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JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद के ट्वीट के बाद लोगों ने पूछा-वामपंथी होकर पैगंबर की प्रशंसा कैसे? तो ये दिया जवाब

By स्वाति सिंह | Updated: October 22, 2019 20:41 IST

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र उमर खालिद ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर पैगंबर के सपोर्ट एक के बाद एक कई ट्वीट किए। ये ट्वीट्स मुहम्मद साहब द्वारा प्यार और मुहब्बत की जो बात कही थी उसकी वक़ालत करतीं है। 

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ठळक मुद्देउमर खालिद ने पैगंबर के सपोर्ट एक के बाद एक कई ट्वीट किए।ट्विटर पर मुस्लिमों के खिलाफ ट्रेंड होते शब्द के जवाब में #ProphetOfCompassion ट्रेंड होने लगा।

उत्तर प्रदेश में कमलेश तिवारी की हत्या ट्विटर पर लोगों ने इस्लाम और मुहम्मद के खिलाफ डेरोगेटरी ट्वीट्स हैशटैग के साथ किए। इसके बाद #मुस्लिम_का_संपूर्ण_बहिष्कार ट्रेंड होने लगा। इसके जवाब में कुछ लोगों ने  #ProphetOfCompassion का अभियान चलाया। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र उमर खालिद भी इस अभियान का हिस्सा बने। जिसके बाद उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर पैगंबर के सपोर्ट एक के बाद एक कई ट्वीट किए। ये ट्वीट्स मुहम्मद साहब द्वारा प्यार और मुहब्बत की जो बात कही थी उसकी वक़ालत करतीं है। 

उमर खालिद ने लिखा 'हम सभी अपने विश्वास के बावजूद पैगंबर जीवन और शिक्षाओं से सीखने की जरूरत है। पैगंबर सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं हैं, बल्कि सभी के लिए हैं। वह सिर्फ रहमतुल मुस्लिमीन नहीं हैं। वह रहमतुल आलमीन हैं। पूरी आलम, पूरी दुनिया के लिए एक रहमत!'

उन्होंने लिखा 'जब पैगंबर मक्का से तैफ गए तो एक हिंसक भीड़ ने उन पर पत्थरों से हमला किया था। पैगंबर का खून बह रहा था। तब एंजल जिबरेल ने आकर उनसे कहा-अगर पैगंबर ने इजाजत दी तो वह शहर को तबाह कर देंगे। लेकिन उन्होंने इजाजत नहीं देते हुए कहा कि इसके बदले में तैफ के लिए मोक्ष की प्रार्थना की।' खालिद ने लिखा' सामाजिक न्याय के साथ पैगंबर ने आर्थिक न्याय की भी बात की और घोषणा की कि किसी को अपने काम का भुगतान समय से पहले ही करना पड़ता है, जबकि काम से उनका पसीना सूख जाता है! 

खालिद के इस ट्वीट के बाद से उन्हें सोशल मीडिया पर बहुत ट्रोल किया गया। उनसे लोगों ने यह भी सवाल पूछा कि वो एक वामपंथी होकर पैगंबर की प्रशंसा कैसे करने लगे। हालांकि इस बात का जवाब उन्होंने ड प्रिंट में लेख लिखकर भी दिया है। उन्होंने लिखा 'मेरी इस तरह की कोई जवाबदेही नहीं है कि मैं, अपने धर्म जिसमें मैं पैदा हुआ हूं, उसके बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ भी बोलूं। न तो भारत का संविधान और न ही इस्लाम धर्म के तौर पर यह कहता है कि मैं इसे सार्वजनिक करूं। लेकिन यहां कुछ और गहरी बातें हैं जिसपर हमलोगों को बात करने की ज़रूरत है। 

टॅग्स :उमर खालिद
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