के तौर पर देखा जाता है। इस दिन लश्कर-ए-तैयबा छह बड़े आतंकवादी मारे गए थे। उस साल 190 आतंकवादी मारे गए। इनमें से 110 विदेशी और 80 स्थानीय आतंकवादी थे।

क्या होता है ऑपरेशन ऑल आउट में

अबकी ऑपरेशन ऑल आउट शुरू करने से पहले गृह मंत्रालय ने एक निर्देश जारी किया। इसमें कहा गया कि ऐसी संभावनाओं पर भी पूरी ताकत से कार्रवाई करें जहां संदिग्‍ध लगे। यह अपने तरह का नायाब निर्देश है। असल में ऑपरेशन आल आउट के काम करने का तरीका ही यही। इसमें सेना पहले ही ऐसे लोगों की सूची बना लेती है जो संदिग्‍ध होते हैं। सूची में चुन-चुन कर सभी नामों को सूचिबद्ध कर दिया जाता है। 

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