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Good News: प्रयागराज का ऐतिहासिक घंटाघर 30 साल बाद फिर बताएगा टाइम, इसकी शिल्पकारी की रोचक बातें नहीं जानते होंगे आप

By भाषा | Updated: August 18, 2019 14:29 IST

प्रयागराज स्थित चौक घंटाघर भारत के सबसे पुराने बाजारों में से एक है और मुगलों की परंपरागत स्थापत्य और निर्माण कला का नमूना है। इसे लखनऊ के घंटाघर के बाद उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घंटाघर कहा जाता है।

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ठळक मुद्देइसे लखनऊ के घंटाघर के बाद उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घंटाघर कहा जाता है।इसके खम्भों पर रोमन नक्काशी की बहुत सुंदर कलाकृतियां उकेरी गई हैं।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पिछली शताब्दी के शुरू में शहर के व्यस्त चौराहे पर बनाया गया विशाल घंटाघर 30 बरस बाद एक बार फिर समय बताएगा। प्रयागराज नगर निगम ने इस ऐतिहासिक घंटाघर की घड़ी और घंटे को चालू हालत में लाने की कोशिश तेज कर दी है। इसके कलपुर्जे मिलने में दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन उम्मीद है कि इस बरस अक्तूबर तक यह चालू हालत में होगा।

प्रयागराज स्थित चौक घंटाघर भारत के सबसे पुराने बाजारों में से एक है और मुगलों की परंपरागत स्थापत्य और निर्माण कला का नमूना है। इसे लखनऊ के घंटाघर के बाद उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घंटाघर कहा जाता है।

इसके खम्भों पर रोमन नक्काशी की बहुत सुंदर कलाकृतियां उकेरी गई हैं, जो सौ बरस बीत जाने पर धुंधली भले हो गई हों, लेकिन उनकी खूबसूरती में कहीं कोई कमी नहीं आई।

अब अगर घंटाघर बनाने के औचित्य की बात करें तो 1881 में लखनऊ में बना घंटाघर देश का सबसे ऊंचा घंटाघर है। यह ऐसा समय था जब अंग्रेज अफसरों के अलावा घड़ी किसी के पास नहीं होती थी। कृषि प्रधान देश में सूरज के उगने और छिपने से वक्त का अंदाजा लगाया जाता था, लेकिन अंग्रेज हुकूमत के सरकारी दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग समय पर अपने काम पर पहुंचे इसके लिए शहर के बीचोंबीच व्यस्त चौराहे पर विशाल घंटाघर बनवाने का चलन शुरू हुआ।

यह इमारत संबद्ध शहर की पहचान और इतिहास का हिस्सा हुआ करती थी। लखनऊ का घंटाघर अवधी और ब्रिटिश स्थापत्यकला का नमूना है। नगर निगम के अधिशासी अभियंता अजय सक्सेना ने पीटीआई भाषा को बताया कि चौक स्थित घंटाघर की घड़ी पिछले 30 साल से खराब पड़ी है जिसे ठीक कराने की कोशिश नगर निगम ने की, लेकिन इसके कई कल-पुर्जें लापता होने से इसे ठीक कराना चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया।

उन्होंने बताया कि अब इस काम का जिम्मा मुंबई की एक कंपनी को सौंपा गया है। उन्होंने बताया कि घंटाघर को नया स्वरूप देने के साथ ही इसकी चारों दिशाओं में नई घड़ियां लगाई जाएंगी, जिनमें रोमन लिपि में नंबर अंकित होंगे। प्रत्येक घड़ी की लागत तकरीबन एक लाख रुपये होगी। इसके अलावा घंटा आदि दुरुस्त करने पर करीब एक लाख रुपए का खर्च आएगा।

घड़ियों के रखरखाव का जिम्मा उसी कंपनी का होगा जिसके लिए वह सालाना 16,000 रुपये शुल्क लेगी। उन्होंने कहा कि इस काम के लिए क्षेत्र के विधायक और मौजूदा प्रदेश सरकार में मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी अपने विधायक निधि से धन उपलब्ध करा रहे हैं।

प्रयागराज स्थित चौक घंटाघर पर लगे संगमरमर के शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1913 में शहर के रईस रायबहादुर लाला रामचरन दास तथा लाला विश्वेस्वर दास ने अपने पूर्वजों लाला मनोहर दास और लाला मुन्नीलाल की याद में करवाया था।

दरअसल दिसंबर 1910 में यमुना किनारे दो सौ बीघा जमीन पर एक विशाल प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसे देखने देश विदेश के लाखों लोग आए थे। इसी प्रदर्शनी में एक विशाल घंटाघर बनाया गया था, जिसका डिजाइन सर एस जैकब ने तैयार किया था।

चौक घंटाघर हुबहू उसी आकार और रंगरूप का बनवाया गया। इनटैक प्रयागराज चैप्टर के सदस्य वैभव मैनी ने बताया कि अवधी और ब्रिटिश वास्तुकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में शुमार 221 फीट ऊँचे लखनऊ घंटाघर को वहां के स्थानीय लोगों के समुदाय ने मिलकर ठीक कराया था, जबकि मुंबई स्थित राजा बाई घंटाघर को मुंबई की एक कंपनी ने ठीक किया। मैनी कहते हैं कि घंटाघर भी हमारी विरासत है जिसे सहेजने की जिम्मेदारी सरकार के साथ ही नागरिक समाज की भी है। इस दिशा में सकारात्मक पहल होना प्रसन्नता की बात है। 

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