जीजेएम के दो धड़ों के बीच राजनीतिक प्रभूत्व की जंग में गोरखालैंड की मांग ठंडे बस्ते में गई
By भाषा | Updated: April 14, 2021 16:53 IST2021-04-14T16:53:19+5:302021-04-14T16:53:19+5:30

जीजेएम के दो धड़ों के बीच राजनीतिक प्रभूत्व की जंग में गोरखालैंड की मांग ठंडे बस्ते में गई
: प्रदीप्त तापदार :
दार्जीलिंग, 14 अप्रैल दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के दो धड़ों के बीच राजनीतिक आधिपत्य की जंग में गोरखालैंड की मांग कहीं ठंडे बस्ते में चली गई है जहां प्रमुख प्रतिद्ंवद्वी कोविड-19 संकट के बीच इस बार बस विकास पर जोर दे रहे हैं।
एक धड़े का नेतृत्व बिमल गुरुंग कर रहे हैं तो दूसरे धड़े की कमान मोर्चे के उनके पूर्व प्रमुख बिनय तमांग ने संभाली है।
पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा वक्त से, गोरखाओं के लिए एक अलग राज्य की मांग और संविधान की छठी अनुसूची का क्रियान्वयन पर्वतीय क्षेत्र के दलों के लिए चुनाव के दो बड़े मुद्दे रहे हैं। छठी अनुसूची में कुछ खास जनजातीय इलाकों में स्वायत्त परिषदों के गठन का प्रावधान है।
हालांकि, तीन साल तक छिपे रहने के बाद गुरुंग के लौटने और क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए तमांग के साथ उनकी जंग ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं।
इतना ही नहीं, कोविड-19 वैश्विक महामारी ने पर्वतीय क्षेत्र के वित्तीय आधार माने जाने वाले चाय एवं पर्यटन क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है जिससे कई बेरोजगार हो गए। दार्जीलिंग के मतदाताओं को इस बात की अच्छी तरह एहसास हो गया है कि उनके लिए ढांचागत विकास और रोजगार के अवसर किसी भी दूसरी चीज से ज्यादा जरूरी हैं।
दर्शनीय पर्वतीय क्षेत्र में विधानसभा की तीन सीटों - दार्जीलिंग, कलिमपोंग और कुरसियोंग में इस बार चौतरफा मुकाबला है जहां भाजपा और कांग्रेस-लेफ्ट-आईएसएफ गठबंधन के साथ ही तृणमूल कांग्रेस के ‘‘पर्वतीय क्षेत्र के दो दोस्त” यानि गुरुंग और तमांग नीत जीजेएम के दो गुट भी मैदान में हैं।
झगड़े के बाद बंटे इन दोनों गुटों के प्रत्याशी इन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
टीएमसी में सूत्रों ने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता इस उलझन में पड़े हुए हैं कि उन्हें प्रचार के दौरान या मतदान के दिन किसका समर्थन करना है क्योंकि ज्यादातर कार्यकर्ता गुरुंग के पक्ष में दिख रहे हैं।
तमांग ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘इन विधानसभा चुनावों में राज्य का दर्जा हमारे लिए मुद्दा नहीं है। हम पर्वतीय क्षेत्र के विकास, नौकरियों, प्रशासनिक काया-कल्प को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। हम 52 सूत्री चुनावी घोषणा-पत्र लेकर आए हैं।”
उन्होंने कहा, “चाय, लकड़ी और पर्यटन उद्योगों को कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण बड़ा झटका लगा है। लोग अब नौकरी, विकास और बेहतर जीवन चाहते हैं।”
वहीं जीजेएम के दोनों धड़ों के लिए अब मुख्य चुनौती के रूप में उभरी भाजपा ने कहा कि अगर सत्ता में आती है तो वह क्षेत्र में ‘‘स्थायी राजनीतिक समाधान” उपलब्ध कराएंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एनआरसी लागू करने को लेकर उत्पन्न भय को दूर किया है और कहा है कि गोरखा समुदाय और उनकी पहचान को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।
गुरुंग गुट के महासचिव रोशन गिरि ने दावा किया है कि भाजपा “झूठे वादे” कर रही है।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा , “2009 से, वे ऐसे ही वादे कर रहे हैं लेकिन पर्वतीय क्षेत्र में कुछ भी नहीं बदला। टीएमसी ने स्थायी राजनीतिक समाधान का वादा किया है। हमें दीदी (ममता बनर्जी) में पूरा विश्वास है।
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