अफगानिस्तान में तालिबान की जीत के बीच सरकार को कश्मीर में पहुंच बढ़ानी चाहिए : पूर्व थल सेना प्रमुख
By भाषा | Published: August 21, 2021 06:57 PM2021-08-21T18:57:03+5:302021-08-21T18:57:03+5:30
पूर्व थल सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी ने कहा है कि सरकार को कश्मीर में अपनी पहुंच बढ़ाने और वहां के लोगों को आश्वस्त करने की जरूरत है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना रहेगा क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों द्वारा नए सिरे से हमला करने की आशंका है। कश्मीर में नब्बे के दशक के शुरुआत में आतंकवाद के चरम पर होने के दौरान 16वीं कोर की कमान संभालने और बाद में उसी दशक के दौरान थल सेना प्रमुख बने जनरल रॉय चौधरी का मानना है कि हाल में तालिबान की जीत से उत्साहित पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों का उपयोग करके ‘‘कश्मीर को लेकर नया प्रयास शुरू करेगा।’’ उन्होंने कहा कि भारत को तालिबान के भीतर भारत के प्रति मित्रता का रुख रखने वाले गुटों के अलावा पंजशीर घाटी में तालिबान विरोधी कमांडर दिवंगत अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद के समर्थन वाले पूर्व अफगान सरकारी बलों तक पहुंच बनाने की जरूरत है। वर्तमान में एक रणनीतिक विचार मंच ‘रिसर्च सेंटर फॉर ईस्टर्न एंड नॉर्थ-ईस्टर्न स्टडीज’ का नेतृत्व कर रहे जनरल रॉय चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हमें कश्मीरियों तक अपनी पहुंच बढ़ानी होगी, हमें उन्हें पुन:आश्वासन देना होगा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना रहेगा।’’ केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। तब अधिकतर कश्मीरी नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल कश्मीर के नेताओं तक पहुंच बनाने और संवाद की कोशिश की है। वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध का हिस्सा रहे जनरल रॉय चौधरी ने कहा, ‘‘हमें यह समझना होगा कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत को (आतंकवादी समूहों द्वारा) पाकिस्तान की जीत और भारत की हार के तौर पर देखा जा रहा है... हमें जैश-ए-मोहम्मद जैसे तत्वों के नए सिरे से हमलों के लिए अपने आप को संगठित करना होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें कट्टरपंथी तत्वों के समर्थन से पाकिस्तान के मंसूबों के लिए तैयार रहना होगा।’’ भारत ने 1990 के दशक के मध्य में तालिबान के सत्ता में आने की अवधि के दौरान, उस शासन के साथ संपर्क रखने से इनकार कर दिया था और उसे पाकिस्तान की सेना के क्रूर छद्म रूप के तौर पर देखा था। उसने अफगान सरकार के बचे तत्वों और बाद में नार्दन अलायंस का समर्थन जारी रखा था, उन्हें प्रशिक्षण और आपूर्ति के साथ सहायता की थी। वर्ष 1999 में चार पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस के एक जेट विमान का अपहरण करके काबुल ले जाया गया था और वह तालिबान शासन के सहयोग से संभव हुआ था। भारत ने उस विमान के यात्रियों और चालक दल की रिहायी के बदले तीन कट्टर आतंकवादियों को छोड़ा था जिसमें जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक मौलाना मसूद अजहर शामिल था। फ्रांसीसी विचार मंच ‘सेंटर डी एनालिस डू टेररिज्मे’ (सेंटर फार एनालिसिस आफ टेररिज्म) द्वारा गत सप्ताह प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार ‘‘(एक तरफ) पाकिस्तान समर्थित समूहों लश्कर ए तैयबा और जेईएम और तालिबान के बीच अधिक संचालन समन्वय की आशंका बढ़ गई है।’’पूर्व सेना प्रमुख ने कहा, ‘‘हमें अहमद शाह मसूद (उपनाम शेरे पंजशीर वाले छापामार नेता) के बेटे की मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। ताजिक, उज्बेक और हजारा जैसे गैर-पश्तून अल्पसंख्यकों के हमारे साथ अच्छे संबंध रहे हैं... तालिबान के भी कई गुट हैं और उन तक पहुंच बनाने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए।’’जनरल रॉय चौधरी ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में भारत की भूमिका प्रशिक्षण, राहत सामग्री और सबसे बढ़कर उन लोगों को शरण देने की होनी चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘अफगानिस्तान के लोग अब भी हमारे मित्र हैं और हमें उन्हें शरण देने के लिए तैयार होना चाहिए।’’उन्होंने कहा कि हालांकि साथ ही, भारत के खिलाफ किसी भी आतंकवादी हमले से बचाव के लिए सुरक्षा कड़ी करने की आवश्यकता है।पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में अमेरिकी और गठबंधन सैनिकों को मजबूती प्रदान करने के लिए भारतीय सैनिकों को भेजने की बात ‘‘समझदारी भरी नहीं थी क्योंकि हमारे (भारतीय सेना के) पास हवाई मार्ग के अलावा उन्हें मजबूती प्रदान करने या आपूर्ति करने का अन्य कोई साधन नहीं था तथा वह मार्ग गंभीर खतरे से भरा था।’’उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच अच्छे संबंध हैं, लेकिन बांग्लादेश में विपक्षी ताकतें, जिसमें ‘‘संपूर्ण कट्टरपंथी समूह’’ शामिल हैं, तालिबान की जीत से फिर से सक्रिय हो जाएंगी और ‘‘इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहेंगी।’’सेवानिवृत्त जनरल ने यह भी कहा, ‘‘तालिबान से जुड़ी विचारधारा के प्रसार का विरोध करने के लिए हमें इस उपमहाद्वीप में समान विचारधारा वाले लोगों तक पहुंच बनाने की जरूरत है।
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