इस्तीफों की सुनामी के बाद आजाद की पार्टी के अस्तित्व पर संकट! जानें मामला
By सुरेश एस डुग्गर | Published: December 26, 2022 03:44 PM2022-12-26T15:44:59+5:302022-12-26T16:43:24+5:30
कांग्रेस से आजाद हुए पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की नवगठित पार्टी के प्रदेश में हजारों कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए पहचान का मामला अभी तक सुलझ नहीं पाया है।

इस्तीफों की सुनामी के बाद आजाद की पार्टी के अस्तित्व पर संकट! जानें मामला
जम्मू: अभी तक जिस राजनीतिक दल का पंजीकरण भी नहीं हुआ हो उसमें इस्तीफों की सुनामी ने उसके अस्तित्व पर संकट पैदा कर दिया है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद कहते थे कि उन्होंने दगाबाज नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है पर सच्चाई यही है कि जिन नेताओं को पार्टी से निष्कासित किया गया है उन्हीं के उकसावे पर और उन्हीं के सहारे गुलाम नबी आजाद ने पार्टी को खड़ा करने का सपना देखा था।
वैसे यह भी सच है कि कांग्रेस से आजाद हुए पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की नवगठित पार्टी के प्रदेश में हजारों कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए पहचान का मामला अभी तक सुलझ नहीं पाया है। कारण, चुनाव आयोग द्वारा अभी तक उनकी पार्टी का नाम न ही स्वीकृत किया गया है और न ही पंजीकृत किया गया है। तीसरी बार पार्टी का नाम स्वीकृत करने के लिए भिजवाया जा चुका है पर अभी तक स्वीकृति नहीं मिल पाई है।
और अब स्थिति यह है कि जिन तीन दिग्गज नेताओं - पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद, डा मनोहर लाल और बलवान सिंह - को आजाद ने अपनी पार्टी से निकाल दिया उन्होंने कांग्रेस को छोड़ना सबसे बड़ी भूल बताया है। पर आजाद की पार्टी के अन्य नेता इन तीनों की बदनामी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
आजाद की पार्टी के एक अन्य नेता आरएस चिब तो यहां तक आरोप लगाते थे कि इन तीनों ने ही गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस को तोड़ कर नई पार्टी गठित करने के लिए उकसाते हुए तन-मन और धन से पूरा समर्थन देने की बात कही थी और पार्टी के गठन के साथ ही वे कांग्रेस में इस्तीफों की सुनामी लाते हुए नई पार्टी में दाखिल हो गए।
पर अब जब गुलाम नबी आजाद ने उन तीनों पर दगाबाजी का आरोप लगाते हुए उन्हें पार्टी से बाहर निकाला तो वे एक बार फिर इस्तीफों की सुनामी तो लाए हैं पर यह इस्तीफे इस बार आजाद की पार्टी को छोड़ने वालों के हैं। इतना जरूर था कि गुलाम नबी आजाद की पार्टी के अन्य नेता इसे जरूर मानते थे कि इस बंटवारे के बाद आजाद की पार्टी के अस्तित्व पर संकट इसलिए आन पड़ा है क्योंकि पार्टी की वित्तीय स्थिति भी ठीक नहीं है और पार्टी को छोड़ कर जाने वालों का रेला है। जिसे अगर थामा नहीं गया तो पार्टी मात्र दो चार लोगों की रह जाएगी।